जहाँ पर वाहन भी नहीं पहुँचते वहाँ गिरीश पंजाबी बाघों, तेंदुओं, ढोल (एशियाई जंगली कुत्ता) एवं भालुओं (sloth bears) के पग चिन्हों को पता करने के लिए वनकर्मियों के साथ कैमरा ट्रैप लगाते हैंI उन्होंने और उनकी टीम ने उत्तरी पश्चिमी घाट के एक बेहद महत्वपूर्ण वन क्षेत्र का पैदल चलकर सूक्ष्मता से सर्वेक्षण किया है जिसमें वे पिछले 10 वर्षों से कार्य कर रहे हैंI 2019-20 में ही इन्होंने लगभग 850 किलोमीटर का क्षेत्र तय किया हैI

गिरीश पंजाबी तिलारी संरक्षण आरक्ष में वन विभाग के कर्मचारियों के साथ कैमरा ट्रैप स्थापित करते हुए। श्रेय: रिज़वान मिठावाला/ डब्ल्यू0 सी0 टी0
पंजाबी, वाइल्डलाइफ़ कंजर्वेशन ट्रस्ट (डब्ल्यू0 सी0 टी0) के कॉन्सरवेशन बायोलॉजिस्ट हैं और वह चार बड़े मांसाहारी (large carnivores) वन्यजीवों– बाघ, तेंदुआ, ढोल और स्लॉथ भालू पर पश्चिमी घाट के उत्तरी क्षेत्र में स्थित महत्वपूर्ण वन्यजीव गलियारे, सह्याद्री-कोंकण गलियारे से डेटा एकत्रित कर इसका विश्लेषण कर रहे हैं ताकि यह समझा जा सके कि यह वन्यजीव यहाँ किस प्रकार रह रहे हैं।
यह गलियारा सह्याद्रि व्याघ्र आरक्ष (एस0 टी0 आर0) के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि महाराष्ट्र में स्थित इस आरक्ष का निकटतम बाघ आबादी क्षेत्र का एकमात्र संपर्क इसी गलियारे के माध्यम से बना हुआ है। यह गलियारा एस0 टी0 आर0 को कर्नाटक और गोवा में स्थित संरक्षित क्षेत्रों से जोड़ता है, जिनमें काली व्याघ्र आरक्ष और इससे सटे भीमगड़ और महादेई वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं। दूसरे शब्दों में, काली व्याघ्र आरक्ष और आसपास के जंगलों से बाघों के एस0 टी0 आर0 तक पहुँचने और वहां बसने का एकमात्र रास्ता इस संकरे गलियारे से होकर जाता है। एस0 टी0 आर0 में हाल के वर्षों में बाघिनों की कोई ज्ञात उपस्थिति दर्ज नहीं की गई है। इसलिए, बाघों के इस व्याघ्र आरक्ष और आसपास के जंगलों में स्वाभाविक रूप से बसने के लिए, इस गलियारे का संरक्षण और सुदृढ़ीकरण किया जाना आवश्यक है। सह्याद्रि-कोंकण गलियारे के रूप में मौजूद इस वन क्षेत्र के बिना, जो कुछ स्थानों पर एक किलोमीटर से भी संकरा है, लंबी दूरी तक विचरण करने वाले वन्यजीवों की आवाजाही और पारिस्थितिक संपर्क अपरिवर्तनीय रूप से बाधित हो जाएगा। यह गलियारा पहले से ही मानवीय गतिविधियों के भारी दबाव में है, जिससे इसके गंभीर खंडन (fragmentation) की समस्या उत्पन्न हो रही है। शिकार, गहन कृषि, बढ़ती मानव बस्तियाँ, रेखीय संरचनाएं और उद्योगों के विस्तार ने इस गलियारे को भारी नुकसान पहुँचाया है और इस क्षेत्र में पाए जाने वाले बड़े स्तनधारी माँसाहारी वन्यजीवों की आबादी को तेजी से कम कर दिया है।
2019-20 में, डब्ल्यू0 सी0 टी0 के दीर्घकालिक अध्ययन के तहत, पंजाबी और उनकी टीम ने सह्याद्रि-कोंकण गलियारे में 8,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र का सर्वेक्षण किया। उन्होंने इस क्षेत्र को 44 ग्रिड कोशिकाओं (cells) (प्रत्येक 188 वर्ग किलोमीटर आकार की) में विभाजित किया और प्रत्येक ग्रिड सेल में 4 से 40 किलोमीटर तक पैदल चलकर बड़े मांसाहारी वन्यजीवों की उपस्थिति के संकेतों का पता लगाया। भारी संख्या में एकत्रित आंकड़ों का गहन विश्लेषण किया गया, जिससे परिदृश्य में चार प्रमुख मांसाहारी वन्यजीवों की वास्तविक स्थिति को समझा जा सके।
इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य था: अ) बड़े मांसाहारी वन्यजीव इस गलियारे में कैसे जीवित रह रहे हैं? ब) क्या यह गलियारा अब भी मांसाहारी वन्यजीवों की आबादी के लिए उपयुक्त आवास प्रदान करता है? और अंत में स) यह विश्लेषण करना कि पारिस्थितिक और मानवीय (anthropogenic) कारक किस प्रकार इन चार बड़े मांसाहारी वन्यजीवों द्वारा गलियारे के उपयोग को प्रभावित कर रहे हैं।
गिरीश पंजाबी बताते हैं, “हमारा लक्ष्य वैज्ञानिक रूप से यह समझना था कि इस परिदृश्य में बड़े मांसाहारी वन्यजीवों का वितरण किन कारकों से प्रभावित हो रहा है, चाहे वे पारिस्थितिकी हों, प्रशासनिक हों, या मानवीय हों।”

सह्याद्रि-कोंकण गलियारे में कैमरा ट्रैप से ली गई बाघों की तस्वीरें। श्रेय: डब्ल्यू0 सी0 टी0/महाराष्ट्र वन विभाग
सह्याद्रि-कोंकण गलियारे में चार बड़े मांसाहारी वन्यजीवों की कैसी स्थिति है? डब्ल्यू0 सी0 टी0 के अध्ययन से क्या पता चला?
संक्षेप में कहे तो, अध्ययन में पाया गया कि यहाँ बाघों की कोई सक्षम आबादी मौजूद नहीं है, जिसका मुख्य कारण उच्च स्तर पर मानव हस्तक्षेप है। केवल गलियारे में स्थित वनों की सख्त सुरक्षा और पुनर्स्थापना, जो महाराष्ट्र और कर्नाटक के अच्छे बाघ आवासों को जोड़ते हैं, धीरे-धीरे बाघों की आबादी में सुधार ला सकती है। मानव हस्तक्षेप और भोजन की कमी का ढोल की आबादी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा था। वहीं, तेंदुए अपनी उत्कृष्ट अनुकूलन क्षमता के कारण संरक्षित क्षेत्रों और मानव-प्रभावित स्थानों, दोनों में जीवित रहने में सक्षम थे, जहाँ वे छोटे पालतू पशुओं, कुत्तों और बिल्लियों का शिकार कर रहे थे। लेकिन जंगली शिकार की उपलब्धता और संरक्षित क्षेत्रों की उपस्थिति महत्वपूर्ण थी और सम्भवतः मानव-तेंदुआ संघर्ष को बढ़ने से रोकने में सहायक साबित हो रही थी।
बड़े चार मांसाहारी वन्यजीवों में से भालू को ऐतिहासिक वन खंडन और शिकार का सबसे गंभीर प्रभाव झेलना पड़ा है। डब्ल्यू0 सी0 टी0 के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि सह्याद्रि व्याघ्र आरक्ष में मौजूद भालू की आबादी दक्षिण में स्थित राधानगरी वन्यजीव अभयारण्य और उससे आगे की आबादी से लगभग पूरी तरह से अलग हो गई है (नीचे दिए गए मानचित्र में देखें)। संरक्षित क्षेत्रों के बीच आनुवंशिक प्रवाह की कमी सह्याद्रि व्याघ्र आरक्ष में इस प्रजाति के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए एक गंभीर समस्या बन सकती है और इससे आनुवंशिक विविधता में गिरावट आ सकती है। यह संभव है कि मौजूदा संकीर्ण गलियारा भालुओं के प्रसार के लिए अपर्याप्त हो, और भविष्य में भालू संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता होगी,” पंजाबी बताते हैं।

सह्याद्रि-कोंकण गलियारे के बाघ (बाएँ) और भालू (दाएँ) के संकेतों के दो तुलनात्मक मानचित्रों को ध्यान से देखने पर यह स्पष्ट होता है कि सह्याद्रि व्याघ्र आरक्ष और राधानगरी वन्यजीव अभयारण्य के बीच भालू के कोई संकेत नहीं हैं। यह दर्शाता है कि सह्याद्रि में भालुओं की आबादी दक्षिण की आबादी से अलग हो गई है, जो इस प्रजाति की वन खंडन और शिकार के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाता है। श्रेय: डब्ल्यू0 सी0 टी0
डब्ल्यू0 सी0 टी0 के अध्ययन ने बड़े मांसाहारी वन्यजीवों की जनसंख्या की सुरक्षा और सह्याद्रि-कोंकण गलियारे को सुरक्षित करने के लिए अधिक वन क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने की आवश्यकता पर बल दिया है। अंततः, महाराष्ट्र सरकार द्वारा 2020 से 2021 के बीच लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों की श्रृंखला में, सह्याद्रि गलियारे में कई नए संरक्षण आरक्ष (Conservation Reserves ) को मंजूरी दी गई, जिससे इस महत्वपूर्ण आवास के लगभग 900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को औपचारिक सुरक्षा प्रदान की गई। देश में ऐसे बहुत कम वन्यजीव गलियारे हैं जिन्हें इस तरह से लगभग पूर्ण रूप से औपचारिक सुरक्षा प्राप्त हुई है।

हाल ही में अधिसूचित संरक्षण आरक्ष, पहले से मौजूद संरक्षित क्षेत्रों के साथ मिलकर सह्याद्रि-कोंकण गलियारे के लगभग संपूर्ण रेखीय विस्तार को विभिन्न स्तरों की कानूनी सुरक्षा के अंतर्गत ले आए हैं।(नक्शे में दर्शाए गए संरक्षण आरक्ष 4 और 5, गगनबावड़ा और सी0 एस0 एम्0 ए0 बी0 (CSMAB) अभी अधिसूचित नहीं किए गए हैं।) श्रेय: डब्ल्यू0 सी0 टी0
गलियारे की सुरक्षा का समेकन (consolidating)
“जून 2020 में, महाराष्ट्र राज्य सरकार ने 29.53 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को तिलारी संरक्षण आरक्षित क्षेत्र (Tillari Conservation Reserve) के रूप में अधिसूचित किया। यह क्षेत्र तीन राज्यों – महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक के बीच बाघों और अन्य बड़े स्तनधारियों की आवाजाही के लिए एक महत्वपूर्ण संकरा बिंदु (pinch-point) है। तिलारी को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने के प्रयास 2014 में शुरू हुए थे और छह वर्षों बाद, इसे एक संरक्षण आरक्षित क्षेत्र (CR) के रूप में अधिसूचित किया गया। तिलारी के तर्ज पर चलते हुए, कई नए संरक्षण आरक्षित क्षेत्र अधिसूचित किए गए, जिससे सह्याद्रि गलियारे में 874 वर्ग किलोमीटर के अतिरिक्त महत्वपूर्ण बाघ आवास को सुरक्षा मिली ” पंजाबी बताते हैं।
संरक्षण आरक्षों की घोषणा के बाद से, डब्ल्यू0 सी0 टी0 महाराष्ट्र वन विभाग के साथ मिलकर प्रभावी प्रबंधन योजना (Management Plan) विकसित करने के लिए कार्य कर रहा है, ताकि बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। “यह मूल रूप से वन्यजीव आवास और उनकी संख्या में सुधार के लिए संरक्षण उपायों की एक रूपरेखा प्रस्तुत करता है, साथ ही यह निर्धारित करता है कि स्थानीय लोग इन संरक्षित क्षेत्रों से सतत कृषि, पारिस्थितिकी पर्यटन (Ecotourism) और सामाजिक कल्याण योजनाओं के माध्यम से कैसे लाभ उठा सकते हैं।” पिछले दो वर्षों में, इस परियोजना के तहत डब्ल्यू0 सी0 टी0 ने 300 से अधिक अग्रिम पंक्ति के वन कर्मियों को व्यापक प्रशिक्षण प्रदान किया है। अब तक कुल मिलाकर लगभग 30 प्रशिक्षण कार्यशालाएँ आयोजित की गई हैं, जिनमें वन्यजीव कानून प्रवर्तन (wildlife law enforcement), अपराध स्थल जांच, आघात प्रबंधन (Trauma Management) और वन्यजीव निगरानी जैसे विषयों को शामिल किया गया है।
डब्ल्यू0 सी0 टी0, सह्याद्री टाइगर रिजर्व और क्षेत्रीय मण्डलों के सहयोग से साथ संरक्षण आरक्षों में व्यवस्थित रूप से कैमरा ट्रैपिंग कर रहा है, ताकि वहां के बड़े मांसाहारी वन्यजीवों की न्यूनतम संख्या का आकलन किया जा सके। यह पहली बार है जब सह्याद्री परिदृश्य के गलियारा क्षेत्र में स्थित संरक्षण आरक्षों को पूरी तरह से कैमरा ट्रैपिंग के माध्यम से अध्ययन किया जा रहा है।
गिरीश पंजाबी कहते हैं,”२०१९-२० में,गलियारे के हमारे पिछले व्यापक अध्ययन के दौरान,हमारी टीम ने,व्यवस्थित रूप से, इस परिदृश्य का पैदल सर्वेक्षण किया था, और अवसरवादी ढंग से,हमने कुछ क्षेत्रों में कैमरा ट्रैप लगाए थे,लेकिन,पूरी तस्वीर पाने के लिए,एक गहन कैमरा-ट्रैप सर्वेक्षण की आवश्यकता थी।”
हमारे पिछले गलियारे अध्ययन के दौरान, जो की 2019-20 में किया गया था, टीम ने इस परिदृश्य का पैदल सर्वेक्षण किया और कुछ ही क्षेत्रों में सुविधा के अनुसार मिलने पर ही कैमरा ट्रैप लगाए गए। लेकिन पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए एक विस्तृत कैमरा ट्रैप सर्वेक्षण की आवश्यक थी,” पंजाबी कहते हैं।

इस वर्ष संरक्षण आरक्ष में एक भारतीय तेंदुआ कैमरा ट्रैप में दर्ज किया गया। श्रेय: डब्ल्यू0 सी0 टी0 /महाराष्ट्र वन विभाग
कम से कम दो बड़े मांसाहारी वन्यजीवों – बाघ और तेंदुआ – की संख्या का सही आकलन करने के लिए, हम संरक्षण आरक्षों के भीतर उनकी न्यूनतम संख्या और घनत्व का अध्ययन कर रहे हैं, ताकि भविष्य की प्रबंधन रणनीतियों को बेहतर तरीके से निर्देशित किया जा सके। साथ ही, हम यह समझना चाहते थे कि बड़े मांसाहारी वन्यजीव किन क्षेत्रों में प्रजनन कर रहे हैं। यह इसलिए महत्वपूर्ण है ताकि कुछ विशेष क्षेत्रों पर बेहतर प्रबंधन ध्यान केंद्रित किया जा सके, जैसे कि गश्त को मजबूत करना, कैमरा ट्रैप निगरानी को बढ़ाना, और वन क्षेत्र में परिवर्तन को रोकना,” वे आगे कहते हैं।
पंजाबी और उनकी टीम ने संरक्षण आरक्षों में किए गए कैमरा ट्रैप सर्वेक्षण से कई रोचक परिणाम प्राप्त किए हैं। अब तक, कैमरा ट्रैप में एशियाई छोटे-नाख़ून वाला ऊदबिलाव (small-clawed otter) और गौर सहित कुल 27 जंगली स्तनधारी प्रजातियां दर्ज की गई हैं। “हमने पहली बार कैमरा ट्रैप में एक भारतीय विशाल गिलहरी (Malabar giant squirrel) को देखा! हालांकि ये कई क्षेत्रों में आसानी से दिखाई देती हैं, लेकिन ये शायद ही कभी जमीन पर उतरती हैं,” पंजाबी उत्साहित होकर कहते हैं।
यहाँ डब्ल्यू0 सी0 टी0 के कैमरा ट्रैप में कैद किए गए कुछ रोचक प्राकृतिक इतिहास के क्षण हैं।
एक शानदार वीडियो श्रृंखला जिसमें एक भालू अपने शावकों को पीठ पर लिए एक बाघिन की तरफ आता है (जिसकी चमकती आँखें आसानी से दिखाई दे रही हैं!) और तुरंत मुड़ जाता है (ऊपर), और कुछ मिनट बाद बाघिन सामने आती है।

एक भूरा बिज्जू (Brown palm civet) , जो संभवतः आंशिक वर्णहीन (leucistic) है। श्रेय: डब्ल्यू0 सी0 टी0 /महाराष्ट्र वन विभाग।


एक गौर का बछड़ा तेजी से भागता हुआ (ऊपर), और कुछ क्षण बाद एक वयस्क तेंदुआ उसी स्थान पर दिखाई देता है (सटीक सात सेकंड के बाद) (नीचे)। श्रेय: डब्ल्यू0 सी0 टी0 /महाराष्ट्र वन विभाग।

सह्याद्री पर्वतमाला की पृष्ठभूमि में गौर का एक सुरम्य चित्र। श्रेय: डब्ल्यू0 सी0 टी0 /महाराष्ट्र वन विभाग।

एक ब्राउन फिश उल्लू एक बरसाती मेंढक का शिकार करता हुआ। श्रेय: डब्ल्यू0 सी0 टी0 /महाराष्ट्र वन विभाग।
कैमरा ट्रैप को बड़े ग्रिड में व्यवस्थित रूप से स्थापित किया गया, जहां प्रत्येक इकाई चार वर्ग किलोमीटर आकार की थी, कुल मिलाकर 102 कैमरा ट्रैप स्थान निर्धारित किए गए। चूंकि कई वन क्षेत्र वाहनों से पहुँचने योग्य नहीं हैं, इसलिए पंजाबी और उनकी टीम को कैमरे लगाने के लिए लगभग 328 किमी पैदल चलना पड़ा। हाल ही में अधिसूचित संरक्षण आरक्षों के इस कैमरा ट्रैप सर्वेक्षण से कई महत्वपूर्ण निष्कर्ष सामने आए हैं।
जहाँ गौर सबसे अधिक कैमरा ट्रैप में दर्ज होने वाली प्रजाति रही, जो इस परिदृश्य में इस बड़े शाकाहारी जीव के व्यापक वितरण को दर्शाती है, वहीं सबसे कम दर्ज होने वाली प्रजातियों में चौसिंगा और शियार शामिल हैं, जो दोनों ही इस परिदृश्य में दुर्लभ माने जाते हैं।
डब्ल्यू0 सी0 टी0 ने इस कैमरा ट्रैप सर्वेक्षण के माध्यम से इन संरक्षण आरक्षों में आठ वयस्क बाघ, दो बाघ शावक और 46 तेंदुओं की उपस्थिति दर्ज की है। यह सर्वेक्षण सह्याद्री-कोंकण गलियारे के संरक्षण आरक्षों में तेंदुए और बाघ की वैज्ञानिक रूप से घनत्व आकलन का पहला प्रयास है। यह सारी जानकारी यह मूल्यांकन करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है कि वन प्रबंधन अभ्यास में होने वाले बदलाव इन बड़े मांसाहारी वन्यजीवों को वर्षों में कैसे प्रभावित करते हैं।
संरक्षण आरक्षों में दर्ज किए गए अन्य रोचक छोटे मांसाहारी और संकटग्रस्त प्रजातियों में एशियाई छोटे-नाख़ून वाला ऊदबिलाव, रोहित द्वीपीय बिल्ली -(rusty-spotted cat), तेंदुआ बिल्ली, धारीदार गले वाला नेवला (stripe-necked mongoose), स्थानिक भूरा बिज्जू और भारतीय चिटीखोर (Indian pangolin) शामिल हैं।

तेंदुआ बिल्ली श्रेय: डब्ल्यू0 सी0 टी0 /महाराष्ट्र वन विभाग।

एशियाई छोटे-नाख़ून वाला ऊदबिलाव श्रेय: डब्ल्यू0 सी0 टी0 /महाराष्ट्र वन विभाग।
हमारे कार्य का उद्देश्य स्पष्ट है। हम गलियारे में स्थित संरक्षण आरक्षों के प्रबंधन में सुधार करना चाहते हैं ताकि यह लंबे समय तक अपनी कार्यक्षमता बनाए रख सके। सह्याद्री व्याघ्र आरक्ष के मामले में यह अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस आरक्ष को कर्नाटक के काली व्याघ्र आरक्ष से जोड़ने वाला केवल एकल रेखीय गलियारा मौजूद है। यदि इस संपर्क में और कोई अवरोध उत्पन्न होता है, तो इसकी प्रभावशीलता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा,” पंजाबी निष्कर्ष रूप में कहते हैं।
नोट: पश्चिमी घाट के उत्तरी भाग में सह्याद्री-कोंकण गलियारे के संरक्षण पर केंद्रित डब्ल्यू0 सी0 टी0 की अनुसंधान परियोजना महाराष्ट्र वन विभाग के सहयोग से विनती ऑर्गेनिक्स लिमिटेड के समर्थन द्वारा संचालित की जा रही है।
पूर्वा वारियर, एक वनजीवन संरक्षणकर्ता हैं,विज्ञान लेखिका और संपादक हैं, और, WCT की संचार टीम का, नेतृत्व करती हैं। WCT के पहले,पूर्वा, Sanctuary Nature Foundation और The Gerry Martin Project के साथ, काम कर चुकी हैं।
अस्वीकारण: लेखिका, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट से जुड़ी हुई हैं। इस लेख में प्रस्तुत किए गए मत और विचार उनके अपने हैं, और ऐसा अनिवार्य नहीं कि उनके मत और विचार, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट के मत और विचारों को दर्शाते हों।
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