किस तरह एक वॉटर हीटर जीवन बदलता है और जीवन बचाता है

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पतली-सूखी, हड्डी दिखती हुई और अस्त-व्यस्त, कांता कामड़े, नंगे पैर अपने घर के बाहर खड़ी रहती हैं। मैं भी उनके साथ, मौन में, अपने हाथों को मोड़कर, उन्हें छाती से चिपकाये, अपनी आँखें नीचे करके खड़ा रहता हूँ। ऐसा लगता है जैसे शोक प्रकट करने के लिए मैं आया हूँ। फिर वह बोलती हैं, ”ईंधन लकड़ी समाप्त हो गयी थी। गॅस सिलिंडर भी खाली हो गया था और हमने लंबे समय से उसे दोबारा भरवाया नहीं था।”

A truck full of water heaters is unloaded for distribution at a village in Bramhapuri, in Maharashtra’s Chandrapur district.
ब्रह्मपुरी के एक गाँव में, वितरण के लिए, ट्रक में से वॉटर हीटर को उतारा जा रहा है, महाराष्ट्र के चंद्रपुर ज़िले में। फोटो क्रेडिट: रिज़वान मिठावाला/WCT

जून, २०२२ का दिन था, दोपहर हो रही थी और आसमान में बादल थे। कांता, उनके पति राजेंद्र और उनके दो लड़कों में से छोटा वाला लड़का और वह दोनों, पास ही एक वन में, ईंधन लकड़ी लेने के लिए गए। कांता के पति ने, एक अल्पविराम लिया और ज़मीन पर बैठकर तंबखू खाने लगे। कांता ने बताया, ”पता नहीं कहाँ से एक बाघ आया और मेरे पति की पीठ पर चढ़ गया। ”कांता और उनका बेटा, कुल्हाड़ी लेकर, कांता के पति को बचाने के लिए दौड़े। कांता ने आगे बताया, ”जब बाघ ने उनको मुक्त किया और चला गया, तब कुछ ही सांसें बची थीं मेरे पति की।”

उसके ठीक दो दिन बाद, कांता की पड़ोसन, मंदा कामड़े ने अपने पति को खो दिया। वे बीज पिरौने के लिए गए हुए थे, खेत में नहीं, अपितु अतिक्रमण की हुई ज़मीन पर, जो वन के अंदर पड़ती थी। मंदा कामड़े ने सिर्फ एक ही शब्द का प्रयोग किया, जिसका अपनेआप में एक गहरा मतलब था-‘जबरन’। इस शब्द के दो अर्थ हैं, और यह दोनों अर्थ, हाशिये पर रहनेवाले परिवारों, जैसे की उनका, उनपर एकदम सटीक बैठते हैं-‘बल द्वारा’, और मजबूरी में, जब कोई और विकल्प नहीं बचता। ”क्यों ना हम, अपना पेट भरने के लिए वन पर निर्भर नहीं हो सकते?किसी के घर से चोरी करके खाने से अच्छा तो वन पर अपना पेट भरने के लिए निर्भर होना। मंदा हमें, हमारे बिना पूछे बताती हैं।

Women have to walk several kilometres to bring firewood from the forest. Apart from the physical hard work, there is always a possibility of encountering a wild animal.
औरतों को कई किलोमीटर दूर पैदल चलकर, वन से ईंधन लकड़ी लानी पड़ती है, और किसी जंगली जानवर से पाला पड़ने की संभावना भी साथ ही में बनी रहती है। फोटो क्रेडिट: रिज़वान मिठावाला/WCT

कांता और मंदा, हलदा में, वन की सीमा से लगते एक गाँव में रहती हैं, जो ब्रह्मपुरी वन मण्डल, जो महाराष्ट्र के चंद्रपुर ज़िले में पड़ता है। ब्रह्मपुरी में बाघों की जनसंख्या अच्छी ख़ासी है और यहाँ आपको ६०८ गाँव भी देखने को मिलेंगे। अधिकतर, यहाँ पर रहनेवाले लोग, जीविका के लिए वन पर निर्भर रहते हैं;प्राथमिक आवश्यकता जिसके लिए लोगों को वन में जाना पड़ता है, वह है ईंधन लकड़ी के लिए। कांता कहती हैं, ”सर्व काही काडयावर(सबकुछ ईंधन लकड़ी पर निर्भर करता है)”। “सगळ्या गोष्टी जंगल मधेच….. तर्च आम्हाला पोट भरायला जमते(हम वन पर ही निर्भर करते हैं, सभी चीजों के लिए, और इसी तरह हम हमारा पेट भरते हैं)”, ऐसा मंदा कहती हैं।

एक अनोखी समुदाय-उन्मुख परियोजना

ब्रह्मपुरी के गाओं में रहनेवाले कई परिवार और गाँव के नेताओं को अब यह लगने लगा है, की उनका जीवन अब धीरे धीरे बदल रहा है, और इसका सारा श्रेय जाता है कुशल ऊर्जा, बायोमास ईंधन युक्त वॉटर हीटर को , जिसको मराठी में ‘बंब’ कहा जाता है, और जिसको प्रचारित और वितरित, वाइल्डलाइफ कंझरवेशन ट्रस्ट द्वारा, वह भी ७५% अनुवृत्ति (सब्सिडी) पर किया जा रहा है। जइंद्र खोब्राग्ड़े, नाघभिड़ तालुका, ब्रह्मपुरी के नांदेड़ गाँव में ASHA(मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) Accredited Social Health Activist) कर्मचारी के रूप में काम करती हैं। वे तकरीबन तकरीबन नौ किलोमीटर पैदल चलती थीं, वन से ईंधन लकड़ी लाने के लिए;और शारीरिक श्रम के अलावा, जंगली जानवर से पाला पड़ने की भी संभावना बनी रहती थी। लेकिन यह दो साल पहले की बात थी, जब वह पारंपरिक चूल्हे का प्रयोग, नहाने के लिए, गरम पानी करने के लिए इस्तेमाल करती थीं। जइंद्र अब कहती हैं कि, ”अब मेरे पास, बंब है, और वन में जाने की समस्या अब कई हद तक कम हो गयी है। अब मुझे बहुत ही कम ईंधन लकड़ी की आवश्यकता होती है, क्योंकि अब मैं, ज़मीन पर गिरी पत्तियाँ और कृषि से निकले कचरे को, बंब के ईंधन के रूप में उपयोग करती हूँ। लेकिन बात सिर्फ इतनी सी नहीं है;चूल्हे पर पानी गरम होने में २०-२५ मिनट लगते थे और चूल्हे पर गरम हुआ पानी एक बार में सिर्फ एक ही व्यक्ति के काम आता था। अब, बंब के आने से, उतने ही समय में, एक बार में चार लोगों के लिए, नहाने के लिए पानी गरम हो जाता है।”

“जब हमारे पास बंब नहीं था, तो हम वन से ईंधन लकड़ी लाने के लिए सुबह १० बजे निकलते थे और शाम ५ बजे तक लौटते थे। अब, बंब के ईंधन के रूप में, हम ज़मीन पर गिरी लकड़ी और कृषि से उत्पन्न हुए कचरे का उपयोग करते हैं। और अब जंगली जानवरों से सामना होने का खतरा, अब समाप्त हो चुका है। अब हमारा जीवन बहुत सुरक्षित हो गया है। ”-संघमित्रा खोब्राग्ड़े, WCT के कुशल ऊर्जा, बायोमास ईंधन युक्त वॉटर हीटर परियोजना की लाभार्थी।

WCT ने अबतक, ब्रह्मपुरी के ४,०१५ घरों में, बंब वॉटर हीटर लगा दिये हैं, और बीएनपी परिबास इंडिया फ़ाउंडेशन, इस परियोजना को आगे बढ़ाने में सहायता कर रहा है। बंब वॉटर हीटर का, परिवारों द्वारा सफल अंगीकरण के चलते, महाराष्ट्र वन विभाग ने भी वही मॉडल को अपनाते हुए, अब वॉटर हीटर की आपूर्ति का विस्तार, चंद्रपुर के कई वन गाओं में भी करना आरंभ कर दिया है। महाराष्ट्र वन विभाग, अभी तक १,०१५ घरों तक वॉटर हीटर पहुँचा चुका है।

महिलाएँ, जो पारंपरिक चूल्हे का प्रयोग करती हैं, उन्हें चूल्हे के पास ही बैठना पड़ता है, और फूँक मारनी पड़ती है, ताकि ईंधन लकड़ी कुशलता पूर्वक जले। चूल्हे के धुएँ के कारण, आँखों में और सांस लेने में भी तकलीफ होती है। खोब्राग्ड़े कहती हैं, ”बंब के पास खड़े रहने की अब कोई आवश्यकता नहीं है, मैं अब दूसरे काम भी साथ साथ कर लेती हूँ। आप कल्पना कीजिये, मैंने सुबह बंब वॉटर हीटर को शुरू किया और मुझे आपातकालीन स्थिति में बुलावा आया-एक महिला बच्चे को जन्म देनेवाली है। मुझे उसके घर जाना पड़ेगा। जब में वापिस लौटूंगी, तीन घंटों के बाद, बंब वॉटर हीटर में पानी वैसे का वैसा गरम ही रहेगा”। कुछ ऐसा ही विचार एक अन्य ASHA कर्मचारी का है, उनकी पड़ोसन, संघमित्रा खोब्राग्ड़े। “जब हमारे पास बंब नहीं था, तो हम वन से ईंधन लकड़ी लाने के लिए सुबह १० बजे निकलते थे और शाम ५ बजे तक लौटते थे। अब, बंब के ईंधन के रूप में, हम ज़मीन पर गिरी लकड़ी और कृषि से उत्पन्न हुए कचरे का उपयोग करते हैं। और अब जंगली जानवरों से सामना होने का खतरा, अब समाप्त हो चुका है। अब हमारा जीवन बहुत सुरक्षित हो गया है। ” ऐसा वह कहती हैं।

कई स्तरों पर स्थिरता

वॉटर हीटर के लाभार्थियों से बातें करते हुए, मेरे कानों में तीन मराठी शब्द बार बार सुनाई देते हैं:तुराटी, गोवर्या और पालापाचोळा। ब्रह्मपुरी में, तूर, एक प्रकार की दाल की फसल को, चावल के खेतों की सीमा पर स्थित मेड़ों पर उगाया जाता है। फसल का अवशेष, डंठल के रूप में, स्थानीय तौर पर इसे तुराटी के नाम से जाना जाता है। यह सूखे डंठल, पहले उपयोगी नहीं थे, और वह भी जबतक वॉटर हीटर गाओं में नहीं पहुँचा था। अब, यह एक मूल्यवान संसाधन बन गए हैं, क्योंकि वे हीटर के बर्नर डिब्बे में कुशलतापूर्वक जलते हैं। गोवर्या, गोबर के सूखे कंडे होते हैं, और भारतीय गाओं के हर कोने में आपको मिलते हैं। पालापाचोळा, पत्ती का कूड़ा और विविध कृषि अपशिष्ट है। समुदायों ने स्वयं इसका पता लगा लिया है, की हीटर के लिए सर्वोत्तम ईंधन मिश्रण क्या हो सकता है; फसल अवशेष को गाय के गोबर में मिलाकर। इन विकल्पों का चतुराई से उपयोग, कई लोगों का कहना है, की जंगल में जाना, अब इतिहास बन गया है।

“ईंधन का नवाचार जिसे समुदाय लेकर आया है और जिस ‘स्वामित्व की भावना’ से लोग बातें करते हैं, उनकी भावना को, हीटर के प्रति व्यक्त करता है, जो किसी भी हस्तक्षेप का एक गंभीर पहलू होता है, और इससे व्यवहार में स्थायी परिवर्तन आता है ”, ऐसा कहते हैं अनिकेत भातखंडे, जो WCT कंझरवेशन बिहेवियर टीम के प्रमुख हैं, जो परियोजना को चलाती है। किताली बोरमाला, पहला गाँव जिसको बंब वॉटर हीटर मिला था, मुझे एकदम नए वेंट हूड़ (छिद्र ढक्कन) वाला एक पुराना हीटर मिला। युवा संदीप मसराम, जिसका वह वॉटर हीटर था, उसने गर्व से मुझसे कहा, की उनका परिवार, उस वॉटर हीटर का उपयोग, पिछले तीन सालों से कर रहे हैं और उसने हाल ही में, एक नया वेंट हूड़ बनवाया। एक लाभार्थी, जो वॉटर हीटर का अच्छे से रखरखाव, निरंतर उपयोग के लिए कर रहा है, यह बताता है, जो हस्तक्षेप का निर्माण हुआ है, उसका स्वामित्व अब लोग लेने लगे हैं।

Women who use the chulha are exposed to huge amounts of smoke, which can cause respiratory problems and irritation in the eyes.
वह महिलाएँ जो पारंपरिक चूल्हे का प्रयोग करती हैं, चूल्हे से निकलनेवाले धुएँ से उनको, आँखों में और सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। फोटो क्रेडिट:रिज़वान मिठावाला/WCT
The water heater distributed by WCT is reducing the need for women to visit the forest to collect firewood, and also their exposure to harmful smoke. Photo: Dr. Anish Andheria/WCT
जो वॉटर हीटर WCT द्वारा दिया गया है, उसके कारण महिलाओं को अब ईंधन लकड़ी के लिए, वन में जाने की उनकी यात्रा में कमी आयी है, और अब उनको, चूल्हे से निकलने वाले धुएँ से भी सुरक्षा मिल रही है। फोटो क्रेडिट: डॉ अनिश अंधेरिया?WCT

समर्थन मिलना

हालांकि, गाओं के लोगों को वॉटर हीटर को स्वीकारने और उसको उपयोग करने में समय लगा। मुरलीधर गौरकर, नांदेड़ गाँव के, ८०० घरों के सरपंच हैं, गाँव के मुख्या हैं, और उन्होंने, वॉटर हीटर बंब का भरपूर समर्थन किया। ”शुरुआत में लोगों ने इस बात पर विश्वास नहीं किया, की एक सरल वॉटर हीटर, वह भी जिसको विद्युत की आवश्यकता नहीं है, वह १५ मिनट में, ४ लोगों के लिए पानी गरम कर सकता है। लाइव प्रदर्शनों में भाग लेने के बाद भी, कई लोगों को ऐसा लगा, की ऐसे वॉटर हीटर पर पैसे खर्च करने की कोई आवश्यकता नहीं है, बावजूद इसके की वह ७५% सब्सिडी पर ही मिल रहा हो, जबकि ईंधन लकड़ी मुफ्त में मिलती है। उस समय, उन्होंने यह नहीं सोचा, की वॉटर हीटर के प्रयोग से उनका कितना समय बच सकता है, और ईंधन लकड़ी के लिए वन में जाकर, दिन के कितने रूपये जो वे कमा सकते थे, उसका नुकसान भी होता है, और साथ ही जंगली जानवरों से पाला पड़ने की संभावना भी बनी रहती है”, ऐसा वह कहते हैं, हीटर से भरे ट्रक की अनलोडिंग की निघरानी करते समय-जिसका उनके गाँव में वितरण का तीसरा दौर था, और वॉटर हीटर की संख्या ४०० पहुँच गयी थी। ”हम लोगों के लिए सबसे बड़ी बात यह थी, की वॉटर हीटर को तुराटी द्वारा ईंधन युक्त किया जा सकता था। लोगों को यह बात समझ आयी, की अब इसके कारण उन्हें वन में जाना ही नहीं पड़ेगा। उसके बाद, जिन लोगों ने वॉटर हीटर को अपना लिया था, उन्होंने ही अपने पड़ोसियों को और अपने परिजनों को वॉटर हीटर का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया। लोगों ने अपने पड़ोसियों को देखा, जिन्होंने, ईंधन लकड़ी के लिए वन में जाना छोड़ दिया था और वॉटर हीटर के लिए तुराटी और दूसरे अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग कर रहे थे, और जल्द ही, उन्होंने भी, बंब वॉटर हीटर का उपयोग करना आरंभ कर दिया।”

मैंने गौरकर से पूछा, की क्या वह बंब को एक कुशल हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं, जिसने मानव-जानवर संघर्ष और मृत्यु दर में कमी लाने का काम किया है। ”मेरी इस बात को सुनकर, उन्होंने दबी हँसी में मुझसे कहा, ”अब भोजन बनाने के लिए हमारे पास एलपीजी है, पानी गरम करने के लिए बंब है, और तुराटी और गोबर के सूखे कंडे हैं, बंब को ईंधन युक्त करने के लिए। तो अब वन में जाने की क्या आवश्यकता है?इन सुविधाओं के कारण, अब लोगों का जीवन आसान हो गया है और लोग आलसी हो गए हैं।

मैंने तमन्ना अहमद, जो WCT में डेवलपमेंट साइंटिस्ट हैं, जो, उनकी फील्ड टीम के साथ, इस परियोजना को ज़मीन पर लागू करने के लिए उत्तरदायी हैं, उनसे यह पूछा की, वह इस परियोजना को किस तरह देखती हैं, और यह परियोजना, उन्हें किस दिशा में जाते हुए दिखायी देती है, और इस पर तमन्ना का कहना था, ”तीन साल हो चुके हैं, जब पहले बंब वॉटर हीटर का वितरण हुआ था। हमने लोगों की हिचक देखी है, बंब वॉटर हीटर को अपनाने में, और अब हम देख रहे हैं की लोग चाहते हैं, की हम दूसरे चरण के बंब वॉटर हीटर के वितरण में उन्हें, दूसरे गाओं से पहले तरजीह दें। इस सफलता ने विज्ञान समर्थित हस्तक्षेपों में हमारे विश्वास को मजबूत किया है, और हम उन समाधानों को खोजने की दिशा में काम कर ही रहे हैं, जो सीधे तौर पर संघर्ष और मानव मृत्यु के कारणों को संबोधित करते हैं।


मौलिक तौर पर यह लेख, सैंक्चुअरी एशिया मैगज़ीन में, फ़रवरी, २०२३ के संस्कारण में प्रकाशित हुआ था।


लेखक के बारे में: रिज़वान मिठावाला, एक संरक्षण लेखक हैं, वनजीवन संरक्षण संघ के साथ, और, इंटरनेशनल लीग ऑफ कंझरवेशन राइटर्स के फ़ेलो भी हैं। अतीत में, वे एक राष्ट्रीय समाचार पत्र के साथ काम कर चुके हैं, एक पर्यावरण पत्रकार के तौर पर।

अस्वीकारण: लेखक, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट से जुड़े हुये हैं। इस लेख में प्रस्तुत किए गए मत और विचार उनके अपने हैं, और ऐसा अनिवार्य नहीं कि उनके मत और विचार, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट के मत और विचारों को दर्शाते हों।


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