कानून के प्रवर्तकों और व्याख्याकारों को लैस करना
वनजीवन अपराध की यात्रा, इसके उपक्रम से लेकर, कानून की अदालत में इसके फैसले, एक जटिल मामला है, जो असंख्य चुनौतियों से भरा हुआ है , कानून प्रवर्तन एजेन्सीस के लिए, उनके संघर्ष में, ताकि अपराध को न्यायालय में साबित कर सकें, और न्याय प्राप्त कर सकें। यह यात्रा, प्रणालीगत कमियों से भरी हुई है, जिसकी जड़ें बहुत गहरी हैं। भारत में वनजीवों के विरुद्ध अपराध, बड़े पैमाने पर और व्यापक तौर पर फल-फूल रहे हैं। जीविका के लिए संरक्षित प्रजातियों का शिकार करना, पारंपरिक औषधि, धार्मिक मान्यताएँ और वनजीव तस्करी;सुरक्षित क्षेत्रों में अवैध प्रवेश और उसका विनाश;इत्यादि;भारतीय वनजीवन जनसंख्या और उनके निवास के लिए एक गंभीर खतरा हैं, जिन पर पहले से ही गंभीर प्रहार हो रहे हैं, कई मानवजनित दबावों के चलते। दुख की बात यह है, की, भारत में वनजीव अपराध मामलों की सज़ा दर, पाँच प्रतिशत से भी कम है।
सौभाग्यवश, भारत में विधान, एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करता है, वनजीवन और उनके निवास स्थानों और पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिए। लेकिन, केवल सिद्धांत में मज़बूत कानून, किसी काम के नहीं होते।
“वाइल्ड लाइफ(प्रोटेक्टशन) एक्ट1, १९७२ के प्रावधान(यहां इसे अधिनियम कहा गया है) दृष्टिकोण में संरक्षणवादी हैं, और विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध निर्धारित करते हैं, जिनकी व्याख्या, व्यापक तौर पर की जा सकती है। यह अधिनियम, सबसे मज़बूत कानूनी ढांचे में से एक है, पूरे विश्व में, वनजीवन को सुरक्षित करने के लिए। जबकि प्रवर्तन, सही धाराओं को लागू करने का पता लगाता है, और बेदाग कागज़ी कार्रवाई तैयार करना मुश्किल है, रचनात्मक तरीके से कानून को, मामले के तथ्यों पर लागू करना, मामले को मजबूत कर सकता है, और सज़ा दरों में सुधार भी ला सकता है। यह अभियोजकों और वकीलों पर निर्भर करता है, की वे, यह सुनिश्चित करने के लिए, वन अधिकारियों की सहायता करें”, यह है कहना, मृदुला विजयीराघवन का, जो वाइल्डलाइफ कंझरवेशन ट्रस्ट(WCT)में, पर्यावरण वकील के रूप में काम करती हैं।
1वाइल्डलाइफ(प्रोटेक्टशन) एक्ट, १९७२ को, अधिनियम के रूप में, पूरे लेख में संदर्भित किया गया है।
मृदुला, WCT की दूसरी कॉमबैटिंग वाइल्डलाइफ क्राइम(CWC) प्रोग्राम टीम की सदस्यों के साथ, उस कमी को भर रही हैं, बात जब वन कर्मचारियों, अभियोजकों और न्यायाधीशों के ज्ञान और क्षमता की आती है, भारत में वनजीव संरक्षण कानूनों के संबंध में। WCT का CWC प्रोग्राम, DSP निवेश प्रबन्धकों द्वारा समर्थित, राज्य वन विभागों सहित, विभिन्न हितधारकों के साथ काम करता है, जिसमे न्यायपालिका और सरकारी अभियोजक भी शामिल हैं, ताकि अपराध का पता लगाने में सुधार हो, और वनजीवन अपराधों में न्याय मिल सके।
न्याय तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब वनजीव कानून और प्रवर्तन के पहियों के सभी पेंच में समन्वय हो, कानून प्रवर्तन अधिकारियों और नीति निर्माताओं के अलावा, , न्यायपालिका एक अत्यंत महत्वपूर्ण बिन्दु है।
अपने CWC कार्यक्रम के माध्यम से, WCT, अपने विभिन्न राज्य वन विभाग में, केवल प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण, वनजीव कानून प्रवर्तन और अपराध स्थल की जाँच में सहायता नहीं कर रहा, अपितु WCT, न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों के लिए, विशेष कार्यशालाओं का आयोजन करके, व्यवस्थित रूप से संवेदनशील बनाने का, और जागरूकता बढ़ाने का काम भी कर रहा है।
न्यायपालिका को संवेदनशील बनाना
कोर्ट रूम के अंदर, करो या मारो वाली स्थिति होती है। जो पीठासीन जज होते हैं, बहुत कुछ उनके सही निर्णय, ज्ञान, निष्पक्षता और कानून के प्रावधानों के साथ-साथ साक्ष्य की व्याख्या करने पर निर्भर होता है। यह अभियोजकों का उत्तरदायित्व होता है, की वे साक्ष्य और गवाही को स्पष्ट करके, ऐसा ठोस और मज़बूत मामला बनाएँ, जो अदालत में जाँच का सामना कर सके, और टिका भी रहे। तब यह अत्यंत महत्वपूर्ण है, की वकीलों और पीठासीन न्यायधीशों के पास, वनजीवन से संबंधित जटिल मुद्दों पर, एक इष्टतम पकड़ हो।
मृदुला आगे बताती हैं कि, ”वनजीव अपराध के मामलों की सुनवाई, मजिस्ट्रेट के समक्ष की जाती है, जो अनेक प्रकार के मामलों का निर्णय करते हैं, जिसमे हत्या से लेकर, बलात्कार से लेकर, नारकोटिक्स और असावधानी शामिल है। दैनिक तौर पर, वे बड़ी संख्या में, कानूनों से निपटते हैं, जिसके कारण एक विशेष एक्ट (अधिनियम) जैसे वाइल्ड लाइफ (प्रोटेक्टशन) एक्ट, १९७२, पर ध्यान देना कठिन हो जाता है। न्यायाधीश, इससे तुरंत परिचित नहीं हो सकते हैं, या वह संदर्भ, जिसमें यह संचालित होता है। इसीलिए, अधिनियम की बारीकियों और पेचीदगियों के बारे में न्यायपालिका को संवेदनशील बनाना, और उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण, न्यायपालिका को वनजीवों की दुर्दशा और वनजीव व्यापार की भारी लागत के प्रति संवेदनशील बनाना, मामले की अध्यक्षता करने के लिए, एक अधिक जागरूक न्यायाधीश की नियुक्ति से, काफी सहायता मिल सकती है। ट्रायल कोर्ट के कई निर्णय, अब वनजीवों के प्रति करुणामय दृष्टिकोण अपनाते दिखाई दे रहे हैं, और अपने निर्णयों में इसे ज़ोर देकर व्यक्त भी कर रहे हैं, और यह दर्शाता है, की न्यायपालिका के लिए संवेदीकरण कार्यक्रम, वनजीव अपराध के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
अपने CWC कार्यक्रम के माध्यम से, WCT, अपने विभिन्न राज्य वन विभाग में, केवल प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण, वनजीव कानून प्रवर्तन और अपराध स्थल की जाँच में सहायता नहीं कर रहा, अपितु WCT, न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों के लिए विशेष कार्यशालाओं का आयोजन करके व्यवस्थित रूप से संवेदनशील बनाने का और जागरूकता बढ़ाने का काम भी कर रहा है।
न्यायाधीशों और अभियोजकों के लिए जो प्रशिक्षण कार्यक्रम होते हैं, वे बहुत ही संगीन होते हैं, और WCT की कानून और फोरेंसिक विशेषज्ञों की टीम द्वारा संचालित किये जाते हैं, और वह भी वन विभाग एवं संस्थाओं के सहयोग से, जैसे मध्य प्रदेश राज्य न्यायिक अकादमी। WCT ऐसी कार्यशालाओं का उपयोग, एक अवसर के रूप में कर रहा है, ताकि दो मुख्य हितधारकों को, जो वनजीव अपराध के अभियोजन में शामिल हैं, उन्हें एक साथ, एक ही कमरे में लाया जा सके-वन अधिकारी और अभियोजक।
फरवरी २०२३ में, मध्य प्रदेश वन विभाग के सहयोग से, २० अतिरिक्त ज़िला अभियोजन अधिकारियों के लिए, वह भी मध्य प्रदेश के १८ ज़िलों से, WCT ने, मध्य प्रदेश के वन विहार राष्ट्रीय उद्यान, भोपाल में, दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला, अधिनियम के कार्यान्वयन में चुनौतियों पर केंद्रित थी, और वन कर्मचारियों द्वारा सामना की जाने वाली प्रक्रियात्मक बाधाओं पर थी, जब वनजीव अपराधों पर, मुकदमा चलाया जाता था। मध्य प्रदेश वन विभाग के विभिन्न वरिष्ठ अधिकारियों ने वहाँ उपस्थित अभियोजकों से बातचीत की।
नीरज पांडे, ADPO, रीवा, मध्य प्रदेश, जिन्होंने भोपाल में हुई कार्यशाला में भाग लिया था, वे बताते हैं, ”जहां उनकी जाँच(वन अधिकारी) समाप्त होती है, वहाँ से हमारी जाँच शुरू होती है। वनजीवन अपराधों में बढ़ोतरी देखी जा रही है, और WCT की कार्यशालाएँ, मेरे जैसे अभियोजक की सहायता कर रही हैं, वन कर्मचारियों की चुनौतियों और कमियों को बेहतर ढंग से समझने के लिए, अधिनियम के जो प्रावधान हैं, उनको बेहतर ढंग से समझने के लिए, और अंत में, वनजीव अपराध की जो बहुआयामी प्रकृति है, उसे भी बेहतर ढंग से समझने के लिए। अधिनियम की धाराओं की खराब व्याख्या, साक्ष्यों का घटिया प्रबंधन और प्रसंस्करण, और उसके साथ साथ कमज़ोर अपराध स्थल जाँच कौशल, अक्सर खराब तरीके से तैयार की गई प्रारंभिक अपराध रिपोर्ट(POR) और कमज़ोर केस दस्तावेज़ में रूपांतरित होते हैं। आखिरकार, ऐसे वनजीवन अपराध मामलों को, उचित न्याय प्राप्त नहीं होता, और जिसके कारण अपराधी सीधे सीधे अपराध मुक्त हो जाते हैं।
वन अधिकारियों को लैस करना
क्या आप ‘वाइल्ड एनिमल’ और ‘वाइल्ड लाइफ’ के बीच में कुछ ज़्यादा अंतर देखते हैं?या फिर ‘एनिमल’ और ‘कैप्टिव एनिमल’ के बीच में आप ज़्यादा अंतर देखते हैं?या फिर ‘मीट’, ’ट्रॉफी’ और ‘एनिमल आर्टिक्ल’?सबूत के तौर पर, कानूनी दस्तावेज़, एक वन अधिकारी द्वारा, न्यायालय को किए प्रस्तुत से अंतर स्पष्ट है, और यदि एक शब्द भी इधर-उधर हुआ, तो इसके कारण मामला, कमज़ोर हो सकता है। कानून की अदालत में, जो टेर्मिनोलोजी है, और जो अधिनियम के प्रावधान की सही व्याख्या है, उसी पर न्यायालय में केस निर्भर होता है।
“मंशा, किसी भी अपराध की रीढ़ की हड्डी होती है, जिसमे वनजीवन के विरुद्ध, अपराध भी शामिल हैं। किए गए अपराध/अपराधों के पीछे की मंशा को साबित करना, संदिग्ध या अन्यथा उचित संदेह से परे, कानून की अदालत में अभियोजन का सब कुछ और अंत है, ”ऐसा मृदुला जी कहती हैं। इसीलिए, यह वन अधिकारियों के लिए महत्वपूर्ण है, की वे यह सुनिश्चित करें, की अपराधी पर अधिनियम की सही धाराओं के तहत आरोप लगाया जाए।
उद्देश्य यह है की, वन विभागों में, पता लगाने के लिए, जाँच करने के लिए और एक ठोस मामला वनजीवन अपराधियों के विरुद्ध बनाने के लिए प्रवर्तन क्षमता को मज़बूत करना। १५, ००० से अधिक वन सुरक्षाकर्मी, WCT के कानून प्रवर्तन प्रशिक्षण और फोरेंसिक्स कार्यशालाओं से लाभान्वित हो चुके हैं।
सी सम्युक्ता, जो फोरेंसिक्स विशेषज्ञ हैं, WCT में, वह बताती हैं, ”कभी -कभी उपलब्ध साक्ष्यों और परिस्थितियों के आधार पर, समझो की एक शिकार से जुड़े एक मामले में, सहवर्ती अपराध को साबित करना आसान है, जैसे, अवैध कब्ज़ा या हथियारों के साथ किसी अभ्यारण्य में अवैध प्रवेश, खुद शिकार करने के बजाय, और अधिनियम की संबद्ध धाराओं को लागू करना, आरोप को बरकरार रखने का एक बेहतर तरीका है। इसके लिए, अधिनियम की गहन समझ की आवश्यकता है, और वनजीवन अपराध की प्रकृति को समझने की भी गहन आवश्यकता है, और यही हम, वन अधिकारियों, वकीलों और न्यायपालिका के वरिष्ठ सदस्यों को बताना चाहते हैं, उन्हें समझाना चाहते हैं।”
WCT, वन अधिकारियों को अधिनियम की जानकारी/ज्ञान से लैस कर रहा है, और उन शक्तियों की समझ की जानकारी से भी लैस कर रहा है, जिसमे सुधार हुआ, अधिनियम के तहत और जिसे, उनमे निहित किया गया है। उद्देश्य यह है, की राज्य वन विभागों के भीतर प्रवर्तन क्षमता को मजबूत किया जाए। १५, ५०० से अधिक वन अधिकारी, भारत के 40 संरक्षित क्षेत्रों में, WCT के कानून प्रवर्तन प्रशिक्षण और फोरेंसिक्स कार्यशालाओं से लाभान्वित हो चुके हैं। नियमित वाइल्ड लाइफ लॉं एन्फोर्स्मन्ट अँड फोरेंसिक्स ट्रेनिंग प्रोग्राम्स, अग्रणी वन कर्मचारियों, वरिष्ठ वन अधिकारियों, संभाग स्तरीय वन अधिकारियों और प्रशिक्षुओं के लिए , महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के वन प्रशिक्षण संस्थानों में, WCT द्वारा, राज्य वन विभागों के सहयोग से, आयोजित किए जा रहे हैं।
लेकिन, वन कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के अलावा, WCT अब एक मिशन पर है, पूरे भारत में, वकीलों का एक ठोस नेटवर्क बनाने के लिए, जो अपना समय, स्वेच्छा से देने के लिए प्रेरित हैं, वन कर्मचारियों की सहायता के लिए, वह भी कानूनी सलाह प्रदान करके और कागज़ी कार्रवाई पर अपना इनपुट देकर। इससे, मज़बूत मामले बनाने में, और वन कर्मचारियों के प्रयासों को आगे बढ़ाने में, सहायता मिलेगी और वनजीव अपराध के विरुद्ध, लड़ाई में योगदान भी मिलेगा।
मृदुला आगे बताती हैं, ”चूँकि वकील तुरंत वाइल्ड लाइफ (प्रोटेक्टशन ) एक्ट, १९७२ और संबद्ध कानून की बारीकियों के साथ परिचित नहीं हो सकते हैं, इसीलिए डब्ल्यूसीटी, कार्यशालाएं आयोजित करने की दिशा में काम कर रहा है, उन प्रैक्टिस करने वाले वकीलों के लिए, जो स्वेच्छा से अपना समय, वन कर्मचारियों और वनजीवन अपराध मामलों के अभियोजकों को देने में रुचि रखते हैं।”
फरवरी २०२३ में, स्कूल ऑफ लॉ, क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु के सहयोग से, WCT ने एक गहन कार्यशाला का आयोजन किया, जिसमें देशभर के 17 प्रैक्टिसिंग वकीलों ने भाग लिया, जिनको कई आवेदनों में से शॉर्टलिस्ट किया गया था और उनके अलावा २९ लॉं स्टूडेंट्स, जो क्राइस्ट यूनिवर्सिटी से ही थे, उन्होंने भी भाग लिया। कानूनी समुदाय से, इस पहल को, भरपूर मात्रा में, अच्छी प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुई, और उनमे से कई ने, वनजीवन के प्रति, अपनी सेवाएँ प्रदान करनी की इच्छा भी ज़ाहिर की।
जबकि स्थापित कानूनी प्रॉफेश्नल के साथ काम करना अनिवार्य है, उन्हें कम उम्र में पकड़ना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। भारत को समर्पित और प्रशिक्षित पर्यावरण वकीलों की आवश्यकता है, जिनको पर्यावरण, जलवायु और संरक्षण संबंधी मुद्दों का अनुभव हो।
उन्हें कम उम्र में पकड़ना
भारत को एक समर्पित और प्रशिक्षित पर्यावरण वकीलों की सेना की अत्यंत आवश्यकता है, जिनको पर्यावरण, जलवायु और संरक्षण संबंधी मुद्दों का अनुभव हो, जो हमारे देश को परेशान करता है।
सम्युक्ता कहती हैं कि, ”भारत भर के न्यायालय, मनुष्यों के विरुद्ध आपराधिक मामलों के बोझ तले दबे हुए हैं। परिणाम स्वरूप, शिकारियों, प्रदूषक, अवैध वनजीवन व्यापारी और पशु क्रूरता की घटनाओं के खिलाफ जो मामले दर्ज किए जाते हैं, इस कोलाहल में, वे कहीं खो जाते हैं। एक तेज़ क़ानूनी बुद्धि की आवश्यकता है, ताकि न्यायाधीशों का ध्यान और न्याय, इन पर्यावरण, वनजीवन और एनिमल राइट्स ‘अंडरड़ोग्स’ की तरफ आकर्षित किया जा सके। जब न्यायपालिका के साथ ही संयुक्त हों, जो वनजीव कानून के प्रति संवेदनशील और प्रशिक्षित किया गया हो, तो ऐसा कानूनी कौशल, यह सुनिश्चित करेगा की, वनजीव अपराधियों को कड़ी सज़ा, एक अपवाद के बजाय एक आदर्श बने।
जबकि स्थापित कानूनी प्रॉफेश्नल के साथ काम करना अनिवार्य है, उन्हें कम उम्र में पकड़ना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। पर्यावरण शिक्षा और वनजीवन संरक्षण के इर्द गिर्द युवा लॉं विद्यार्थियों में रूचि पैदा करना, आनेवाले समय में सफल साबित होगा। और इस अंत तक, WCT का अनोखा वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्टशन गवर्नमेंट लॉं कॉलेज नेशनल मूट कोर्ट कॉम्पटिशन, मुंबई के गवर्नमेंट लॉं कॉलेज के सहयोग से, एक आशाजनक प्रयास है। पहले से ही चार संस्करण पुराना, इस डीएसपी निवेश प्रबंधकों द्वारा वित्त पोषित प्रतियोगिता में, भारत भर के १६ प्रसिद्ध लॉं कोलेजेस के विद्यार्थी, प्रति वर्ष भाग लेते हैं।
यह कार्यक्रम, भाग लेनेवाले लॉं स्टूडेंट्स को वनजीवन संरक्षण और पर्यावरण की चुनौतियों को गंभीर रूप से समझने में सहायता कर रहा है। उन्हें जो पढ़ना और तैयारी करनी होती है, सावधानीपूर्वक संकलित विवादास्पद समस्याओं पर विचार-विमर्श करके, वह वास्तविक, दबावपूर्ण और समसामयिक वनजीव मुद्दों पर निर्मित होती हैं, जो उन्हें अधिक संवादी बनाता है, इन अन्यथा उपेक्षित मामलों के साथ। प्रतियोगिता का प्रारूप, उन्हें कानूनी क्षेत्र में एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करता है , और जिसकी मध्यस्ता बॉम्बे हाई कोर्ट के कुछ सबसे कुशल न्यायाधीश करते हैं।
“लंबे समय में, इस आयोजन से, प्रतिभाशाली कानूनी दिमागों का एक समूह तैयार होने की उम्मीद है, जो वनजीवन और वन अपराध के मुद्दों का मुकाबला करेंगे, ”ऐसा सम्युक्ता कहती हैं।
मौलिक तौर पर यह लेख, सैंक्चुअरी एशिया मैगज़ीन में, अप्रैल, २०२३ के संस्कारण में प्रकाशित हुआ था।
लेखिका के बारे में: पूर्वा वारियर, एक संरक्षणकर्ता हैं, विज्ञान संचारक और संरक्षण लेखिका भी हैं। पूर्वा, वाइल्ड लाइफ कंझरवेशन ट्रस्ट के साथ काम करती हैं, और पूर्व में, पूर्वा, सैंक्चुअरी नेचर फ़ाउंडेशन अँड द गेरी मार्टिन प्रोजेक्ट, के साथ काम कर चुकी हैं।
अस्वीकारण: लेखिका, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट से जुड़ी हुई हैं। इस लेख में प्रस्तुत किए गए मत और विचार उनके अपने हैं, और ऐसा अनिवार्य नहीं कि उनके मत और विचार, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट के मत और विचारों को दर्शाते हों।
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