“अपितु सभी जानवर समान हैं, लेकिन कुछ दूसरों से अधिक समान हैं”*: भारत में मांसाहारी अनुसंधान की समीक्षा (१९४७-२०२०)
एक बहु-संस्थागत प्रयास के तहत हाल ही में बायोलॉजिकल कंज़रवेशन जर्नल में ‘करिश्माई प्रजातियों के अनुसंधान में दरार: मांसाहारी विज्ञान के ७० साल और भारत में संरक्षण और नीति के लिए इसके निहितार्थ’ (‘Chasms in charismatic species Research: Seventy years of carnivore science and its implications for conservation and policy in India’) नाम का एक पेपर प्रकाशित हुआ। यह पेपर भारत में मांसाहारी अनुसंधान के सत्तर वर्षों की समीक्षा करता है। इसके लिए हमने भारत में पाए जाने वाले मांसाहारियों पर कुल १,७९२ प्रकाशित अध्ययनों (जिसमे से ८०%, यानि १,४४२ जर्नल लेख थे) की समीक्षा की।
हमने पाया कि अधिकांश अध्ययन विशेष रूप से संरक्षित क्षेत्रों (PA’s) मे किए गए थे (४५%), जबकि २४% पीए (PA) के बाहर किए गए थे। शेष अध्ययन पीए (PA) के अंदर और बाहर दोनों जगह आयोजित किए गए थे। अन्य समूहों की तुलना में अधिकांश अध्ययन विडाल वंश (felid) के जानवरों पर किए गए, इसके उपरांत कुत्ता प्रजाति (कैनिड्स) पर, फिर विवरिड्स और इसके पश्चात मस्टेलिड्स पर। बाघ ( पैंथेरा टिग्रिस) ) सबसे अधिक अध्ययन की जाने वाली प्रजाति थी, सभी अध्ययनों का लगभग २५ प्रतिशत इनके ऊपर किया गया था। इसके बाद क्रमशः तेंदुए (पैंथेरा पार्डस), सियार (कैनिस ऑरियस), ढ़ोल/सोनकुत्ता (कुओन एलपिनस) और जंगली बिल्ली (फेलिस चौस) का नंबर आता है।
हमने यह भी पाया कि भारतीय और ग़ैर-भारतीय संस्थानों के बीच सहयोगात्मक अध्ययन आम तौर पर उच्च प्रभाव-कारक जर्नल्स (high impact journals) में प्रकाशित होते थे। प्रकशानों की संख्या की बात करें तो वे बड़े मांसाहारियों के प्रति पक्षपाती थे, विशेष रूप से वह प्रजातियाँ जो ख़तरे में थीं और जिनके पर्यावास का दायरा विस्तृत था। हालांकि गुणात्मक तरीके से देखा जाए तो अधिक अध्ययन का मतलब उन प्रजातियों से जुड़ी पारिस्थितिक जानकारी में इज़ाफ़ा नहीं था, क्योंकि कई पपेर्स में केवल किसी नए इलाके से उक्त मांसाहारी प्रजाति के वितरण रिकॉर्ड के बारे में चर्चा की गई थी। विषयों के संदर्भ में बात की जाए तो प्राकृतिक इतिहास (natural history) अध्ययन में पिछले कुछ दशकों में लगातार गिरावट देखी गई। साथ ही यह पाया गया कि अधिकांश हालिया अध्ययन एक संदर्भ-विशेष (जैसे उक्त प्रजाति केआहार, जनसंख्या पारिस्थितिकी, व्यवहार) पर आधारित थीं।
वैज्ञानिक ज्ञान का अधिकतर योगदान बड़े विडालों के लिए संरक्षण नीतियों के निर्माण में रहा है जिसमे बाघ सबसे प्रमुख रहा। तेंदुए और हिम तेंदुए (पैंथेरा अन्सिया) अन्य विडालवंशी थे जिनके लिए राष्ट्रीय दिशानिर्देश या अंतरराष्ट्रीय नीतियाँ लागू की गई हैं। हालाँकि चौंकाने वाली बात या है कि अपितु उपेक्षित मांसाहारियों के कई आवास गंभीर रूप से खतरे में हैं, लेकिन इसके बावजूद भारत में ऐसे पर्यवासों को बंजर भूमि की श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है। उदाहरण के तौर पर, भारतीय भेड़िया (कैनिस ल्यूपस पल्लिप्स) के पर्यावास अधिकतर इस श्रेणी में आते हैं।
जहां तक मांसाहारी अध्ययन पर शोध कार्य में आर्थिक मदद की बात की जाए तो भारतीय फंडिंग एजेन्सीज़ के अंतर्गत भारत और राज्य सरकारें सूची में सबसे पहले पायदान पर थी। इसी प्रकार चिड़ियाघरों, फाउंडेशनों और अन्य एजेंसियों से अंतर्राष्ट्रीय फंडिंग भी अन्य जीवन रूपों (पौधों समेत) की तुलना में मांसाहारी अध्ययन पर ही केंद्रित रही है।
निहितार्थ (Implications) और आगे का रास्ता
- ओपन-सोर्स प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से डेटा साझा करना मांसाहारी अनुसंधान में पारदर्शिता ला सकता है।
- मांसाहारी जीवों के शोधार्थियों को अपने अध्ययन फर्जी जर्नल्स में प्रकाशित नहीं करना चाहिए।
- हालांकि अंतर-विषयक (inter-disciplinary) शोध मांसाहारी जीवों के प्रबंधन में बेहतरी कर सकता है , लेकिन बहु-विषयक (multi-disciplinary) अनुसंधान के उदाहरण भारत में दुर्लभ हैं।
- भारत में मांसाहारी जीवों के विज्ञान का लोकतंत्रीकरण करने की क़वायद में अनुसंधान अनुमति एक प्रमुख अवरोध है जो गैर-सरकारी निकायों (non-governmental bodies) के अभिगमन (access) में बंधन डालता है। इसमें सुधार की आवश्यकता है।
- स्थानीय हिस्सेदारों (local stakeholders) को भी भागीदारी द्वारा लंबी समय-सीमा वाले शोध कार्यों में सम्मिलित किया जा सकता है।
- भारत में मांसाहारी जीवों पर दीर्घकालीन शोध में सरकारी और गैर-सरकारी एजेन्सीज़/स्थानीय हिस्सेदारों के बीच सहयोग बहुत कम है। देश में मांसाहारी जीवों के संरक्षण प्रयासों को आगे बढ़ाने में ऐसी सहभागिता की प्रमुख भूमिका है।
*लेख में उपयोग किया गया कोट जॉर्ज ऑरवेल की किताब एनिमल फार्म से लिया गया है।
लेखक के बारे में: गिरीश पंजाबी WCT में वन्यजीव जीवविज्ञानी हैं और इस पेपर के कई लेखकों में से एक हैं।
अस्वीकारण: लेखक, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट से जुड़े हुये हैं। इस लेख में प्रस्तुत किए गए मत और विचार उनके अपने हैं, और ऐसा अनिवार्य नहीं कि उनके मत और विचार, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट के मत और विचारों को दर्शाते हों।
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