संरक्षण व्यवहार विभाग की स्थापना मानव व्यवहार के उन सामाजिक चालकों की समझ के माध्यम से संरक्षण कार्रवाई पर अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए की गई थी जिनका प्राकृतिक पर्यावरण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
इस विभाग की टीम में विभिन्न विषयों के सामाजिक वैज्ञानिक शामिल हैं, और ये समुदाय-आधारित जलवायु कार्रवाई (community-based climate action) के लिए डेटा-संचालित इनपुट इकट्ठा करते हैं जिसके लिए अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और मानव विज्ञान के ढांचे अपनाए जाते हैं।
संरक्षण व्यवहार टीम वर्तमान में निम्नलिखित चार परियोजनाओं पर काम कर रही है:
हीटर ऑफ़ होप
हमारे संरक्षण अनुसंधान विभाग द्वारा मध्य भारत के ग्रेटर ताडोबा लैंडस्केप में लगभग एक दशक से चले आ रहे बाघ-निघरानी अध्ययनों से हमें क्षेत्र के वन्यजीव गलियारों (wildlife corridors) में आने वाली बाधाओं की स्पष्ट रूप से पहचान करने में सहायता मिली है। इसी के साथ उन गांवों की पहचान में भी जहां बाघों के साथ नकारात्मक प्रतिक्रिया की उच्च संभावना है।
इसके पश्चात हमारे द्वारा किए गए व्यापक आर्थिक और मनोसामाजिक अध्ययनों ने हमें वनों के पतन के प्रमुख कारणों में से एक – निरंतर जलावन के लिए लकड़ी का दोहन – की पहचान करने में मदद की।
महिलाओं को जंगल से लकड़ी लाने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। इस कार्य में शारीरिक श्रम के अतिरिक्त किसी जंगली जानवर से सामना होने की संभावना भी हमेशा बनी रहती है (बाएं)। बाघ द्वारा मारे गए एक व्यक्ति के लिए बनाया गया स्मारक (दाएं)। (दोनों तस्वीरें रिजवान मीठावाला/WCT द्वारा ली गईं हैं)
जलावन के लिए लकड़ी के दोहन से होने वाले वनों के पतन से उस भूक्षेत्र की जल और पारिस्थितिक सुरक्षा, और अंततः आर्थिक विकास, पर दुष्प्रभाव पड़ता है। लकड़ी इकट्ठा करने के लिए जंगलों में लोगों की आवाजाही से उनपर बड़े मांसाहारी वन्यजीवों से सामना होने का खतरा भी बना रहता है जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की संभावना बनती है। अध्ययनों ने जलावन के लिए लकड़ी के उपयोग के नकारात्मक स्वास्थ्य परिणामों पर भी प्रकाश डाला है, ख़ासकर महिलाओं और बच्चों पर। इसके अतिरिक्त घरेलू उपयोग के लिए जलावन लकड़ी इकट्ठा करने का बोझ भी अधिकतर महिलाओं के कंधों पर होता है जो उनके ऊपर पहले से मौजूद श्रमभार में बढ़ोतरी करता है।
हमने अंतःविषय अनुसंधान के द्वारा घरों के लिए बायोमास-ईंधन से चलने वालेऊर्जा-कुशल वॉटर हीटर का विकास किया है जिसे अब बड़े पैमाने पर अपनाया जा रहा है। यह हीटर जलावन के लिए , लकड़ी की खपत, वनों का पतन, मानव-मांसाहारी पशु संघर्ष, सांस की तकलीफ, और महिलाओं के कठिन परिश्रम को कम कर रहा है।
इस परियोजना की सफलता के कारण WCT ने जैव विविधता के लिए UNDP Mahatma Award for Biodiversity 2023 भी जीता।
सितंबर २०२३ में WCT टीम UNDP Mahatma Award for Biodiversity 2023 प्राप्त करते हुए।
राजकोषीय सिद्धांत (Fiscal Principles): प्राकृतिक पूंजी (Natural Capital) के लिए प्रोत्साहन
भारत में वित्त आयोग द्वारा कार्यान्वित वर्तमान नीतियाँ वन आवरण (राज्य में वनों के फैलाव) के आधार पर धन के हस्तांतरण (devolution) को चिन्हित करती हैं। घास के मैदानों, आर्द्रभूमियों और रेगिस्तानों जैसे,अन्य महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों के संरक्षण के लिए किसी भी राज्य सरकार, स्थानीय निकायों, समुदायों और व्यक्तियों के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं है।
अतः इस परियोजना का लक्ष्य न केवल प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों की सुरक्षा के लिए एक तंत्र के रूप में सार्वजनिक वित्त (public finance) का उपयोग करना है, बल्कि इन पारिस्थितिकी प्रणालियों में, और इसके आसपास, रहने वाले समुदायों की विकास आवश्यकताओं को भी सुरक्षित करना है। साथ ही इस परियोजना का एक और लक्ष्य है१५वें वित्त आयोग द्वारा सुझाए गए मौजूदा हस्तांतरण फॉर्मूले के दायरे का विस्तार करना ताकि केवल ‘हरित आवरण’ (green cover) पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, घास के मैदानों, झाड़ियों, आर्द्रभूमि और रेगिस्तान जैसे गैर-वन पारिस्थितिकी प्रणालियों को बनाए रखने के लिए भी प्रोत्साहन तैयार किया जा सके।
WCT निधि हस्तांतरण (fund devolution) पर साक्ष्य-आधारित नीति सिफारिशें प्रदान करेगा, जो रेगिस्तान, घास के मैदानों, आदि,जैसे गैर-वन पारिस्थितिकी प्रणालियों के संरक्षण को प्रोत्साहित करती है। (फोटो अनिकेत भातखंडे/WCT द्वारा)
इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, WCT की यह परियोजना वित्त आयोग को निधि हस्तांतरण पर साक्ष्य-आधारित और वैज्ञानिक रूप से मजबूत नीतिगत सिफारिशें प्रदान करेगी जो की पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहित करेंगी और इसे एक संबद्ध उद्देश्य (allied objective) के रूप में बढ़ावा देंगी।
वनरक्षकों की कार्य प्रेरणा (work motivation) का आकलन
भारत के वनरक्षक दुनिया के कुछ सबसे मूल्यवान पारिस्थितिक तंत्रों,और विभिन्न लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतिम आश्रयों, की रक्षा करते हैं। उनका कार्यभार में शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण और मनोवैज्ञानिक रूप से तनावपूर्ण परिस्थितियां आम हैं। इनके कार्यभार में सुरक्षा नीतियों और कानून लागू करने के अंतिम मील कार्यान्वयन को पूरा करने की ज़िम्मेदारी होती है जिसमे इनकी सहायता के लिए केवल एक से तीन दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी होते हैं।
चूंकि व्याघ्र आरक्षों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में वन रक्षकों का मनोबल अत्यंत महत्वपूर्ण है इसलिए उनकी कार्य प्रेरणा और मनोवैज्ञानिक कल्याण को समझना, उसे बनाए रखना, और उसमें सुधार करना भी महत्वपूर्ण है।
WCT की संरक्षण मनोवैज्ञानिक पन्ना टाइगर रिजर्व, मध्य प्रदेश में एक वनरक्षक का साक्षात्कार लेते हुए।
हमारी टीम अग्रणी (फ्रंटलाइन) वन कर्मचारियों की कार्य प्रेरणा और मानसिक स्वास्थ्य को समझने के लिए राज्य वन विभागों के साथ मिलकर काम करती है। उनके कार्य-जीवन और कार्य-संस्कृति को समझने के लिए औद्योगिक मनोविज्ञान (Industrial Psychology) के उपकरणों का उपयोग किया जाता है ताकि उनके कार्यभार और रिहाईश की स्थिति में सुधार के लिए नीतिगत सुझाव दिए जा सकें।
इस परियोजना के परिणामस्वरूप व्याघ्र आरक्षों के वन छेत्राधिकारियों (RFOs) के लिए मानव संसाधन प्रबंधन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए गए हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के उपयोग से मानव-वन्यजीव संघर्ष की रोकथाम
हमारी टीम ने गूगल के AI फॉर सोशल गुड प्रोग्राम के सहयोग से महाराष्ट्र में मानव-वन्यजीव संघर्ष के निवारण के लिए AI-आधारित पूर्वानुमान मॉडल विकसित किए हैं। इन पूर्वानुमानित मॉडल ने भविष्य के संघर्ष हॉटस्पॉट की पहचान करने में मदद की है। इन हॉटस्पॉट के आसपास के गांवों को चिन्हित कर उन्हें ‘संवेदनशील’ माना गया है, जिसके फलस्वरूप सरकार की श्यामा प्रसाद मुखर्जी जन वन विकास योजना को जिले के १०० से अधिक गांवों तक विस्तारित करने में मदद मिली है।
जंगल से जलावन की लकड़ी इकट्ठा करता एक स्थानीय व्यक्ति (बाएं)। महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के ब्रम्हपुरी वन प्रभाग में WCT के कैमरा ट्रैप द्वारा ली गई बाघ की तस्वीर(दाएं)। इस क्षेत्र में बढ़ता मानव-बाघ संघर्ष एक गंभीर समस्या है। (तस्वीरें: WCT/महाराष्ट्र वन विभाग)
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