गंगा के मैदानों में रेत खनन का खतरा: एक वर्णन

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रेत खनन क्या है?

रेत खनन,प्राकृतिक तौर पर बनी हुई मिट्टी को,नदी के किनारों से,नदी के तलो से,झीलों से या फिर तटों से निकालने को कहते हैं।रेत एक ‘सिलिकेट खनिज’ पदार्थ है,जिसका अधिक मात्रा में उपयोग, निर्माण कार्यों में होता है,और इसी एक महत्वपूर्ण कारण से,रेत खनन का काम होता है।रेत खनन को कभी कभी, ‘लघु खनिज’,मूल्य, के आधार पर भी देखा जाता है,लेकिन इसका उपयोग,व्यापक तरीके से किया जाता है और पृथ्वी पर,पानी के बाद,यह दूसरा सबसे बड़ा संसाधन है, जिसका उपयोग किया जाता है।विशेषज्ञों ने,रेत खनन को लेकर, मंडरा रही त्रासदी की चेतावनी दी है।

Sand mining in the habitat of the critically endangered red-crowned roofed turtle, Chambal, India. Photo: Dr. Anish Andheria.
अति दुर्लभ, रेड क्राउन्ड रुफ़्ड़ टर्टल के आवासीय स्थान पर, रेत खनन,चंबल,भारत। फोटो क्रेडिट: डॉ अनीश अंधेरिया

रेत खनन को वैध या अवैध कौनसी चीज़ बनाती है?

रेत खनन को वैध या अवैध कहना,इस बात पर निर्भर करता है, की क्या रेत खनन, सरकार की अनुमति से हो रही है या नहीं।वैध तरीके से जब रेत खनन की जाती है, तब एक सीमा तय की जाती है, रेत खनन करने की, और नियम और नियमावलियों का पालन करना पड़ता है।नियम,नियमावलियों के कारण, और कुशल निघरानी के कारण,रेत खनन के, नकारात्मक प्रभाव में कमी होती है, जबकि अवैध रेत खनन का, नकारात्मक प्रभाव, अधिक होता है।

गंगा के मैदानी इलाकों की नदियों पर,किस हद तक,रेत खनन का प्रभाव पड़ा है?

गंगा के मैदानी इलाकों की लगभग हर नदी में,कुछ प्रतिशत की रेत खनन की कार्रवाई चल रही है।प्रायद्वीपीय में-गंगा के मैदानी इलाकों की स्त्रोत नदियाँ जैसे,चंबल,सोन,बेटवा और केन नदियों में,रेत खनन की मात्रा अधिक है,पुनःपूर्ति दरों के मुक़ाबले; और जिस स्तर पर,जिस तरीके से और जिस मात्रा में रेत खनन की जाती है,इसका सीधा प्रभाव, पारिस्थितिकी तंत्र,समाज और अर्थ व्यवस्था पर, सीधे तौर पर पड़ता है। हिमालयों की स्त्रोत नदियों में,रेत खनन में कमी देखी गयी है, क्योंकि,वहाँ की रेत को,निर्माणकार्यों में अधिक प्रयोग में नहीं लाया जाता।

रेत खनन के कारण, दुर्लभ रिवरराइन प्रजाति, जैसे, घड़ियाल,मगरमच्छ,मीठेपानी में रहनेवाले कछुए,ओटटेर्स,रिवर डोल्फिंस और वॉटरबर्ड्स, के अस्तित्व को खतरा है,क्योंकि रेत खनन के कारण,वे ना तो अपने घोंसले बना पाते हैं और उनके प्रजनन करने का स्थान भी नष्ट हो जाता है।रेत खनन के कारण,चंबल और सोन नदी में,घड़ियालों ने, कुछ महत्वपूर्ण हिस्सों को गवां दिया, जहां पर वे घोंसले बना सकते थे,जबकि दोनों नदियों को घड़ियालों के लिए सुरक्षित अभ्यारण्य माना गया है।चंबल नदी में आपराधिक तत्वों द्वारा, रेत खनन की मात्रा इतनी बड़ी है की,राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य के कुछ हिस्सों को, विमुक्त करना पड़ा है,ताकि अवैध रेत खनन को रोका जा सके।इसके कारण, चंबल नदी में रहनेवाले जीवजंतुओं पर, प्रभाव पड़ सकता है,और चंबल सिर्फ एक मात्र नदी है,जिसमे,गंगा के मैदानी इलाकों के, सभी जीवों की जातियों के समूह को पूरी तरह से अक्षुण्ण प्रजाति संयोजन मिलता है।

रेत खनन का नकारात्मक प्रभाव, केवल पारिस्थितिकी(इकोलोजिकल) तक सीमित नहीं है।अवैध रेत खनन के कारण,राज्य को,राजस्व का सीधा नुकसान उठाना पड़ता है,और भ्रष्टाचार की समस्या भी बनी रहती है। इसके अलावा,सामाजिक अपराध या कहें सामाजिक बुराई, जैसे बंधुआ मजदूरी, भी अवैध रेत खनन और उसके संबद्ध आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ी हुई हैं।

रेत खनन का प्रभाव कैसे कम किया जा सकता है?

चूंकि रेत, प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है,रेत खनन का यह क्षेत्र, बहुत ही अनियोजित है, और, इसकी निघरानी भी बहुत खराब है।यदि सही निघरानी और नियमावलियों द्वारा रेत खनन की जाए, तो अवैध रूप से रेत खनन का जो खतरा है, उसे कुछ कम किया जा सकता है,लेकिन बात सिर्फ इतनी सी नहीं है।इकोलोजी की रक्षा करने के लिए,हमें इस निष्कर्ष पर आना पड़ेगा, की कौनसी नदी में और कितनी मात्रा में,रेत खनन की अनुमति देनी होगी, ताकि,इकोलोजी यानि पारिस्थितिकी और वनजीवन को नुकसान ना पहुँचे।जिन नदियों में,रेत खनन की सीमा पार हो गयी हो,वहाँ पर,और रेत खनन पर,प्रतिबंध लगाना होगा।जिन नदियों में,रेत खनन की अनुमति दी गयी है,नियम और नियमावलियों का पालन,कठोर रूप से किया जाना चाहिए, और, रेत खनन पर कड़ी निघरानी होनी चाहिए।लेकिन इसे हम कुछ ही समय के लिए कर सकते हैं।आवश्यकता यह है, की, हमें पूरी प्रक्रिया को दोबारा देखना पड़ेगा,और अन्य विकल्पों की तलाश करनी होगी,लेकिन, हमें यह करते समय,यह ध्यान रखना होगा, की हम, अपनी समस्या को, दूसरे असुरक्षित पारिस्थितिकी तंत्रों पर स्थानांतरित ना कर दें।

WCT, रेत खनन के प्रभाव का आकलन,दुर्लभ प्रजातियों पर कैसे कर रहा है?

रिवरराइन इकोसिस्टम्स अँड लाइवलिहूड़ (REAL) और मकर कार्यक्रम के हिस्से के तौर पर,WCT, पूरे गंगा के मैदान में व्यापक, नदी सर्वेक्षण करता है,जिसमे रेत खनन के इलाकों को चिन्हित करना शामिल है। WCT,’रिमोट सेन्सिंग’ और GIS जैसे एप्लिकेशन का उपयोग करता है,जहां, रेत खनन की जाती है,और इस एप्लिकेशन का उपयोग,असुरक्षित प्रजातियों पर, रेत खनन के प्रभाव का आकलन करने के लिए भी किया जाता है।

इंडिया सैंड वॉच,जिसको वेदितम अँड ऊलोई लैबोरेटरी(उनके दूसरे भागीदारों और समर्थकों द्वारा) द्वारा विकसित किया गया है,यह एक ‘ओपन डेटा परियोजना’ है, जो भारत में,रेत खनन से संबंधित डेटा को संचित करने में,व्याख्या करने में और संग्रह करने में उपयोगी साबित होती है।यह नीतियाँ बनानेवालों के लिए, और, दूसरे हितधारकों के लिए, एक उपयोगी संसाधन साबित होगी।

एक ज्ञान भागीदार(नॉलेज पार्टनर) होने के नाते,WCT,भारत के इंडिया सैंड वॉच प्लैटफ़ार्म पर,नदी पारिस्थितिकी तंत्र पर, रेत खनन के कारण पड़नेवाले, इकोलोजिकल और पर्यावरण प्रभाव का डेटा, साझा करेगा और अनुसंधान अंतर्दृष्टि और रिपोर्ट्स में योगदान करेगा।


अस्वीकारण: लेखक, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट से जुड़े हुये हैं। इस लेख में प्रस्तुत किए गए मत और विचार उनके अपने हैं, और ऐसा अनिवार्य नहीं कि उनके मत और विचार, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट के मत और विचारों को दर्शाते हों।


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