Otter (ऑटर)! आप सभी ने कभी न कभी इस अनूठे जीव के बारे में सुना या पढ़ा होगा, या फिर इनकी कोई तस्वीर या वीडियो देखी होगी। ये चंचल अर्ध-जलीय स्तनपायी दुनिया भर के खारे और मीठे पानी के जलस्रोतों में पाए जाते हैं, और नदियों, जलाशयों एवं समुद्रों के स्वास्थय का सूचक हैं। हिन्दी में ऑटर को आमतौर पर “ऊदबिलाव” के नाम से जाना जाता है।
Photo credit: Madhya Pradesh Forest Department
अमूमन हिन्दुस्तानी (हिन्दी और उर्दू) में कई जानवरों के नाम उनके व्यावहारिक जीवन पर प्रकाश डालते हैं और ऊदबिलाव इसका एक अच्छा उदाहरण है। इसका नाम दो शब्दों के मेल से बना है – “ऊद” और “बिलाव”। संस्कृत में “ऊद” का अर्थ होता है “पानी”, वहीं खड़ी बोली में बिल्ली को “बिलाव” कहा जाता है। अतः ऊदबिलाव का अर्थ हुआ “पानी की बिल्ली” – जैसे बिल्ली ज़मीन पर छोटे जानवरों का शिकार करती है ठीक उसी तरह ऊदबिलाव अपना काफी समय पानी में बिल्ली के समान ही जलीय जीवों का शिकार करने में बिताता है। अब शायद आप कहें कि मुझे तो ऊदबिलाव की शकल और हरकतें बिल्ली से कम और कुत्ते से अधिक मिलती-जुलती लगती हैं। यदि ऐसा है तो आप अकेले नहीं है। शायद इसी कारणवश झारखंड और छत्तीसगढ़ के कुछ आदिवासी समूहों में ऑटर को ऊदबिलाव नहीं बल्कि “पनकुत्ता” कहा जाता है (पन = पानी)!
ख़ैर, अब ये तो बात हुई स्थानीय नामों की, लेकिन वैज्ञानिक वर्गीकरण के अनुसार विश्वभर के सभी ऊदबिलाव Lutra वंश के अंतर्गत आते हैं। दुनिया में इनकी 13 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, और भारत में इनकी 3 प्रजातियाँ मिलती हैं – Eurasian Otter (यूरेशीयाई ऊदबिलाव), Asian small-clawed otter ( एशियाई छोटे-नाखून वाला ऊदबिलाव) और smooth-coated otter (चिकनी/मुलायम-खाल वाला ऊदबिलाव)।
Illustration by Akshaya Zachariah
हालांकि भारत में इन तीनों ही प्रजातियों पर बहुत कम शोध हुआ है, परंतु इनमें भी यूरेशीयाई ऊदबिलाव के बारे में तो हमारी जानकारी लगभग ना के बराबर थी। यदि हम इतिहास को टटोलें तो ब्रिटिश-कालीन प्राकृतिक इतिहासकारों ने भारतीय उपमहाद्वीप में यूरेशीयाई ऊदबिलावों के अस्तित्व का ज़िक्र अपने लेखों में किया तो ज़रूर था, परंतु कोई भी भारत से यूरेशीयाई ऊदबिलाव की तस्वीर प्रस्तुत नहीं कर सका था। लेकिन फिर आई मध्य प्रदेश के सतपुड़ा बाघ अभयारण्य में 2015 के दिसम्बर की एक कड़कड़ाती ठंडी रात, और वहाँ कार्यरत WCT के शोधकर्ताओं ने अपने एक कैमरा-ट्रैप में कुछ ऐसा देखा जिसने सबके होश उड़ा दिए!
दिसंबर 2015 में WCT की एक टीम सतपुड़ा व्याग्रह आरक्ष में बाघों की गणना में वन विभाग के साथ काम कर रही थी। इस दौरान वन विभाग और WCT ने मिल कर फैसला किया कि इस दफा गणना में सतपुड़ा के हर हिस्से में कैमरा ट्रैपिंग की जाएगी। यह एक ऐतिहासिक क़दम था, क्योंकि सतपुड़ा के एक बहुत बड़े क्षेत्र का सर्वेक्षण उसके अत्यधिक दुर्गम भूगोल के कारण नहीं हो पाता था। पर इस बार सघन वनों से आच्छादित सतपुड़ा की इन पहाड़ियों, गहरी खाइयों, खड़ी चट्टानों, और उनके बीच बहने वाले नदी–नालों का ना सिर्फ प्रथम सर्वेक्षण होना था बल्कि पूरे पार्क को 2 वर्ग किमी के ग्रिड में बांट कर इन सभी सुदूर दुर्गम क्षेत्रों में कैमरा ट्रैपिंग भी की जानी थी। इस दौरान WCT की 12 सदस्यीय टीम का नेतृत्व हमारे वरिष्ठ जीव वैज्ञानिक आदित्य जोशी कर रहे थे, जो सतपुड़ा को अपने 2009 के मास्टर्स के दिनों से जानते थे।
आदित्य बताते हैं — “मेरे हिस्से में कोर क्षेत्र की कामटी रेंज के कुछ दुर्गम पहाड़ी ब्लॉक ट्रैपिंग के लिए आए। इससे पहले ये जंगल पूरी तरह से अगम्य रहे थे। हमारी टीम में मैं और वन विभाग के कर्मचारीगण थे। एक रोज़ हम कई घंटों की मशक्कत के बाद, लगभग 13 किमी की कठिन चढ़ाई कर, कामटी रेंज की एक ऊंची पहाड़ी पर भीमकाय पत्थरों से पटे एक जंगली नाले पर हांफते कराहते पहुंचे। हालांकि नाला पथरीला था, लेकिन कहीं कहीं बड़े बड़े पत्थरों की ओट में कुछ बालू भी थी। इनका मुआयना करने पर मैंने बालू पर कुछ पदचिन्ह देखे जो कि मुझे ऊदबिलाव के लगे। मैं जानता था की सतपुड़ा के निचले समतल क्षेत्रों की बड़ी नदियों में मुलायम–त्वचा वाला ऊदबिलाव (smooth-coated otter) पाया जाता है, लेकिन इतनी दुर्गम ऊंचाई पर स्थित एक पथरीले नाले में ऊदबिलाव के पदचिन्ह मिलना मुझे बड़ा अचरज वाला मामला लगा। अचरज इसलिए क्योंकि माना जाता है कि मुलायम–त्वचा वाला ऊदबिलाव ऐसे पर्यावास में नहीं रहता। मैंने कुछ सोचा और थोड़े कैमरा ट्रैप यहां लगा दिए। और फिर हम अपनी चढ़ाई में आगे बढ़ गए।”
“इस बात को एक महीना बीत गया। एक महीने पश्चात, जनवरी 2016 में, सारे कैमरा ट्रैप एकत्रित किए गए। जमकर ठंड पड़ रही थी, और हम लोग देर रात तक सैंकड़ों कैमरों का डाटा चेक करते थे। आख़िरकार जब कामटी रेंज के उस पहाड़ी नाले के कैमरा ट्रैप को चेक करने की बारी आई तो हमने जो देखा उस से हम सभी भौंचक्के रह गए। हमारे सामने स्क्रीन पर थीं ऊदबिलाव की तस्वीरें, लेकिन ये ऊदबिलाव अलग क़िस्म के थे। ये चिकनी त्वचा वाले उद्बिलाओं से भिन्न थे! हम सभी ने आंखें बड़ी कर स्क्रीन की ओर देखते हुए सोचा – क्या हम भारत से यूरेशियाई ऊदबिलाव की पहली तस्वीर देख रहे हैं! वो भी मध्य भारत से, जबकी आमतौर पर यूरेशियाई उदबिलाव निचले हिमालय के पर्वतीय पर्यावास के वासी माने जाते हैं।”
“हमारी खुशी का ठिकाना ना था, लेकिन फिर भी WCT ने सुनिश्चित करने के लिए IUCN ऑटर विशेषज्ञ ग्रुप के वैज्ञानिकों से भी तस्वीरों की जांच कराई। जैसा कि हमें उम्मीद थी, उन्होंने भी प्रमाणित किया कि ये ऊदबिलाव यूरेशियाई ही थे। अब हमने ये जानकारी वन विभाग के वरीय पदाधिकारियों से साझा की। इसके पश्चात बहुत हर्षोल्लास के साथ ये ख़बर मीडिया में साझा की गई कि सतपुड़ा से भारत के इतिहास में यूरेशियाई ऊदबिलाव की पहली तस्वीर प्राप्त की गई है।”
इस घटना को अब 8 साल हो चले हैं। इस दौरान WCT ने वन विभाग के साथ मिलकर न सिर्फ इन ऊदबिलावों, और उनके सतपुड़ा के पर्यावास, पर काफी शोध किया है बल्कि मध्य भारत के कई और जंगलों में ली गई ऊदबिलाव की तस्वीरों की जांच करके यूरेशियाई ऊदबिलाव के अन्य पर्यावास भी पता लगाए हैं। और इसी के साथ हमें उम्मीद है कि आगे भी मध्य भारत के उदबिलावों के शोध में WCT महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहेगा।
लेखक के बारे में: रज़ा काज़मी एक वन्यजीव संरक्षक, वन्यजीव इतिहासकार, कहानीकार और शोधकर्ता हैं। इनके लेख कई अख़बारों,ऑनलाइन मीडिया प्रकाशनों, मैगज़ीनों, और जर्नलस में प्रकाशित होते हैं। इनको 2021 में न्यू इंडिया फाउंडेशन फेलोशिप से नवाज़ा गया जिसके अंतर्गत ये अपनी किताब “टू हूम डज़ दी फॉरेस्ट बिलॉंग: दी फेट ऑफ ग्रीन इन दी लैन्ड ऑफ रेड” लिख रहे हैं। WCT में रज़ा एक संरक्षण संचारक (Conservation Communicator) के रूप में कार्यरत हैं, और हिन्दी और अंग्रेज़ी में लिखते हैं।
अस्वीकारण: लेखक, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट से जुड़े हुये हैं। इस लेख में प्रस्तुत किए गए मत और विचार उनके अपने हैं, और ऐसा अनिवार्य नहीं कि उनके मत और विचार, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट के मत और विचारों को दर्शाते हों।
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