भारत में पैंगोलिन संरक्षण को बढ़ाना

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वह वहाँ हैं, ठीक वहाँ, उन सुडौल शिलाखंडों के नीचे, बड़ी सफाई से खोदे गए एक बिल के अंदर, मध्य प्रदेश के पेंच टाइगर रिज़र्व में। अतीत में लगाए कैमरा ट्रैप की फुटेज यह सुनिश्चित करती है, की पैंगोलिन के साथ उसका छोटा बच्चा/शावक भी है। जो प्रबल बीप के संकेत हमें रेडियो टेलीमेट्री रिसीवर पर सुनाई दे रहे हैं, और हीरा (WCT के द्वारा प्रशिक्षित किए हुए कुत्तों में से एक) की अतुल्य सूंघने की क्षमता हमें यह बता रही है, की मादा पैंगोलिन वहीं है। लेकिन, सावधान, निशाचर और शर्मीली जो वह है, केवल कोई चमत्कार ही उसे उस बिल से बाहर ला सकता है, और हमें उसे देखने का मौका मिल सकता है।

Indian pangolins are endangered and targeted for their scales and meat.
इंडियन पैंगोलिन बहुत ही दुर्लभ हैं, और उनकी परत(शल्क) और उनके मांस के लिए उनको निशाना बनाया जाता है। फोटो क्रेडिट: आदित्य जोशी।

बहुत ही कम लोगों ने वन में पैंगोलिन को देखा है। कई लोगों ने तो उनके बारे में सुना भी नहीं है। और अगर लोगों ने उनके बारे में सुना है, तो उनके अवैध व्यापार के बारे में सुना होगा। पैंगोलिन उन स्तनधारियों में से एक हैं, जिनकी बड़े पैमाने पर तस्करी की जाती है। विडम्बना से, उनकी परत का जो कवच है, एक अत्यधिक सफल विकासवादी अनुकूलन जो उन्हें जंगल में शिकारियों और अन्य प्राकृतिक तत्वों से बचाता है, यह दुनिया में अभिशाप साबित हुआ है, जहां आधुनिक मानव शानदार शिकारी हैं। इसे स्केली एंटईटर भी कहा जाता है, पैंगोलिन एक ऐसा अनोखा स्तनधारी है, और यह एकमात्र ऐसा है, जो चयापचय रूप से निष्क्रिय परत के कवच से संपन्न है, जिसकी रासायनिक संरचना मानव नाखूनों से काफी मिलती-जुलती है। और बावजूद इसके, ग़लत मान्यताएँ, गलत जानकारी, और वैज्ञानिक रूप से अप्रमाणित दावों ने, काले बाज़ार में पैंगोलिन शल्कों का, खगोलीय मूल्य रखा है, खासकर के पारंपरिक चाइनिज़ औषधि के उपयोग के लिए (TCM)।

“ऐसी प्रजातियों पर अवैध शिकार के प्रभाव का पैमाना, बिना किसी जनसंख्या अनुमान के, जो असंख्य मामलों द्वारा उजागर किया जाता है, जहां पैंगोलिन स्केल्स की बड़ी खेप, जिनका वज़न कई टन का होता है, अवैध शिकार विरोधी छापों में ज़ब्त किए गए हैं। आमतौर पर, वनजीवन के खिलाफ अपराध के मामले में, पता लगाने की दर बहुत कम है। अधिकांश अवैध खेप प्रवर्तन एजेंसियों की नज़र से बच जाती हैं। यह देखते हुए की छापे का केवल एक अंश ही सफल होता है, और कई खेपों का पता नहीं चल पाता, अवैध शिकार की भयावहता, जो दिखायी देता है, उससे कई ज़्यादा है, ”ऐसा आदित्य जोशी हमें बताते हैं, जो WCT में संरक्षण जीविज्ञानी के रूप में काम करते हैं, और जो WCT के संरक्षण अनुसंधान मण्डल का नेतृत्व करते हैं। एक परियोजना जिसका वर्तमान में आदित्य नेतृत्व कर रहे हैं, वह पारिस्थितिकी-आधारित संरक्षण रणनीति भारतीय पैंगोलिन के लिए, मध्य प्रदेश में विकसित करने पर केंद्रित है, जो अपनी तरह की पहली परियोजना है, जिसको इस प्रजाति के आसपास डिज़ाइन किया गया है।

Also called the scaly anteater, the pangolin is unique in that it is the only mammal endowed with scaly armour.
इसे स्केली एंटईटर भी कहा जाता है, पैंगोलिन एक ऐसा अनोखा स्तनधारी है, और यह एकमात्र ऐसा है, जो चयापचय रूप से निष्क्रिय परत के कवच से संपन्न है। फोटो क्रेडिट: आदित्य जोशी

पैंगोलिन की जो आठ प्रजातियाँ एशिया और अफ्रीका में पायी जाती हैं, केवल भारतीय पैंगोलिन(मैनिस क्रैसिकौडेटा)और चीनी पैंगोलिन(मैनिस पेंटाडेक्टाइला)भारत में पाए जाते हैं। शरीर के आकार के संदर्भ में, भारतीय पैंगोलिन, सबसे बड़ी एशियाई पैंगोलिन प्रजाति है, और सभी पैंगोलिन प्रजातियों में से, तीसरी सबसे बड़ी प्रजाति है। पैंगोलिन को, इंडिया के वाइल्ड लाइफ(प्रोटेक्टशन)एक्ट, १९७२ के अंतर्गत, उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्रदान की गयी है, ठीक उसी तरह की सुरक्षा जो बंगाल टाइगर, इंडियन रायनों और एशियन एलिफ़ेंट को दी गयी है। भारतीय पैंगोलिन को, IUCN, अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature IUCN) की रेड लिस्ट में, एक दुर्लभ प्रजाति के रूप में रखा गया है, और इसकी जनसंख्या में गिरावट होने का अनुमान है। लेकिन ज्ञान का अंतर बहुत बड़ा है, एक स्पष्ट तस्वीर प्राप्त करने के लिए, की भारत में भारतीय पैंगोलिन की आबादी, वास्तव में कैसी है। वर्तमान में, हमारी समझ, पैंगोलिन की पारिस्थितिकी और उनकी जनसंख्या में गतिशीलता पर, अभी काफी अस्पष्ट है।

भारतीय पैंगोलिन के संरक्षण के लिए एक सम्मिलित वैज्ञानिक प्रयास

हाथ ना आनेवाले, कम घनत्व पर होने वाली रात्रिचर प्रजातियाँ, इंडियन पैंगोलिन के व्यवहार और पारिस्थितिकी पर बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। इसीलिए, प्रजातियों की पारिस्थितिकी को जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि उनके लिए एक प्रभावी संरक्षण योजना को विकसित किया जा सके।

आदित्य जोशी आगे बताते हैं, ”सुरक्षात्मक उपायों के बावजूद, भारत में पैंगोलिन का घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप से शोषण और व्यापार किया जाता है। जीवित भारतीय पैंगोलिन के व्यापार में वृद्धि हुई है, और यहां तक की स्थानीय लोगों को भी जंगल में जो पैंगोलिन मिलता है, वे पैंगोलिन को बेचने के लिए खरीदार ढूँढते हैं, यह सोचकर की इससे उन्हें, मोटी-गाढ़ी कमायी होगी। इसके कारण कई भारतीय पैंगोलिन को ज़ब्त किया गया है, जिन्हें खराब परिस्थितियों में रखा जाता है, और लंबे समय तक भूखा रखा जाता है, उनकी पारिस्थितिकी की बेहद सीमित या दोषपूर्ण समझ के कारण। इससे इन पैंगोलिनों के सफल पुनर्वास का काम, एक प्रमुख संरक्षण चुनौती बन जाता है।

WCT research team monitoring a released pangolin in the field. Photo credit: WCT
डब्ल्यूसीटी अनुसंधान दल खेत में छोड़े गए पैंगोलिन की निघरानी करते हुए। फोटो क्रेडिट: WCT

मध्य प्रदेश वन विभाग के सहयोग से (MPFD) और बीएनपी परिबास इंडिया फ़ाउंडेशन के समर्थन से, WCT ने, २०१९ में, एक अनोखे संरक्षण परियोजना की शुरुआत की। एक वैज्ञानिक अनुसंधान परियोजना को आगे बढ़ाने की चुनौती, और वह भी विशेष रूप से भारतीय पैंगोलिन जैसी डेटा की कमी वाली प्रजाति के लिए, एक पूर्ववर्ती पद्धति का अभाव है, जिससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है।

जोशी आगे बताते हैं, ”हालाकि, संरक्षण परियोजनाओं के लिए सीमित संसाधन उपलब्ध होने के कारण, एक विशेष प्रजाति के संरक्षण मुद्दों के प्रमुख पहलुओं पर गंभीर रूप से ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक है, और प्रजातियों के संरक्षण पर अधिक प्रभाव डालने के लिए, उन पर काम करना भी ज़रूरी है। हमारी परियोजना का मुख्य उद्देश्य, इंडियन पैंगोलिन की पारिस्थितिकी को समझना है, और बचाए गए पैंगोलिनों के लिए, एक प्रभावी पुनर्वास योजना को विकसित करना है।”

हम बाँस की घनी झाड़ियों से होकर गुज़रते हैं। बारिश से पैदा हुए गीलेपन के कारण, पैरों में आनेवाली पत्तियों की कुरकुराने की आवाज़, अब दब सी गयी है। ऑन-फील्ड निघरानी की प्रमुख चुनौतियों में से एक है, बारिश के मौसम में, इन जानवरों को ढूँढना। भारी वर्षा से भूदृश्य अत्यंत सघन हो जाता है, और फिसलन भरे वातावरण के कारण इन जानवरों का पीछा करना, उनको ढूँढना, कठिन हो जाता है। वर्षा एवं तूफ़ान से उत्पन्न हुआ विघ्न, रेडियो सिग्नलों की निघरानी करने में कठिनाई पैदा करता है, और उस सीमा को कम कर देता है, जिस पर क्षेत्र में सिग्नल प्राप्त किए जा सकते हैं।

उतार-चढ़ाव वाले इलाके में काफी ऊपर-नीचे चढ़ने के बाद, हमें अभी भी एक मज़बूत रेडियो सिग्नल मिलना बाकी है। रेडियो-टैग पैंगोलिन में से एक, अपने बच्चे के साथ घूम रही है। हम उसके कुछ अब स्थगित बिलों से होकर गुज़रते हैं। कई और मिनटों की ट्रैकिंग के बाद, जैसे ही हम उसके नए स्थान पर पहुँचते हैं, हमारे रिसीवर पर रेडियो सिग्नल तेज़ हो जाता है।

Hira (left), one of WCT’s four conservation dogs, helps the team track a radio-tagged pangolin.
हीरा (बाएँ) WCT के चार संरक्षण कुत्तों में से एक, टीम को रेडियो-टैग पैंगोलिन को ट्रैक करने में सहायता करता है। फोटो क्रेडिट: पूर्वा वारियर /WCT

जोशी, हीरा को नेतृत्व करने देते हैं, ताकि पैंगोलिन का सटीक स्थान मिल सके। वह एक विशिष्ट आदेश देते हैं, जो हीरा को पैंगोलिन की गंध पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहता है। उसकी केनाइन नाक ज़मीन पर टिकी हुई, हीरा आख़िरकार एक बड़ी सफाई से बनाए गए बिल के मुहाने पर रुकती है, और अपने पिछले हिस्से पर बैठती है, यह संकेत करते हुए की उसे गंध का स्रोत मिल गया है। हम बड़े पत्थरों के ढेर के नीचे ढलान के साथ उस स्थान पर एकत्रित होते हैं, और हमारे रेडियो रिसीवर की तेज़ बीप हीरा के दावे की पुष्टि करती है। एक उत्कृष्ट पैंगोलिन ठिकाना। जबकि जोशी, हीरा को अच्छे काम के लिए पुरस्कृत करता है, राजेश भेंदारकर, टीम में एक शोधकर्ता, GPS लोकेशन को लिख लेते हैं, जबकि दो अन्य फील्ड सहायक, बिल की निघरानी के लिए तुरंत कैमरा ट्रैप लगाना शुरू कर देते हैं।

रेडियो टैगिंग पैंगोलिन

WCT और MPFD, पेंच और सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व में, कई पैंगोलिन की वन में निघरानी कर रहे हैं। रेडियो-टैग किए गए पैंगोलिन, उनके जीवन में गहरी पारिस्थितिक अंतर्दृष्टि प्रदान कर रहे हैं। “स्थानिक, पारिस्थितिक और व्यवहार संबंधी डेटा का उपयोग करना, प्रजातियों की, टैग किए हुए जानवरों में से, हम पैंगोलिन के अस्तित्व के लिए आवश्यक प्रमुख कारकों की पहचान करना चाहते हैं। इससे आदर्श स्थलों का चयन करने में सहायता मिलेगी, जहां ज़ब्त किए गए या बचाए गए पैंगोलिन को रिहा किया जा सकेगा, और पुनर्वास की सफलता दर को बढ़ाने में सहायता मिलेगी, ”ऐसा जोशी बताते हैं।

परियोजना के पहले वर्ष में, टीम ने दो भारतीय पैंगोलिन का सफलतापूर्वक पुनर्वास किया, जिनको शिकारियों से ज़ब्त किया गया था। इसे रेडियो टेलीमेट्री के उपयोग के पहले मामले के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जंगल में इस प्रजाति के छोड़े गए प्राणियों की निघरानी करने के लिए।

MPFD and WCT staff releasing a tagged pangolin. Photo credit: WCT & MP Forest Department
एमपीएफडी(MPFD) और डब्ल्यूसीटी(WCT) स्टाफ एक टैग किए गए पैंगोलिन को छोड़ते हुए। फोटो क्रेडिट: WCT & MP वन विभाग।

छुड़ाये गए या ज़ब्त किए गए पैंगोलिन को सबसे पहले, WCT और वन विभाग के वनजीवन पशु चिकित्सकों द्वारा जाँच की जाती है, उनपर रेडियो ट्रांसमिटर और GPS ट्रैकर लगाने से , जो बिना शल्य चिकित्सा के दो अलग-अलग कठोर और निष्क्रिय पैमानों पर चिपकाए जाते हैं, कुछ इस तरह जिससे पशु या उसके बच्चे को चलने-फिरने में बाधा या असुविधा ना हो। फिर टैग किए हुये पैंगोलिन को, एक पूर्व निर्धारित आवास स्थान, जहाँ पर वे आराम से रह सकते हैं, वहाँ छोड़ दिया जाता है।

जोशी हमें यह भी बताते हैं कि, ”हमने एक मादा पैंगोलिन को, उसके बच्चे के साथ टैग किया। यह विशेष रूप से प्रजनन करने वाली मादा हमें, प्रमुख कारकों में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करेगी, जो बच्चों के सफलतापूर्वक पालन-पोषण के लिए आवश्यक है, और इस प्रकार, हमें पैंगोलिन प्रजनन के लिए उपयुक्त स्थलों की पहचान करने में सहायता मिलेगी।”

A camera trap image of one of the radio-tagged pangolins carrying her young one or a pangopup. Credit: WCT & MPFD
एक कैमरा ट्रैप फोटो, रेडियो-टैग पैंगोलिन में से एक, अपने बच्चे को या पैंगोपप को ले जाते हुए। फोटो क्रेडिट: WCT & MPFD

पैंगोलिन बिलों का सर्वेक्षण करने के लिए संरक्षण कुत्तों को सूचीबद्ध करना

फील्ड रिसर्च के लिए कोई एक ही दृष्टिकोण नहीं होता, जिसपर चलना पड़ता है। कभी कभी, कई उतार-चढ़ाव वाले चर के कारण पारंपरिक सर्वेक्षण विधियाँ काम नहीं करती हैं। पेंच और सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व के लहरदार भूभाग के कारण, पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके, बिलों का पता लगाने में मुश्किल होती है।

“हमने दो संरक्षण कुत्तों को पैंगोलिन का पता लगाने के लिए प्रशिक्षित किया है, ताकि वे पैंगोलिन बिल और पैंगोलिन अवशेष(मल) का पता लगाने में, हमारी सहायता करें। कुत्ते, बिलों का संकेत देते हैं और गतिविधि स्तर के आधार पर हमने उन बिलों की निघरानी के लिए, कैमरा ट्रैप लगाए हैं, ”ऐसा हमें जोशी बताते हैं।

बिलों का पता लगाने के अलावा, कुत्तों को, पैंगोलिन स्कैट (मल) का संकेत देने के लिए भी प्रशिक्षित किया जाता है। स्कैट(मल) नमूनों का विश्लेषण करने से, पैंगोलिन आहार निर्धारित करने में सहायता मिलेगी।

Map showing a survey track using detection dogs. The GPS collars fitted on the dogs help track the path, distance, and effort of every survey. Photo credit: WCT
खोजी कुत्तों का उपयोग करके एक सर्वेक्षण ट्रैक दिखाने वाला मानचित्र। कुत्तों पर लगे जीपीएस कॉलर, रास्ते का पता लगाने में, दूरी का पता लगाने में सहायता करते हैं और हर सर्वेक्षण के प्रयास का भी पता लगाने में सहायता करते हैं। फोटो क्रेडिट: WCT
Map showing a survey track using detection dogs. The GPS collars fitted on the dogs help track the path, distance, and effort of every survey. Photo credit: WCT
आदित्य जोशी अपने संरक्षण कुत्ते हीरा के साथ, जो पैंगोलिन के बिल का संकेत देते हुए। फोटो क्रेडिट: प्रसाद गायधनी

वन कर्मचारियों के बीच क्षमता और जागरूकता का निर्माण पैंगोलिन के बेहतर पुनर्वास और संरक्षण के लिए

पैंगोलिन ख़राब हालत में हमारे पास आते थे। जैसा की ज़्यादातर लोग, पैंगोलिन के भोजन और उनकी आवासीय आदतों के बारे में अंजान हैं, छुड़ाये या ज़ब्त किए हुए पैंगोलिन का स्वास्थ्य, कैद में तेज़ी से खराब हो जाता है, कई भुखमरी, आघात और तनाव के भी शिकार हो जाते हैं, ”ऐसा वनजीवन पशु चिकित्सक, डॉ प्रशांत देशमुख कहते हैं।

परियोजना के एक महत्वपूर्ण घटक ने, वन कर्मचारियों को शिक्षित और प्रशिक्षित करना शामिल किया है और वह भी बुनियादी पैंगोलिन पारिस्थितिकी और देखभाल के लिए, यह सुनिश्चित करने के लिए की भविष्य में जिन पैंगोलिन को वे बचाएं या ज़ब्त करें, उनके जीवित रहने की संभावना अधिक हो, और जिससे जंगल में उनके पुनर्वास की सफलता में सुधार हो।

A pangolin shifted to the release site in a specially designed wooden transportation box. Photo credit: WCT
पैंगोलिन को विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए लकड़ी के परिवहन बॉक्स में रिहाई स्थल पर स्थानांतरित कर दिया गया। फोटो क्रेडिट: WCT

“ऐसे प्रयासों की बहुत ज़्यादा आवश्यकता है, इस कमज़ोर और कम-ज्ञात प्रजाति के संरक्षण के लिए। बाज़ार में मांग और अवैध शिकार की घटनाओं में वृद्धि, भारतीय पैंगोलिन आबादी पर निर्विवाद रूप से प्रभाव डाल रही हैं। दीर्घकालिक शोध से हमें, अच्छा डेटा इकट्ठा करने में सहायता मिलेगी, और प्रजातियों के बारे में हमारा ज्ञान बढ़ाएगी, जो इसके संरक्षण का एक आधार है, ”ऐसा अशोक मिश्रा जी हमें बताते हैं, जो पूर्व फील्ड डाइरेक्टर हैं, पेंच टाइगर रिज़र्व, मध्य प्रदेश के।

“पिछले साल के पैंगोलिन पुनर्वास कार्य के कई सीखों में से एक, बचाए गए पैंगोलिन के प्रभावी पुनर्वास में, परिवहन की भूमिका की थी। कई मामलों में, स्थानीय वन कर्मचारियों के पास, सुरक्षित आवास और ज़ब्त किए गए और बचाए गए पैंगोलिन के परिवहन के प्रावधान नहीं होते । एक अस्थायी व्यवस्था के रूप में, इन्हें आमतौर पर, सिवेट को पकड़ने के लिए बनाए गए, तार-जाल वाले पिंजरों में रखा जाता है। इसके परिणामस्वरूप, पैंगोलिन को अत्यधिक तनाव और चोटें आती हैं, ”ऐसा आदित्य जोशी बताते हैं।

इससे निपटने के लिए, जोशी और उनकी टीम ने, परिवहन बक्से डिज़ाइन किए हैं, और वह भी पैंगोलिन के व्यवहार और उनकी ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए। यह बक्से, किसी भी पैंगोलिन को ले जाने पर होनेवाले अनुचित तनाव को कम करने में सहायता करेंगे। WCT ने यह परिवहन बक्से, वन विभाग को दान किए हैं, और वर्तमान में उन्हें वन कर्मचारियों द्वारा, उपयोग किया जा रहा है, बचाए गए/ज़ब्त किए गए पैंगोलिन को सुरक्षित रूप से परिवहन करने के लिए।

वर्तमान में WCT, पैंगोलिन के सुरक्षित आवास के लिए, एक प्रोटोटाइप पर काम कर रहा है, जहां पर उन्हें, इलाज या जाँच के लिए कैद में रखना पड़ता है।

“वनजीवन तस्करी करनेवालों से, जिस तरह ज़िंदा , पैंगोलिन को ज़ब्त किया जा रहा है, उसकी आवृत्ति को देखते हुए, एक सुरक्षित धारण क्षेत्र को डिज़ाइन करने की तत्काल आवश्यकता है, जो उनके प्राकृतिक आवास की तरह दिखता(उसकी नकल) हो, और जो चींटियों की विशिष्ट प्रजातियों के भोजन का प्रावधान भी सुनिश्चित करता हो। हम फिलहाल कई देशों के विशेषज्ञों के साथ इस पर चर्चा कर रहे हैं, जो ऐसे स्थान बनाने में कामयाब रहे हैं और उम्मीद है की जल्द ही, एमपीएफडी (MPFD) के सहयोग से, कुछ ऐसा ही निर्माण किया जाएगा। जब यह पूर्ण रूप से शुरू हो जाएगा, यह सुविधा पीड़ित और भूखे पैंगोलिन को , उन्हें जंगल में छोड़ने से पहले, ताकत हासिल करने में सहायता करेगा। फलस्वरूप, हम ज़ब्त या छुड़ाये गए पैंगोलिन की मृत्यु दर को कई हद तक कम करने में सफल हो जाएँगे, ”ऐसा डॉ अनिश अंधेरिया हमें बताते हैं, जो WCT के अध्यक्ष हैं।

अगर हमें, इन अनोखे जानवरों का संरक्षण करना है, तो हमें, उन्हें, जानना होगा। इस नाज़ुक मोड़ पर, हम पैंगोलिन के जटिल जीवन को जानने की शुरुआत ही कर रहे हैं।


भारत में पैंगोलिन संरक्षण को बढ़ाना, यह लेख, मौलिक तौर पर सैंक्चुअरी एशिया मैगज़ीन में, दिसम्बर, २०२२ में प्रकाशित हुआ था।


लेखिका के बारे में: पूर्वा वारियर, एक संरक्षणकर्ता हैं, विज्ञान संचारक और संरक्षण लेखिका भी हैं। पूर्वा, वाइल्ड लाइफ कंझरवेशन ट्रस्ट के साथ काम करती हैं, और पूर्व में, पूर्वा, सैंक्चुअरी नेचर फ़ाउंडेशन अँड द गेरी मार्टिन प्रोजेक्ट, के साथ काम कर चुकी हैं।

अस्वीकारण: लेखिका, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट से जुड़ी हुई हैं। इस लेख में प्रस्तुत किए गए मत और विचार उनके अपने हैं, और ऐसा अनिवार्य नहीं कि उनके मत और विचार, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट के मत और विचारों को दर्शाते हों।


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