डॉ.अनिश अंधेरिया
अध्यक्ष
कार्ल ज़ीस संरक्षण पुरस्कार से सम्मानित, डॉ.अनिश अंधेरिया, लीड (LEAD) के फेलो और वाइल्ड लाइफ कंझरवेशन ट्रस्ट (वनजीवन संरक्षण न्यास) के अध्यक्ष हैं। इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी से डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी करने के बाद, अनिश ने, नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज, बैंगलोर से वनजीवन जीव विज्ञान, और संरक्षण में मास्टर डिग्री के साथ, अपनी लालसा को आगे बढ़ाया। वह शिकारी-शिकार संबंधों में, क्षेत्र विशेषज्ञता के साथ -साथ, एक बड़े मांसाहारी जीवविज्ञानी भी हैं। एक प्रतिष्ठित वन्यजीव फोटोग्राफर, अनिश ने, भारत के कुछ सुदूरतम वन्यजीव अभ्यारण्यों की तस्वीरें खींची हैं। उन्होंने भारतीय वन जीवन पर, दो पुस्तकों का सह-लेखन किया है, और कई अन्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशनों में योगदान दिया है।
वे राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA)और महाराष्ट्र और जम्मू और कश्मीर राज्य वन्यजीव बोर्ड, दोनों के सदस्य हैं। अनिश, महाराष्ट्र तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण, और गुजरात राज्य शेर संरक्षण सोसाइटी के सदस्य हैं। वह ‘इंडिया क्लाइमेट कोलैबोरेटिव’ (ICC) की आयोजन समिति, और ‘बॉम्बे नेचरल हिस्ट्री सोसाइटी ‘ (BNHS) की गवर्निंग काउंसिल का भी हिस्सा हैं। उन्होंने प्रसिद्ध किड्स फॉर टाइगर्स पहल की स्थापना में,एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है| यह एक राष्ट्रव्यापी संरक्षण शिक्षा कार्यक्रम है, जो १७ वर्षों में, लाखों स्कूली बच्चों तक पहुँच चुका है।
इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी से प्रतिष्ठित, पूर्व छात्र पुरस्कार विजेता, अनिश,एक स्वाभाविक संचारक हैं, और भारत के अग्रणी प्रेरक वक्ताओं में से एक हैं। उन्होंने हज़ारों लोगों को, प्रकृति की खुशियों,और प्रकृति संरक्षण के औचित्य से परिचित कराया है।
अमि गुमास्ता
सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए पॉल हैरिस पुरस्कार से सम्मानित, अमि गुमास्ता, वित्त में स्नातकोत्तर हैं और पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। उन्होंने दो दशक से भी अधिक समय पहले, विकासात्मक क्षेत्र में अपना करियर ADAPT (पूर्व में स्पास्टिक्स सोसाइटी ऑफ इंडिया) के साथ शुरू किया था, जहां वह निदेशक – वित्त और परियोजनाएं और शासकीय निकाय की सदस्य थीं। वे वर्तमान में, हेमेंद्र कोठारी फाउंडेशन और लीलावती हिंदू सेनिटोरियम की वरिष्ठ सलाहकार हैं। उनकी विशेषज्ञता, प्रणालियों और प्रक्रियाओं की संरचना करने, और बजटीय नियंत्रण स्थापित करने में निहित है।अमि के पास परियोजना विकास, परियोजना प्रबंधन और धन,द्रव्य मुद्रा दाता प्रबंधन के क्षेत्रों में व्यापक अनुभव है। उन्होंने,कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी
(CSR) छत्र के तहत, अग्रणी भारतीय कॉर्पोरेट घरानों, और सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों द्वारा समर्थित परियोजनाओं के प्रबंधन के अलावा, UNICEF(यूनिसेफ़), स्वीडिश अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी, कनाडाई अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और BMZ, जर्मनी द्वारा समर्थित परियोजनाओं का सफलतापूर्वक प्रबंधन किया है।
बजट के निर्माण और प्रबंधन, और परियोजना विकास और प्रबंधन में,उनका अनुभव काम आता है। विकासात्मक क्षेत्र के परिदृश्यों की आवश्यक गतिशीलता के साथ, प्रक्रियाओं के सम्मिश्रण का उनका अनूठा दृष्टिकोण, उन्हें दूसरों से अलग करता है।
अतुल मुकणे
WCT अकाउंट्स टीम का एक अभिन्न अंग, अतुल के पास NGO (गैर सरकारी संस्था) को फंड प्रबंधन और अकाउंटिंग में सहायता करने का, २० वर्षों से अधिक का अनुभव है। WCT से जुड़ने से पहले, वे चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) के साथ काम करते थे, जहां उन्हें, वित्त और लेखा के वरिष्ठ प्रबंधक का पद हासिल था, अतुल, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया के साथ भी काम कर चुके हैं । उनके पास मुंबई विश्वविद्यालय से वाणिज्य में, स्नातकोत्तर की डिग्री है, और पर्यावरण संबंधी मुद्दों के प्रति उनकी गहरी रुचि है।
अतुल, WCT में लेखांकन, ऑडिट, वैधानिक अनुपालन, वित्तीय योजना और WCT की वित्तीय गतिविधियों की निघरानी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
आदित्य जोशी
आदित्य जोशी, राष्ट्रीय जैविक विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षित, वन्यजीव जीवविज्ञानी हैं। अपने मासटर्स की थीसिस के हिस्से के रूप में, उन्होंने संरक्षण आनुवंशिकी और भू-दृश्य पारिस्थितिकी के संयोजन का उपयोग करके, बाघों की आबादी की कनेक्टिविटी पर पहला अध्ययन किया है, जो बाघों द्वारा लंबी दूरी के फैलाव की पुष्टि करता है।उनको विद्योपार्जन (अकादमिक) और संरक्षण उत्कृष्टता के लिए, कारंथ जे. पॉल गेटी पुरस्कार, २०१०, से किया जा चुका है। उन्होंने बाघ गलियारों के अधिभोग सर्वेक्षण और संरक्षित क्षेत्रों के बाहर, बाघ की निघरानी पर बड़े पैमाने पर काम किया है। आदित्य, वनजीवन संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए, लघु वृत्तचित्र बनाने में रुचि रखते हैं, और उन्होंने रामनगर में, गिद्धों पर एक वृत्तचित्र का निर्माण भी किया है।
अमोल पदे
मिलनसार और सुगम्य अमोल पदे, WCT में मानव संसाधन कार्य के प्रमुख हैं। अमोल के पास वेलिंगकर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, मुंबई, से मानव संसाधन में मासटर्स डिग्री है, और उनके पास मानव संसाधन प्रबंधन में,१६ वर्षों से अधिक का समृद्ध और विशाल अनुभव है। उन्होंने विभिन्न औद्योगिक संस्कृतियों में काम किया है और वॉकहार्ट, मिलान फार्मास्यूटिकल्स, यूरेका फोर्ब्स, हैमिल्टन ग्रुप, डॉ. बत्रा और जिंदल और आर्या ग्रुप में, अपनी मानव प्रबंधन क्षमताओं को विकसित किया है। अमोल, WCT की सफलता का एक अभिन्न अंग हैं, और वे यह सुनिश्चित करते हैं, की कर्मचारियों की सहभागिता और प्रेरणा का स्तर, उच्चतम स्तर पर हो, जिसके परिणामस्वरूप, यह सबसे अधिक उत्पादक टीमों में से एक है,जिसका काम, ज़मीनी संरक्षण पर उच्च प्रभाव डालता है।
विवेक तुमसरे
विवेक ने, भारती विद्यापीठ विश्वविद्यालय, पुणे, से पर्यावरण विज्ञान में मासटर्स डिग्री प्राप्त की है। कैमरा-ट्रैपिंग के माध्यम से, बड़े मांसाहारियों की निघरानी पर बड़े पैमाने पर काम करने के बाद, उनकी लालसा ने उन्हें, WildCRU (वाइल्डक्रू), ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, UK से, अंतर्राष्ट्रीय वनजीवन संरक्षण अभ्यास में, स्नातकोत्तर डिप्लोमा हासिल करने के लिए प्रेरित किया।
WCT में, विवेक, वर्तमान में, मध्य भारतीय परिदृश्य में, बड़े मांसाहारी जानवरों के लिए कैमरा ट्रैपिंग अभ्यास का प्रबंधन करते हैं। WCT के क्षमता निर्माण अभियान के हिस्से के रूप में, वह वन्यजीव आबादी आकलन तकनीकों में, अग्रिम पंक्ति के, वन कर्मचारियों को भी प्रशिक्षित करते हैं।
प्रशांत देशमुख
प्रशांत ने महाराष्ट्र पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, नागपुर, के क्रांतिसिंह नाना पाटिल कॉलेज से, पशु चिकित्सा विज्ञान और पशुपालन में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत, अमेरिका के कैनसस डिपार्टमेंट ऑफ वाइल्डलाइफ एंड पार्क्स में, एक शोध सहायक के रूप में की, जहाँ उन्होंने सफेद पूंछ वाले हिरणों में, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल परजीवियों की व्यापकता का अनुमान लगाने पर काम किया। भारतीय वनजीवन ट्रस्ट (WTI) में, एक आपातकालीन राहत पशुचिकित्सक के रूप में, प्रशांत ने तराई परिदृश्य में, मानव-बाघ संघर्ष स्थितियों पर प्रतिक्रिया दी, और WTI कैप्टिव हाथी देखभाल कार्यक्रम का प्रबंधन किया। प्रशांत को सैटेलाइट टेलीमेट्री डेटा प्रबंधन, और जंगली स्तनधारियों के हस्त-पालन का भी अनुभव है। वह WCT में रैपिड रिस्पांस टीम का हिस्सा हैं।
डॉ नचिकेत केळकर
डॉ नचिकेत को, पारिस्थितिक और सामाजिक-राजनीतिक प्रक्रियाओं की अंतःविषय समझ में गहरी दिलचस्पी है, जो मीठे पानी के पारिस्थितिक तंत्र में जैव विविधता संरक्षण और मानव आजीविका सुरक्षा को प्रभावित करते हैं। अपनी Ph.D. के लिए, उन्होंने अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड द एनवायरनमेंट (ATREE), बैंगलोर, और मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन में, भारत के गंगा के मैदानी इलाकों की नदी मत्स्य पालन में, सामाजिक-पारिस्थितिक संघर्षों पर शोध किया। इससे पहले, उन्होंने २००८ में, नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज-TIFR से, वन्यजीव जीव विज्ञान और संरक्षण में मासटर्स डिग्री प्राप्त की थी। नचिकेत, २००७ से, बिहार और आसपास के क्षेत्रों में, गंगा नदी डॉल्फ़िन और नदी पकड़ मत्स्य पालन का अध्ययन कर रहे हैं। पिछले दो दशकों में, उनका काम समुद्री घास के मैदानों और मूंगा चट्टान पारिस्थितिकी तंत्र, पतंगे, स्थलीय पौधे, डुगोंग, समुद्री कछुए, मगरमच्छ, जलपक्षी, ऊदबिलाव और चमगादड़ तक फैला हुआ है। उनके कार्य के अन्य क्षेत्रों में, जनसंख्या पारिस्थितिकी और आकलन, पर्यावरण-जल विज्ञान, संवेदी पारिस्थितिकी, पर्यावरण इतिहास और बायेसियन सांख्यिकी शामिल हैं। वह IUCN सिटासियन विशेषज्ञ समूह के सदस्य हैं, और दक्षिण एशियाई नदी डॉल्फ़िन पर, अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग की टास्क टीम के सह-संयोजक थे। अनुसंधान के संरक्षण और नीति अनुप्रयोगों के अलावा, वह वन विभागों, छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए, क्षमता निर्माण कार्यक्रमों को लागू करने में गहरी रुचि रखते हैं।
नचिकेत, २०२१ में WCT में शामिल हुए, और नवगठित रिवराइन इकोसिस्टम और आजीविका कार्यक्रम का नेतृत्व करते हैं।
संजय ठाकुर
संजय के पास, मध्य भारतीय परिदृश्य पर विशेष ध्यान देने के साथ, वनजीवन संरक्षण में, दो दशकों का अनुभव है। पुणे में इकोलॉजिकल सोसाइटी से, पारिस्थितिक बहाली और वन्यजीव प्रबंधन में, डिप्लोमा प्राप्त करने के बाद, उन्होंने भारतीय वन प्रबंधन संस्थान, भोपाल, के साथ एक परियोजना के लिए उत्तरी पश्चिमी घाट में, मानव-तेंदुए संघर्ष और मध्य प्रदेश में सपेरों का अध्ययन किया। उन्होंने ट्रैफिक-इंडिया के लिए, वन्यजीव शिकार में पारधी जनजाति की भागीदारी का भी अध्ययन किया।डबल्यूडबल्यूएफ़( WWF)-भारत के बाघ संरक्षण कार्यक्रम के एक वरिष्ठ परियोजना अधिकारी के रूप में, उन्होंने कान्हा-पेंच कॉरिडोर में उनके कार्यालय का नेतृत्व किया। इस दौरान, उन्होंने वन्यजीव कानून प्रवर्तन पर, फ्रंटलाइन वन कर्मचारियों के लिए, प्रशिक्षण शुरू किया और सतपुड़ा-माइकल लैंडस्केप के लिए, अपनी तरह का पहला मोबाइल जागरूकता वाहन डिजाइन किया। रेपटाइल संरक्षण में उनके व्यापक कार्य के लिए, उन्हें इंडियन हर्पेटोलॉजिकल सोसाइटी द्वारा, सर्प मित्र पुरस्कार मिला और उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में, सत्रह वैज्ञानिक शोधपत्र भी लिखे हैं।
अनिकेत भातखंडे
अनिकेत के पास, मुंबई विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में मासटर्स डिग्री है, और वह पूर्व में, मनीलाइफ़ के लिए, वित्त पत्रकार के रूप में काम कर चुके हैं। इतिहास के शौकीन, अनिकेत ने रामनारायण रुइया कॉलेज के इतिहास पर, एक कॉफी टेबल बुक पर काम किया और इसके अर्थशास्त्र विभाग के इतिहास को भी संग्रहीत किया। वह एक शौकीन साइकिल चालक हैं, और उन्हें देर रात, शहर की खाली सड़कों पर साइकिल चलाते हुए देखा जा सकता है| कभी-कभी वह सड़क के किनारे सो भी जाते हैं| एक फुटबॉलर और कोच, अनिकेत, पिछले १२ वर्षों से, मुंबई ज़िला फुटबॉल एसोसिएशन के सदस्य हैं। WCT में, अनिकेत, संरक्षण व्यवहार विभाग के प्रमुख हैं, जो अमूल्य अंतर्दृष्टि बनाने के लिए, सामाजिक संचालन और उनकी इंटरैक्शन (परस्पर सम्बन्धों) को समझने के लिए, मनोसामाजिक और सामाजिक-आर्थिक अध्ययन करता है। इस तरह की अंतर्दृष्टि का उपयोग, संरक्षण उन्मुख सामुदायिक हस्तक्षेप शुरू करने के लिए किया जाता है।
विक्रांत जठार
मुंबई विश्वविद्यालय से ज़ूलोजी में स्नातकोत्तर की डिग्री पूरी करने के बाद, विक्रांत ने WCT से जुड़ने से पहले, दो साल तक, फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल रिसर्च एडवोकेसी एंड लर्निंग (FERAL) में, JRF के रूप में काम किया। FERAL में, उन्होंने, संकेतक के रूप में, तितलियों का उपयोग करते हुए, विभिन्न भूमि उपयोग प्रकारों में, जैव विविधता पर बहाली के प्रभावों का अध्ययन किया। वह अध्ययन करने वाली कैमरा ट्रैपिंग टीमों का भी हिस्सा थे, ए) पश्चिमी घाट में शेनकोट्टई गैप में वन्यजीवों की आवाजाही पर रैखिक बाधाओं के प्रभाव और बी) बनेरघट्टा और होसुर परिदृश्य में, हाथियों की जनसांख्यिकी और आवाजाही। उन्हें तितलियों और उनके वितरण में गहरी रुचि है।
हिमांशु जोशी
वन्य जीवन के प्रति उत्साह रखने वाले, एक उत्साही पशुचिकित्सक, हिमांशु, बॉम्बे वेटरनरी कॉलेज के एक होनहार पूर्व छात्र हैं, जिन्होंने सेंटर फॉर वाइल्डलाइफ फोरेंसिक एंड फोरेंसिक (CWFH), NDVSU से वन्यजीव स्वास्थ्य प्रबंधन में पीएचडी की है। अपने परास्नातक और पीएचडी अनुसंधान के अकादमिक पाठ्यक्रम के दौरान, उन्होंने घड़ियाल बच्चों की मृत्यु के कारणों की जांच की, विभिन्न आणविक उपकरणों का उपयोग किया, और राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य में, घड़ियाल में रिश्तेदारी का अध्ययन करने के लिए, क्षेत्र सर्वेक्षण किया, एक शोध, जो अपनी तरह का पहला था। एक पशुचिकित्सक के रूप में, उन्होंने मुंबई में मानव-तेंदुए संघर्ष की स्थितियों को सुलझाने का काम किया है।हिमांशु ने, CWFH में, एक रिसर्च एसोसिएट के रूप में अपना करियर शुरू किया, जहाँ उन्होंने आणविक मार्करों का उपयोग करके प्रजातियों की पहचान और रोग निदान के लिए तकनीक विकसित करने और नमूनों के प्रसंस्करण में सहायता की। हिमांशु, पशु चिकित्सकों की उस टीम का हिस्सा थे, जिसने मध्य भारत में, विभिन्न संरक्षित क्षेत्रों का दौरा, जंगली जानवरों के स्वास्थ्य परीक्षण, रोग निघरानी स्थानांतरण, और उपचार के लिए किया था। जब वह काम नहीं कर रहे होते हैं, तो वह शास्त्रीय वाद्य संगीत के बारे में पढ़ना और उसे सुनना पसंद करते हैं,जो कभी-कभी फ्यूजन में भी बदल जाता है।
सी सम्युक्ता
सम्युक्ता, एमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा से, फोरेंसिक साइंस में पोस्ट ग्रेजुएट हैं। उनके पास, भारत में सरकारी, कॉर्पोरेट और शिक्षा क्षेत्रों के विविध दर्शकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम डिजाइन करने, आयोजित करने, और दर्शकों तक ले जाने का, १० वर्षों से अधिक का अनुभव है। उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय, दोनों स्तरों पर, नीति परिवर्तन के लिए, कई सफल अभियानों पर काम किया है, जिन्होंने वन्यजीवों के कल्याण, और अवैध व्यापार को प्रभावित किया है, जैसे की एंटी-शार्क फ़िन्निंग अभियान, और पैंगोलिन की CITES अपेंडिक्स १ सूची।
WCT में, वन्यजीव कानून प्रवर्तन प्रशिक्षण टीम के हिस्से के रूप में, सम्युक्ता, वन्यजीव अपराध का पता लगाने, और प्रवर्तन के लिए प्रभावी और टिकाऊ तंत्र बनाने के लिए, वन्यजीव संरक्षण के प्रति, अपने जुनून के साथ, फोरेंसिक और प्रशिक्षण में, अपने कौशल का उपयोग करना चाहती हैं।
हेमलता गहलोत
हेमलता, फ्रैंकफिन इंस्टीट्यूट ऑफ एयर होस्टेस ट्रेनिंग, मुंबई, से डिप्लोमा धारक हैं,और उन्होंने अपने करियर की शुरुआत, प्रशासन विभाग में, फार्मास्युटिकल उद्योग में काम करके की थी। उनके पास प्रमुख प्रशासनिक कार्यों का व्यापक अनुभव है, और अपने करियर में उन्होंने फ्रंट डेस्क, यात्रा, विक्रेता और सुविधा प्रबंधन सहित, कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक ज़िम्मेदारियाँ संभाली हैं।
WCT में, हेमा फ्रंट डेस्क संचालन, और सुविधा प्रबंधन सहित, प्रशासनिक कार्यों का नेतृत्व करती हैं।
योगी रामचन्द्रन
योगी एक वेबसाइट डेवलपर हैं, जिनका वनजीवन संरक्षण के प्रति, गहरा जुनून है। WCT में शामिल होने से पहले, उन्होंने, BSFI क्षेत्र में, विभिन्न संगठनों के लिए, एक वेबसाइट प्रबंधक के रूप में, मूल्यवान अनुभव प्राप्त किया।
WCT में, योगी, कई प्रकार के कार्यों के लिए उत्तरदायी हैं, जिसमें वेबसाइट विकास, साइट और उसकी सामग्री का नियमित रखरखाव, और नियमित अप्डटेस लागू करना, यह सुनिश्चित करने के लिए, की वेबसाइट, कंपनी के लक्ष्यों और उद्देश्यों के साथ संरेखित हों।
पूजा देऊलकर
पूजा देवूलकर ने, मुंबई स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पब्लिक पॉलिसी (ऑटोनॉमस) से, अर्थशास्त्र में, मास्टर्स डिग्री प्राप्त की है। अपने पाठ्यक्रम के दौरान, पूजा ने, WCT के साथ, रिसर्च फेलो के रूप में काम किया। इससे उन्हें, राष्ट्रीय उद्यानों के आसपास रहने वाले समुदायों को समझने के लिए, आर्थिक सिद्धांतों की कक्षा में सीखी गई बातों को लागू करने में सहायता मिली। उन्होंने सामाजिक क्षेत्र में, विभिन्न संगठनों के साथ काम किया है – गुजरात के डांग के आदिवासी समुदायों के बांस कारीगरों के साथ, एसबीआई यूथ फॉर इंडिया फेलो के रूप में काम करने से लेकर, एक सामाजिक उद्यम के साथ, नासिक के टमाटर किसानों के साथ काम करने तक, एक विश्लेषक के रूप में काम करने तक, एक सीएसआर परामर्श। इससे उन्हें प्रोत्साहन नुरूप नीतियों में कमियों की पहचान करने में सहायता मिली, जो उप-इष्टतम परिणामों की ओर ले जाती हैं, एक ऐसा क्षेत्र जिसे, वह अपने काम के माध्यम से, आगे तलाशने का इरादा रखती हैं।
जब वह पढ़ नहीं रही होती हैं, या शास्त्रीय संगीत नहीं सुन रही होती हैं, या अपनी चटोरी ज़ुबान के साथ, शहर की खोज नहीं कर रही होती हैं, तो वह सिनेमाई ब्रह्मांड में, मंत्रमुग्ध होकर देखी गई नवीनतम फिल्म, के प्रति लालायित पायी जा सकती हैं।
तमन्ना अहमद
तमन्ना के पास अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु से, एम.ए. डेवलपमेंट की डिग्री है। TISS में CSR नॉलेज सेंटर के साथ काम करते हुए, अपनी यात्रा के दौरान, उन्हें पहली बार संरक्षित क्षेत्र के आसपास रहने वाले समुदायों, और वन विभाग के बीच तनाव का सामना करना पड़ा। वह अनुभव उनके साथ रहा और WII में इंटर्नशिप और WCT के साथ फेलोशिप के माध्यम से, उनके मासटर्स कार्यक्रम के दौरान, इसे और आगे बढ़ाया गया, जहां उन्होंने वन रक्षकों और समुदायों के बीच, इंटरफेस को देखा। तमन्ना को यात्रा करना, स्थानों की खोज करना, और सांस्कृतिक पहचान को समझना, पसंद है।
WCT में, संरक्षण व्यवहार टीम के एक भाग के रूप में, वह संरक्षण में शामिल विभिन्न हितधारकों की गहरी समझ प्राप्त करने के लिए, गुणात्मक अनुसंधान का उपयोग करती है।
एस्थर चेट्टियार
मुंबई विश्वविद्यालय से वाणिज्य में स्नातकोत्तर, एस्थर ने NIEM, मुंबई से इवेंट मैनेजमेंट में P.G. डिप्लोमा हासिल किया है, और मैंगो (U.K.) से, एनजीओ वित्तीय प्रबंधन प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम भी सफलतापूर्वक पूरा किया है। उनके पास, एक एनजीओ के साथ, खातों को संभालने और फंड की निघरानी करने का, १० साल का अनुभव है। इसके अलावा, वह बच्चों की पूरक शिक्षा और रचनात्मक कौशल विकास कार्यक्रम में, सक्रिय रूप से शामिल थीं।
WCT की वित्त टीम के एक भाग के रूप में, एस्थर, वर्तमान में दिन-प्रतिदिन के वित्तीय लेनदेन को संभाल रही हैं।
ललित जाधव
ललित एक तकनीकि पृष्ठभूमि से आते हैं, और अपने करियर में लगातार आगे बढ़ने का जज़्बा रखते हैं। बहुत कम उम्र में, अपनी आजीविका कमाने के लिए मजबूर होने के कारण, उन्होंने नाइट कॉलेज में अपनी शिक्षा जारी रखी। उन्होंने दिन भर काम करने के बाद, कक्षाओं में भाग लेते हुए, अपना सिविल ड्राफ्ट्समैन और ऑटोकैड सर्टिफिकेट कोर्स, सफलतापूर्वक पूरा किया।
WCT की शिक्षा टीम के हिस्से के रूप में, ललित, फील्ड टीमों के प्रशासन और लॉजिस्टिक आवश्यकताओं का ध्यान रखते हैं। वह WCT के नागपुर कार्यालय की दैनिक प्रशासनिक आवश्यकताओं की भी देखरेख करते हैं।
प्राची परांजपे
प्राची के पास, मुंबई विश्वविद्यालय के एप्लाइड साइकोलॉजी विभाग से, सामाजिक मनोविज्ञान में मासटर्स डिग्री है। उन्होंने अपने मासटर्स कोर्स के दौरान,WCT के साथ एक रिसर्च फेलो के रूप में काम किया है। जंगलों और यात्रा करने में प्राची की रुचि ने, उन्हें, पगमार्क नामक एक ट्रैवल कंपनी में शामिल होने के लिए प्रेरित किया, जहां, उन्होंने पूरे भारत में, शिविरों का नेतृत्व करते हुए, पांच साल तक काम किया। अपनी स्नातक की डिग्री हासिल करने के दौरान, उन्होंने दो साल तक, पुणे के झुग्गी-झोपडियों की लड़कियों के लिए, जीवन-कौशल सुविधा प्रदाता के रूप में काम किया। समुदायों और समूह व्यवहार को समझने में उनकी रुचि ने, उन्हें सामाजिक मनोविज्ञान को अधिक गहराई से अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया। एक रिसर्च फेलो के रूप में, WCT के साथ काम करने से, संरक्षण के प्रति उनके दृष्टिकोण को और विकसित करने में सहायता मिली।
WCT में, वह संरक्षण व्यवहार विभाग में, एक सामाजिक मनोवैज्ञानिक के रूप में काम करती हैं। वह संरक्षण के लिए विभिन्न मनोवैज्ञानिक, विशेष रूप से मनोसामाजिक, मापदंडों का आकलन करती हैं।
डॉ. विजय ताते
आयुर्वेद चिकित्सा का अभ्यास करने के लिए योग्य, विजय के पास, सार्वजनिक स्वास्थ्य में, स्नातकोत्तर डिग्री भी है। प्रधान मंत्री ग्रामीण विकास फेलो (PMRDF) के रूप में, उन्होंने फेलोशिप के ३.५ वर्षों के लिए, महाराष्ट्र के गोंदिया ज़िले में सेवा की, और उसके बाद, एक और वर्ष के लिए, ज़िला प्रशासन को स्वेच्छा से अपनी सेवाएं दीं। बाद में, क्षेत्र में काम करने के अपने अनुभव को पूरा करने और ज़मीनी स्तर के ग्रामीण विकास परिदृश्य के बारे में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए, उन्होंने TISS, मुंबई, से डेवलपमेंट प्रैक्टिस में मासटेर्स डिग्री पूरी की।
विजय, WCT के आजीविका क्षेत्र में, व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास विंग के प्रमुख हैं, जो इसे संरक्षण-आधारित, कौशल विकास पहल की दिशा में आगे बढ़ाने में सहायता करते हैं।
मंगेश शिंदे
मंगेश के पास मुंबई विश्वविद्यालय से लेखांकन और वित्त में विशेषज्ञता के साथ, वाणिज्य में स्नातक की डिग्री है। उनके पास, निर्यात दस्तावेज़ीकरण, ऑडिट, भुगतान प्रक्रिया और अन्य अनुपालनों में, ३ साल का अनुभव है। उनका मुख्य कौशल,लेखांकन और कराधान को, स्वतंत्र रूप से संभालने में निहित है।
WCT की लेखा और वित्त टीम के एक भाग के रूप में, मंगेश, दिन-प्रतिदिन के वित्तीय लेनदेन को निष्पादित करते हैं।
गिरीश पंजाबी
गिरीश, व्यवहारिक अनुसंधान पर केंद्रित, एक गंभीर और ज़मीनी स्तर के संरक्षणवादी हैं। अतीत में, उन्होंने मध्य भारत के शुष्क आवासों से लेकर, पश्चिमी घाट के गीले जंगलों तक, समान रूप से विविध परिदृश्यों में, गैर सरकारी संगठनों के हिस्से के रूप में, और सरकारी व्यवस्थाओं के भीतर, विविध भूमिकाओं में काम किया है। उन्हें मांसाहारियों में विशेष रुचि है, और वे छोटे मांसाहारियों की कुछ खोजों, और सीमा विस्तार का हिस्सा रहे हैं। उनके पास,NCBS, बेंगलुरु से, वन्यजीव जीवविज्ञान और संरक्षण में मासटर्स डिग्री है।
वह IUCN SCC कैनिड स्पेशलिस्ट ग्रुप के लिए, ढोले वर्किंग ग्रुप का हिस्सा हैं। वह IUCN रेड लिस्ट के लिए, दो प्रजातियों (ब्राउन पाम सिवेट और स्ट्राइप-नेक्ड मोंगूस) के मूल्यांकनकर्ता भी हैं। वह वास्तविकता में, इन प्रजातियों और उनके निवास स्थान के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए, बड़े दर्शकों तक पहुँचने में विश्वास करते हैं। उनका काम, अंतर्राष्ट्रीय सहकर्मी-समीक्षित वैज्ञानिक पत्रिकाओं, और कई प्रतिष्ठित संरक्षण मंचों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ है। उन्हें कार्ल ज़ीस संरक्षण पुरस्कार (२०१५) से सम्मानित किया गया है|
WCT में, गिरीश का काम, महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक के ट्राइ-जंक्शन पर, वनों के संरक्षण पर केंद्रित है।
तरूण नायर
तरुण, एक संरक्षण जीवविज्ञानी हैं और उन्हें मगरमच्छों और नदियों से लगाव है। उनका काम, मुख्य रूप से, उत्तर-मध्य भारत में, विशेष रूप से चंबल, सोन और गंडक नदियों के किनारे, घड़ियाल (गेवियलिस गैंगेटिकस) की संरक्षण आवश्यकताओं को समझने पर केंद्रित है। वह मानव-वन्यजीव संपर्क, संरक्षण दर्शन, नीति, और वन्यजीवों और पारिस्थितिक तंत्र पर, मानव प्रभाव में भी रुचि रखते हैं।
वन्य जीवन के साथ काम करने का उनका पहला मौका,उन्हें हाई स्कूल के तुरंत बाद मिला। औपचारिक शिक्षा छोड़ने के बाद, उन्होंने अगले तीन साल, वन्यजीव बचाव-और-पुनर्वास स्वयंसेवक के रूप में बिताए, और पालतू जानवरों के व्यापार, जंगली मांस के लिए शिकार, प्रदर्शन में इस्तेमाल किए जाने वाले जानवरों और अनुष्ठान शिकार जैसे, वन्यजीव अपराधों की भी निघरानी की। एक दुर्घटना के कारण, उन्हें वापस उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में जाना पड़ा, जो सौभाग्य से, एक आरक्षित वन से सटा, एक जंगली परिसर था। उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई, ओपन-यूनिवर्सिटी से पूरी की, और साथ ही संरक्षण-संबंधी कार्यों में भी लगे रहे। इसके तुरंत बाद, वन्यजीव जीव विज्ञान और संरक्षण में M.Sc. ने, संरक्षण जीव विज्ञान में करियर बनाने में उनकी सहायता की।
WCT के संरक्षण अनुसंधान वर्टिकल के हिस्से के रूप में, वह मध्य प्रदेश के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में, ओटटेर एंड हाइड्रोलॉजी परियोजना पर काम करते हैं।
प्रसाद गायधनी
प्रकृति और वन्य जीवन के प्रति प्रसाद की रुचि ने, उन्हें एक किशोर के रूप में, पर्यावरण जागरूकता पहल पर, एक स्थानीय गैर सरकारी संगठन के साथ,एक स्वयंसेवक बनने के लिए प्रेरित किया और उसी जुनून ने, उन्हें प्राणीशास्त्र में मासटर्स डिग्री हासिल करने के लिए प्रेरित किया। अपनी पढ़ाई के दौरान, उन्होंने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में, भारतीय वन्यजीव संस्थान के डुगोंग रिकवरी कार्यक्रम सहित, विभिन्न जैव विविधता संरक्षण परियोजनाओं में सहायता और प्रशिक्षुता जारी रखी, जिसके लिए, उन्होंने डुगोंग और समुद्री घास पर पारिस्थितिक अनुसंधान किया, साथ ही आउटरीच, जागरूकता और विभिन्न हितधारकों के लिए, क्षमता निर्माण कार्यशालाएँ भी संचालित की।
WCT की कंझरवेशन डॉग्स यूनिट के हिस्से के रूप में, उन्होंने हमारे रोड इकोलॉजी प्रोजेक्ट के लिए, वन्यजीव संकेत सर्वेक्षण, संघर्ष स्थितियों में वन्यजीव ट्रैकिंग और पैंगोलिन पर नज़र रखने पर काम किया है। वह अब सतपुड़ा परिदृश्य में,ओटटेर और हाइड्रोलॉजी परियोजना का हिस्सा हैं।
डॉ. विनय पांडे
डॉ. विनय कुमार पांडे के पास, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, से पशु चिकित्सा विज्ञान और पशुपालन में स्नातक की डिग्री और छत्तीसगढ़ कामधेनु विश्वविद्यालय से, पशु विज्ञान (पशु पोषण) में मासटर्स डिग्री है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत, पशुपालन विशेषज्ञ के रूप में, छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और पंचायत विभाग में, ‘नवा अंजोर’ नामक विश्व बैंक परियोजना से की, जो आजीविका और पालन प्रथाओं से संबंधित थी। इसके बाद, उन्होंने इंटरनेशनल ट्रैसेबिलिटी सिस्टम, नई दिल्ली में, वैज्ञानिक-II के रूप में काम किया। इसके बाद, उन्होंने एनिमल केयर फाउंडेशन, रायपुर (छत्तीसगढ़) का कार्यभार संभाला, साथ ही फाउंडेशन में, पशु चिकित्सक के रूप में भी काम किया।
WCT में, पशु चिकित्सकों की टीम के हिस्से के रूप में, वह मध्य भारत के विभिन्न संरक्षित क्षेत्रों में, जंगली जानवरों के स्वास्थ्य परिक्षण रोग निघरानी और उपचार पर काम करते हैं।
पूर्वा वारियर
विज्ञान, प्रकृति और संचार के प्रति अभूतपूर्व लालसा ने, एक संरक्षण लेखक, संपादक और विज्ञान संचारक के रूप में, पूर्वा वारियर की यात्रा को जन्म दिया। उनके पास, UK के नॉटिंघम विश्वविद्यालय से, बायोटेक्नोलॉजी में BSc की डिग्री और बायोलॉजिकल फोटोग्राफी और इमेजिंग (विज्ञान संचार) में, MSc की डिग्री है।
पूर्वा ने, अपने संरक्षण करियर की शुरुआत,बॉम्बे नेचरल हिस्ट्री सोसाइटी,BNHS – संरक्षण शिक्षा केंद्र, मुंबई में, इंटर्नशिप करके की। तब से वह SNF की सैंक्चुअरी एशिया पत्रिका के लिए, एक वरिष्ठ संपादक और विज्ञान संचारक के रूप में, सैंक्चुअरी नेचर फाउंडेशन (SNF) के साथ काम करने लगी। वह पिछले कुछ वर्षों में, कई SNF अभियानों और कार्यक्रमों को चलाने में सहायक रही हैं। पूर्वा ने, द गेरी मार्टिन प्रोजेक्ट (अब द लियाना ट्रस्ट) के साथ भी काम किया है, जहां उन्होंने रसेल’स वाइपर रेडियोटेलीमेट्री अनुसंधान परियोजना, मानव-सांप संघर्ष शमन प्रयासों, पशु क्यूरेटोरियल कार्यों और संचार और आउटरीच में सहायता की।
WCT में एक वरिष्ठ संरक्षण संचारक के रूप में, पूर्वा वारियर परियोजना प्रस्तावों, रिपोर्टों और अन्य प्रमुख संचार सामग्री के निर्माण में निकटता से शामिल हैं। वह विभिन्न संचार और आउटरीच परियोजनाओं और अभियानों का नेतृत्व करती हैं। उनकी मुख्य रुचि, WCT के ऑन-ग्राउंड वैज्ञानिक अनुसंधान, और संरक्षण हस्तक्षेपों को लोकप्रिय बनाने, और लोकप्रिय विज्ञान लेखों और सामग्री के माध्यम से, क्षेत्र से कहानियों को संप्रेषित करने में निहित है।
श्रुतिका मुळे
२०१९ में, WCT के साथ इंटर्नशिप से शुरू हुआ कार्यकाल,आज वह श्रुतिका मुळे के लिए, पूर्णकालिक अवसर में बदल गया है। सोशल मीडिया और इसके संचार का दायरा उन्हें, उत्साहित करता है। उन्हें सोशल मीडिया के रुझानों, पैटर्न और आंकड़ों का विश्लेषण करने और किसी उद्देश्य को आगे बढ़ाने, और सर्वोत्तम लाभ के लिए इसका उपयोग करने का शौक है। वन्यजीव प्रेमी, श्रुतिका वनजीवन संरक्षण के उद्देश्य को बढ़ावा देकर, अपनी अद्वितीय डिजिटल प्रतिभा का अच्छा उपयोग कर रही हैं| वह एक सोशल मीडिया विशेषज्ञ के रूप में,अपनी भूमिका में, WCT के लिए ठोस सोशल मीडिया रणनीतियों को सुधारने और स्थापित करने के लिए काम कर रही हैं। उन्होंने संचार क्षेत्र में, विभिन्न संगठनों और कंपनियों के साथ, स्वेच्छा से काम किया है। उनके पास मुंबई विश्वविद्यालय से, मास मीडिया में स्नातक की डिग्री है। डिजिटल स्पेस के बारे में, और अधिक जानने की उनकी प्यास अतृप्त है, और इसके लिए, श्रुतिका, खुद को शिक्षित करना और लगातार विकसित हो रहे डिजिटल संचार परिदृश्यों से, खुदकों अवगत रखना,जारी रखती हैं।
सुभासिस डे
सुभासिस, १९९८ से, नदी तटीय मछली पकड़ने वाले समुदायों के साथ मिलकर, काम कर रहे हैं, जब वह T.M. भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार में प्रोफेसर सुनील के. चौधरी के नेतृत्व में, गंगा नदी डॉल्फिन संरक्षण परियोजना में शामिल हुए। पिछले २२ वर्षों में, वह बिहार में, गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे, अपनी आजीविका बनाए रखने के लिए, नदी पर निर्भर मछली पकड़ने वाले समुदायों को होने वाले संघर्षों, और संघर्षों की ज़मीनी हकीकत पर नज़र रखने में, सक्रिय रूप से और लगातार शामिल रहे हैं। सुभासिस को, मछुआरों की भेद्यता और अनुकूलन क्षमता पर, पारिस्थितिक और समाजशास्त्रीय अनुसंधान निष्कर्षों के अनुप्रयोग में, गहरी दिलचस्पी है, ताकि उनके विकास में सहायता करने के लिए, समाधानों की पहचान की जा सके, और नदी मत्स्य पालन और जैव विविधता के स्थायी संरक्षण में, सामुदायिक स्तर की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। उनके दीर्घकालिक क्षेत्र अनुभव की एक बड़ी ताकत, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में, मछली पकड़ने वाले समुदायों के व्यापक नेटवर्क के साथ गहरा व्यक्तिगत जुड़ाव और संबंध रहा है। सुभासिस, २०००-०१ से, भागलपुर और कहलगांव से मछली लैंडिंग और बाज़ार डेटा भी एकत्रित कर रहे हैं, एक प्रयास में, जिसने भारत में नदी मत्स्य पालन पर, सबसे लंबे ‘नागरिक समाज आधारित’ समय-श्रृंखला डेटासेट में से एक बनाया है। सुभासिस IUCN सिटासियन स्पेशलिस्ट ग्रुप के सदस्य भी हैं।
सुभासिस २०२१ में, WCT के नवगठित नदी पारिस्थितिकी तंत्र और आजीविका कार्यक्रम में शामिल हुए।
चेतन मिश्र
चेतन को, रेगिस्तान और घास के मैदानों के पारिस्थितिक तंत्र में, बदलते परिदृश्य और कम-ज्ञात प्रजातियों के बीच, जटिल अंतरसंबंध के बारे में जानने में रुचि है। थार क्षेत्र से आने के कारण, परिदृश्य और इसके निवासियों का लचीलापन और गतिशीलता ने उन्हें, अक्सर, गलत समझे जाने वाले इन आवासों का पता लगाने के लिए प्रेरित किया है।
प्रारंभ में,रेगिस्तानी लोमड़ियों द्वारा मोहित, चेतन की खोज, शुष्क भूमि पारिस्थितिकी प्रणालियों के भीतर, विकसित होती गतिशीलता के व्यापक अध्ययन में विकसित हुई है। पिछले दशक में, उनका ध्यान,पश्चिमी भारत के शुष्क परिदृश्यों में, पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यक्षमता, और स्वदेशी वन्यजीव समुदायों पर, पारिस्थितिक आक्रमण के परिणामों को समझने पर रहा है। उनका Ph.D. शोध, थार क्षेत्र में शिकार, शिकारियों और महतर के मूल संघों पर आक्रामक पौधों और जानवरों की प्रजातियों के प्रभावों पर प्रकाश डालता है।
एशिया के बेहतरीन घास के मैदानों में से एक, कच्छ के बन्नी में, उनका व्यापक काम, आक्रामक प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा द्वारा, तेज़ी से अतिक्रमण और मिट्टी, वनस्पति और जैव विविधता पर इसके प्रभावों पर केंद्रित है। चेतन का शोध, थार क्षेत्र में, विभिन्न देशी वन्यजीव संघों पर खुले घूमते कुत्तों के प्रभाव की भी जांच करता है, विशेष रूप से स्कवेंजर्स के रूप में उनकी भूमिका और लुप्तप्राय गिद्धों के साथ उनकी प्रतिस्पर्धा।
अपनी वैज्ञानिक गतिविधियों के अलावा, चेतन, संरक्षण प्रयासों को बढ़ाने के लिए, स्थानीय भाषाओं में वैज्ञानिक ज्ञान के प्रसार की वकालत करते हैं। इस प्रकार, उन्हें हिंदी में संरक्षण और वनजीवन की कहानियाँ लिखना पसंद है। चेतन का काम, एक व्यापक स्पेक्ट्रम को शामिल करता है, जिसमें घास के मैदान, कार्बन लेखांकन और मेसो-मांसाहारी से लेकर गिद्ध, शुष्क भूमि और जैव विविधता संरक्षण शामिल हैं।
डॉ. मधुरा निफाडकर-बांदेकर
डॉ. मधुरा निफाडकर-बांडेकर ने, अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड द एनवायरनमेंट (ATREE) से,पारिस्थितिकी में PhD की है, भूगोल में पृष्ठभूमि है, और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ रिमोट सेंसिंग, देहरादून से, विशेष रूप से प्रकृति संरक्षण के लिए लागू, सैटेलाइट इमेज मैपिंग में, पेशेवर प्रशिक्षण प्राप्त किया है। अपनी पिछली भूमिकाओं में, उन्होंने पारिस्थितिकी तंत्र बहाली परियोजनाओं की निघरानी के लिए,तकनीकि सहायता प्रदान करने वाली, एक टीम का नेतृत्व किया है, और नीति दस्तावेज़ तैयार करने में, सहायता के उद्देश्य से, भारत में आक्रामक प्रजातियों की शोध,पर जानकारी एकत्रित करने के लिए, राष्ट्रीय जैव विविधता और मानव कल्याण मिशन के लिए भी काम किया है। वह सूचना और नागरिक विज्ञान तक खुली पहुँच में विश्वास करती हैं, और इस दर्शन के साथ, उन्होंने जैव विविधता की जानकारी को, जनता के लिए सुलभ बनाने के लिए, भारत जैव विविधता पोर्टल, कर्नाटक जैव विविधता एट,लस और महाराष्ट्र जीन बैंक स्थानिक पोर्टल के विकास के लिए, संस्थापक टीम में काम किया है। छह समर्पित प्रकृतिवादियों के साथ, उन्होंने गोवा स्थित,एक गैर-लाभकारी संस्था, फाउंडेशन फॉर एनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड कंझरवेशन की, सह-स्थापना की है, जो सामाजिक और पर्यावरणीय जागरूकता,और गोवा के वन्य जीवन के दस्तावेज़ीकरण के क्षेत्रों में, काम करती है। वह गोवा पक्षी संरक्षण नेटवर्क के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं, और वर्तमान में, गोमांतक लोकसेवा ट्रस्ट के उपाध्यक्ष के रूप में भी कार्य करती हैं, जो निराश्रित महिलाओं का समर्थन करने वाला एक संगठन है। वह शिक्षा और कौशल विकास समिति, गोवा चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की सदस्य और लीड-इंडिया की फेलो भी हैं, जो पर्यावरण की दृष्टि से, टिकाऊ, सामाजिक रूप से न्यायसंगत विकास में, अग्रणी बनाने के लिए प्रतिबद्ध संगठन है।
एस रम्या रूपा
रम्या ने २०१८ में अपनी M.Sc, इरासमस मुंडुस-इंटरनेशनल मासटर्स इन अप्लाइड इकोलोजी प्रोग्राम से पूरी की। उनके अध्ययन के दौरान, उनकी रूचि जनसंख्या पारिस्थितिकी में विकसित हुई, और उन्होंने अपनी थीसिस का संचालन, अधिभोग और आवास प्राथमिकता,दुर्लभ रेत छिपकली की प्रजाति जो दक्षिण ब्राज़ील में है, उसपे किया।तब से उनके कार्य के रूप में,उन्होंने शिकार और अवैध वनजीवन व्यापार, भारत में, उसपर अध्ययन किया है,और उनका ध्यान, मीठे पानी के कछुओं(टर्टल्स) और कछुओं(टोरटोईसेस) पर केंद्रित रहा है।
रिवरराइन इकोसिस्टम्स अँड लाईवलिहूड्स(REAL)प्रोग्राम में,एक डेटा विश्लेषक की भूमिका में उन्होंने, सांख्यिकीय और रिमोट-सेंसिंग विधियों के संयोजन का उपयोग किया है, ताकि दीर्घकालिक डेटा का विश्लेषण,दुर्लभ नदी पारिस्थितिकी तंत्र, जल विज्ञान, और अवैध शिकार पर किया जा सके, और रम्या साथ ही साथ, इंटरैक्टिव वेब-एप्स बनाती हैं,ताकि उपयोगकर्ताओं को नदी निघरानी प्रवृत्तियों और डेटा की कल्पना और व्याख्या करने में सहायता कर सकें।रम्या की रूचि,कछुओं की आबादी में गिरावट और पुनर्प्राप्ति की संभावनाओं पर अत्यधिक दोहन के प्रभाव को समझने की है।रम्या मीठे पानी के कछुआ अनुसंधान परियोजना का बिहार में नेतृत्व करती हैं, जो REAL प्रोग्राम के अंतर्गत आता है।
वेदान्त बार्जे
प्रशिक्षण से अगर देखा जाए तो वेदान्त,इलैक्ट्रिकल इंजीनियर हैं।WCT से जुडने से पहले,वेदान्त,नाशिक और अहमदनगर ज़िले में, STEM एडुकेटर के रूप में,आदिवासी और नगरपालिका स्कूली बच्चों को पढ़ाते थे,और उन्होंने अपने स्कूलों में विज्ञान और STEM प्रयोगशालाओं को डिज़ाइन करने और स्थापित करने में भी सहायता की।कम आयु में ही वेदान्त को पर्यावरण और वनजीवन में रूचि होने लगी थी।वेदान्त अपने स्कूल के दिनों से ही,WCT के किड्स फॉर टायगर्स इनीशिएटिव का हिस्सा थे।उन्होंने कई स्वतंत्र तकनीकि विकास परियोजनाओं पर, कई संस्थानों के लिए, काम किया है।उन्हें इलेक्ट्रॉनिक्स, माइक्रोकंट्रोलर और माइक्रोप्रोसेसर और 3डी मॉडलिंग पर काम करना पसंद है।वह भारत के सबसे युवा HAM रेडियो ऑपरेटरों में से एक हैं, और कुंभमेला के कई कार्यक्रमों में अपनी सेवाएँ प्रदान की हैं।
WCT में, वेदान्त वाइल्डटेक परियोजना का नेतृत्व करते हैं, जो नवीन तकनीकों को विकसित करने पर केंद्रित है, और जो वास्तविक विश्व संरक्षण चुनौतियों को हल करने में सहायता कर सकती है।उन्होंने, WCT की कंझरवेशन डॉग्स यूनिट के लिए एक स्वनिर्धारित वाहन भी डिज़ाइन और विकसित किया है।
रज़ा काज़मी
रज़ा काज़मी एक संरक्षणकर्ता,वनजीवन इतिहासकार,कथाकार और शोधकर्ता हैं।उनकी विशेषज्ञता,भारत के वाइल्डलाइफ और फॉरेस्ट एड्मिनिसट्रेशन हिस्ट्री, कंझरवेशन पॉलिसी और कंझरवेशन इशूज़ जो उग्रवाद से ग्रस्त,पूर्व-मध्य भारतीय परिदृश्य को पीड़ा दे रहे हैं,उसमे में है।वह जो लिखते हैं,वह कई राष्ट्रीय अखबार(द हिन्दू, द इंडियन एक्सप्रेस),ऑनलाइन मीडिया हाउसेस(द वायर, फिफ्टीटूडॉटइन, राउंडग्लास ससटेन),मैगज़िंस और जर्नल्स(फ्रंटलाइन,सेमिनार,द इंडिया फॉरम,जर्नल ऑफ बॉम्बे नेचरल हिस्ट्री सोसाइटी अँड सैंक्चुअरी एशिया),और विविध संपादित संकलन में प्रकाशित होते हैं।रज़ा, न्यू इंडिया फ़ाउंडेशन फ़ेलोशिप,२०२१ के विजेता रह चुके हैं।वर्तमान में रज़ा, एक किताब लिख रहे हैं,जिसका नाम प्रयोगात्मक रूप से,‘टु हूम डस द फॉरेस्ट बिलांग? :द फेट ऑफ द ग्रीन इन द लैंड ऑफ रेड‘ रखा गया है।
WCT में,एक संरक्षण संचारक के रूप में, रज़ा, WCT के कार्यों के इर्द गिर्द प्रभावशाली कहानियाँ लिखते हैं,और संरक्षण प्रथाओं को दोनों भाषाओं में, हिन्दी और अँग्रेजी में लोकप्रिय बनाते हैं। रज़ा, संपादकीय विभाग को भी मजबूत करते हैं,अपने विशाल अनुभव के चलते और प्राकृतिक इतिहास और जलवायु परिवर्तन पर जागरूकता फैलाने में भी सहायता करते हैं।
अनुज अलूकथरा
अनुज ने पुणे में भारती विद्यापीठ से वन्यजीव संरक्षण कार्य में स्नातक की उपाधि प्राप्त की हैं। वहां उन्होंने पारिस्थितिकी सम्बन्धी अवधारणाओं और संरक्षण रणनीतियों की गहन समझ विकसित की, जिसने उन्हें संरक्षण प्रयासों में सार्थक योगदान देने में सक्षम बनाया है।
WCT में शामिल होने से पहले, उन्होंने वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (WTI) के लिए मूंगा चट्टानों की बहाली संबंधी परियोजना पर एक प्रशिक्षु के रूप में काम किया, जहां उन्होंने समुद्री संरक्षण में अमूल्य व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया।
जनसंख्या पारिस्थितिकी, समय व आवास के सापेक्ष जीवों की गतिविधियाँ, डेटा विश्लेषण और दस्तावेज़ीकरण उनकी रुचि के मुख्य क्षेत्र हैं। अपने वर्तमान पद पर, वह पारिस्थितिक डेटा को कुशलतापूर्वक समझने के लिए सांख्यिकीय और भौगोलिक विश्लेषण विधियों का उपयोग करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वह वन्यजीव आबादी के पैटर्न और प्रव्रत्तियों के बारे में जानने और उस जानकारी का उपयोग करके वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को आगे बढ़ाने सम्बन्धी रणनीति बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
आपके द्वारा दिए गए अनुदान हमारे फील्ड कार्यों में सहायक होते हैं और हमें हमारे संरक्षण लक्ष्यों तक पहुंचाते हैं।