WildTech—अथवा वन्यजीव संरक्षण हेतु प्रौद्योगिकी—परियोजना की शुरुआत वाइल्डलाइफ़ कंज़र्वेशन ट्रस्ट (WCT) के विभिन्न कार्यक्रमों में तकनीकी नवाचार और डिज़ाइन की आवश्यकता के कारण स्वाभाविक रूप से हुई। यह पहल उन प्रयासों से जुड़ी है जिनमें भारतीय पैंगोलिन और गंगा नदी डॉल्फ़िन जैसे संकटग्रस्त प्रजातियों की ट्रैकिंग शामिल है; साथ ही बांधों, रेलवे लाइनों जैसी अवसंरचनाओं से वन्यजीवों पर पड़ने वाले प्रभावों को कम करने, वन क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों की ईंधन लकड़ी पर निर्भरता को ऊर्जा-कुशल जल-तापन समाधानों के माध्यम से घटाने, मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने, और वन्यजीवों के स्वास्थ्य जैसे विविध क्षेत्रों में काम किया गया है। इस पहल का मुख्य लक्ष्य है — इलेक्ट्रॉनिक्स, टेलीकम्युनिकेशन और कंप्यूटेशन जैसे क्षेत्रों में हुए नवीनतम वैश्विक तकनीकी विकास का उपयोग, और उन्हें ओपन-सोर्स व उपयोगकर्ता-हितैषी उपकरणों में बदलकर संरक्षण के लिए व्यावहारिक समाधान तैयार करना। WildTech ऐसे नवाचारों पर केंद्रित है जो सरल, सुलभ और स्थानीय ज़रूरतों के अनुकूल हों, ताकि वन विभागों, शोधकर्ताओं और समुदायों के लिए यह तकनीक उपयोगी साबित हो।

वन्यजीव निगरानी में अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाने में प्रमुख बाधाओं के रूप में उच्च लागत, तकनीकी कौशल की कमी, और वन विभागों की सीमित संस्थागत क्षमता को पहचाना गया है। WCT की WildTech परियोजना का उद्देश्य इन्हीं चुनौतियों का समाधान करना है। यह परियोजना तकनीक-आधारित नवाचारों के माध्यम से संरक्षण से जुड़ी कई जटिल समस्याओं का हल प्रस्तुत करती है — जैसे कि जलीय वन्यजीवों का मछली पकड़ने के जालों में फंसना, रेलवे पटरियों पर ट्रेनों की टक्कर से वन्यजीवों की मृत्यु, या पानी के भीतर कम दृश्यता के कारण प्राणियों की निगरानी में कठिनाई। इन चुनौतियों से निपटने के लिए तकनीकी समाधान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। साथ ही, ये समाधान वन विभाग और अन्य सरकारी प्रवर्तन एजेंसियों को सशक्त बनाते हैं — जिससे न केवल कानून लागू करने की क्षमता मजबूत होती है, बल्कि समय, संसाधनों और प्रयासों की भी बचत होती है। WildTech का लक्ष्य है कि विज्ञान और तकनीक के ज़रिए संरक्षण की दिशा में ठोस और दीर्घकालिक प्रभाव डाला जा सके।
WildTech परियोजना के माध्यम से WCT का उद्देश्य ऐसे तकनीकी उपकरण और समाधान विकसित करना है जो कम लागत, ओपन-सोर्स, दोहराने योग्य (replicable) और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित (customised) हों — ताकि वन्यजीव संरक्षण पर स्थायी और दीर्घकालिक प्रभाव डाला जा सके।
इस परियोजना के अंतर्गत अब तक 15 से अधिक तकनीकी नवाचार विकसित किए जा चुके हैं, जिनका उद्देश्य है: वन्यजीव संरक्षण की प्रभावशीलता और दक्षता को बढ़ाना, निगरानी के कार्य को बेहतर बनाना, और डाटा संग्रह एवं विश्लेषण की प्रक्रिया को अधिक सरल, सटीक और व्यावहारिक बनाना। इन नवाचारों के माध्यम से WCT न केवल संरक्षण को अधिक वैज्ञानिक बना रहा है, बल्कि वन विभागों और नीति-निर्माताओं को भी सशक्त बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
इन नवाचारों में से कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:
१. WCT ने विभिन्न वन्यजीव संरक्षण और निगरानी कार्यों के लिए तीन प्रकार की प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ (Early Warning Systems) विकसित की हैं। इनमें सबसे प्रमुख है:
१. boatBAITS प्रणाली – यह प्रणाली विशेष रूप से नावों की गतिविधियों पर नज़र रखने और मछुआरों व नाव चालकों को वन्यजीवों के संवेदनशील क्षेत्रों से दूर रहने की चेतावनी देने के लिए तैयार की गई है।

boatBAITS के अंतर्गत, नाव ट्रैकिंग उपकरण (tracking devices) लगाए जाते हैं जो संरक्षित क्षेत्रों (Protected Areas) और वन्यजीवों के हॉटस्पॉट के आस-पास नावों की गतिविधियों पर नज़र रखते हैं। यदि कोई नाव प्रतिबंधित क्षेत्र (No-Go Zones) में प्रवेश करती है, तो स्वचालित अलर्ट भेजा जाता है, जिससे नाव चालक तत्काल बाहर निकल सके। इससे न केवल वन्यजीवों की सुरक्षा होती है, बल्कि मछुआरों को भी अनजाने में कानून उल्लंघन से बचाया जा सकता है।
२. Railway Alert प्रणाली – रेलवे अलर्ट एक पूर्व-सूचना आधारित प्रणाली है, जिसे विशेष रूप से उन स्थानों पर लगाया जाता है जहां वन्यजीव अक्सर रेलवे ट्रैक पार करते हैं या ट्रैक के किनारे चलते हैं। इस प्रणाली का उद्देश्य है: वन्यजीवों को पहले ही चेतावनी देना, जब कोई रेल उस दिशा में बढ़ रही हो।
३. Hydrology Sensor Suite (जल प्रवाह संवेदक प्रणाली) – हाइड्रोलॉजी सेंसर सूट एक रीयल-टाइम (वास्तविक समय) पर आधारित डेटा संग्रहण प्रणाली है, जिसे बांधों या बैराज के नीचे स्थित क्षेत्रों में स्थापित किया जाता है। इसका उद्देश्य है: नदियों में जल प्रवाह में अचानक वृद्धि या रुकावट की निगरानी करना। ऐसी स्थितियों में, यह प्रणाली तुरंत अलर्ट भेजती है ताकि नदी तटों पर रहने वाले वन्यजीवों को नुकसान न पहुंचे।
रेलवे अलर्ट अर्ली-वॉर्निंग सिस्टम
भारत में हर साल 20,000 से अधिक वन्यजीवों की मौत रेलवे ट्रैकों पर ट्रेनों की टक्कर से होती है, जैसा कि भारत सरकार के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्टों में दर्ज है। यह एक गंभीर पारिस्थितिक संकट है, विशेष रूप से उन वन क्षेत्रों में जहां रेलवे लाइनों का संचालन होता है। वन्यजीवों की भारी संख्या में मृत्यु से जैव विविधता को गहरा नुकसान होता है। भारतीय रेल को भी इससे संरचनात्मक क्षति, परिचालन में देरी और सार्वजनिक आलोचना का सामना करना पड़ता है। अतीत में जो चेतावनी प्रणालियाँ विकसित की गईं, वे मुख्य रूप से हाथियों के लिए थीं, और उनका उद्देश्य लोको ड्राइवरों को सतर्क करना था। लेकिन ये प्रणालियाँ असफल रहीं क्योंकि ड्राइवरों के पास सटीक रुकने का समय नहीं होता, विशेषकर तेज़ गति वाली ट्रेनों में और ट्रेनों की समयबद्धता और यातायात बाधाओं के कारण वे इन चेतावनियों पर तत्काल कार्रवाई नहीं कर पाते। छोटे वन्यजीवों (जैसे तेंदुआ, हिरण, साही, भालू आदि) के लिए कोई भी प्रभावी चेतावनी प्रणाली अब तक विकसित नहीं हुई थी।

रेलवे लाइन के किनारे एक विद्युत पोल पर स्थापित रेलवे अलर्ट सिस्टम चित्र: वेदांत बारजे
WCT की WildTech टीम ने संरक्षण अनुसंधान टीम के साथ मिलकर एक पूर्व-सावधानी आधारित प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early-Warning System) विकसित की है, जिसका उद्देश्य है वन्यजीवों को रेलवे ट्रैकों से दूर रखना। यह प्रणाली ध्वनि चेतावनियों (sound alarms) पर आधारित है, जो ट्रैक के निकट आने वाले जंगली जानवरों को समय रहते सचेत करती है और उन्हें ट्रैक से हटने के लिए प्रेरित करती है।
२. जमीनी (terrestrial) और जलीय (aquatic) वन्यजीवों की निगरानी और ट्रैकिंग के लिए नवीन, किफायती और प्रभावी तकनीकी समाधान विकसित किए जा रहे हैं।
इसमें मुख्य रूप से ध्वनि-आधारित निगरानी प्रणाली (Passive Acoustic Monitoring Systems) कुछ प्रजातियों जैसे, गंगा नदी की डॉल्फिन, चमगादड़, पक्षी, और हाथी के लिए ध्वनि संकेतों (vocalisations) पर आधारित निगरानी प्रणाली तैयार की जा रही है। ये प्रणालियाँ उन क्षेत्रों में उपयोगी हैं जहाँ दृश्यता कम होती है, जैसे घने जंगल या जलमग्न क्षेत्र।
महंगे और भारी टैग्स की जगह, हम कम लागत वाले, लंबे समय तक चलने वाले, और प्रयोग में आसान टैगिंग समाधानों को विकसित कर रहे हैं। इन टैग्स का उद्देश्य है कि वन्यजीवों को बिना किसी असुविधा के ट्रैक किया जा सके, और साथ ही निगरानी लागत भी कम हो।
चंबल नदी में अंडरवाटर इमेजिंग सोनार के माध्यम से प्राप्त नतीजे।

एक घड़ियाल को, केंद्रीय संदर्भ बिंदु (central reference point) के दाईं ओर, लगभग 4 मीटर गहराई पर स्पष्ट रूप से देखा गया।

एक गंगा नदी डॉल्फिन को तिरछे तैरते हुए (side-swimming) अवस्था में कैप्चर किया गया।
३. इस तकनीक के माध्यम से दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए भविष्य के अनुप्रयोग (Extended Applications):

Pangolin BurrowCam एक अत्याधुनिक उपकरण है, जिसे विशेष रूप से भूमिगत या बिल में रहने वाले प्राणियों (fossorial animals) के अध्ययन और निगरानी के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह एक रिमोट-ऑपरेटेड (remotely operated) और टेलीमीटर युक्त (telemetered) वाहन है। संरचना में यह एक लघु टैंक (miniature tank) की तरह दिखता है जो बीहड़ और असमतल इलाकों में भी आसानी से चल सकता है। इसमें एक उच्च-रिज़ॉल्यूशन कैमरा लगाया गया है जो इमेज और वीडियो रिकॉर्डिंग दोनों की क्षमता रखता है।

बाईं ओर: यूएवी (UAVs – ड्रोन) के लिए डिज़ाइन किए गए थर्मल मॉड्यूल, इन्हें इस तरह से अनुकूलित किया गया है कि इन्हें स्मार्टफोन में प्लग करके थर्मल वीडियो फीड देखी और रिकॉर्ड की जा सकती है। दाईं ओर: थर्मल इमेजिंग मॉड्यूल से ली गई तस्वीर में एक उड़ता हुआ चमगादड़ (Indian Flying Fox) स्पष्ट रूप से दिख रहा है, जो रात के समय की निगरानी के लिए इस तकनीक की प्रभावशीलता को दर्शाता है।