प्रकृति के जीवित रहने के नियमों के अनुसार, शिकारी, अपना शिकार करते रहें। एक बाघ, एक हिरण का पीछा कर रहा है, एक रेगिस्तानी लोमड़ी, रेगिस्तान के फर्श पर काँटेदार पूंछ वाली छिपकलियों की तलाश कर रही है, ढोल एक सांबर हिरण का शिकार कर रहा है। सभी सामान्य परिदृश्य वाइल्डस्केप में चल रहे हैं। लेकिन तस्वीर विषम हो जाती है, जब घरेलू कुत्ते जैसा मानवीय प्रभाव से पैदा हुआ कोई प्राणी दृश्य पर प्रकट होता है। हिमालय में विशाल तिब्बती जंगली गधे से लेकर, दुनिया के सबसे भारी उड़ने वाले पक्षियों में से एक, मध्य और पश्चिमी भारत में गंभीर रूप से लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, सभी जंगली कुत्तों का शिकार बन रहे हैं, जिन्होंने जंगली आवासों पर कब्ज़ा कर लिया है, संरक्षित और असुरक्षित दोनों। यह प्राकृतिक खाद्य वेब डिज़ाइन का घोर पतन है। मनुष्य और घरेलू कुत्तों का सह-विकास, इतिहास में अब एक नाज़ुक मोड पर पहुँच गया है। भूमि पर मानव प्रभुत्व के विस्तार के साथ, घरेलू कुत्ते भी हर स्थलीय सतह और आवास में घुस गए हैं, दुर्भाग्यपूर्ण परिणामों के साथ। घरेलू बिल्लियों और कृन्तकों/मूषक के बाद, घरेलू कुत्ते तीसरे स्थान पर हैं, विश्व के, सबसे अधिक हानिकारक आक्रामक स्तनधारी शिकारी के रूप में।
वेलवदर नेशनल पार्क में, गुजरात में, एक आज़ाद कुत्ता काले हिरणों के झुंड का पीछा करते हुए। अनगुलेट्स (खुरदार) भारत में अक्सर जंगली कुत्तों द्वारा शिकार किया जाता है और मार दिया जाता है। फोटो क्रेडिट: डॉ अनिश अंधेरिया
आज, अनुमानित विश्व स्तर पर एक अरब घरेलू कुत्ते पाए जाते हैं, और पूरे विश्व में उनका प्रभाव वन प्रजातियों पर, लगातार बढ़ती चिंता का विषय बन रहा है। २०१७ में, ‘द ग्लोबल इम्पैक्ट ऑफ डोमेस्टिक डोग्स ऑन थ्रेटेंड वेर्टेब्रेट्स पर अध्ययन के अनुसार, जिसका प्रकाशन, बायोलॉजिकल कंझरवेशन में हुआ था, तकरीबन १८८ जंगली प्रजातियाँ को, वर्तमान में, दुनिया भर में खुले कुत्तों से ख़तरा है। और इस सूची में स्तनधारी, पक्षी, रेंगनेवाले जन्तु और पानी में रहनेवाले जन्तु शामिल हैं, और जिसमे से लगभग ३० प्रजातियाँ गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं। लेकिन जंगली कुत्तों का असर वन जीवन पर, केवल शिकार तक ही सीमित नहीं है। प्रभाव, शिकार से बढ़कर होते हैं और अशांति के रूप में भी प्रकट होते हैं, उसके अलावा अन्य प्रजातियों में रोगों का संचरण होता है, जिसमे मानव, अन्य शिकारियों से प्रतिस्पर्धा और जंगली कैनिड प्रजातियों के साथ अंतःप्रजनन शामिल है।
घरेलू कुत्ते प्राकृतिक शिकारियों से किस प्रकार भिन्न हैं?
तकरीबन १५,००० साल पहले, भेड़ियों के बीच थोड़ा साहसी (कैनिस ल्युपस) ) ने, शिकारियों द्वारा स्थापित भ्रमणकारी मानव शिविरों के करीब जाना शुरू कर दिया और वह भी भोजन की तलाश में। जल्दी ही, मनुष्यों ने सुरक्षा के लिए इन भेड़ियों को अपने आसपास रखने की उपयोगिता को पहचाना और आनेवाले खतरों के प्रति पूर्व चेतावनी से खुदकों बचाया। अंततः इन्सानों और भेड़ियों के बीच यह संपर्क और गहरा हो गया और एक सामाजिक और सांस्कृतिक मोड़ ले लिया। मानवीय हस्तक्षेप के साथ प्राकृतिक चयन ने ऐसी वश में करने वाली भेड़ियों की आबादी को अलग किया, जल्दी ही, कृत्रिम चयन को गति दी गई। कई कारण हैं, की मनुष्यों ने उन्हें लाभकारी और आकर्षक पाया, उन्होंने जानवरों को पालतू बनाया, उन्हें चयन कर पाला, जबतक कुत्तों के घरेलू संस्करण, उनके किसी भी जंगली समकक्ष से मिलते-जुलते नहीं रहे, और यह विशेष वंश, मनुष्यों की संगति में पनपे। आज, घरेलू कुत्ते (कैनिस फेमिलेरिस) की लगभग वैश्विक वितरण है और लगभग ४०० मान्यता प्राप्त नस्लें मौजूद हैं।
घरेलू कुत्ता (कैनिस फेमिलेरिस) भेड़ियों से विकसित हुआ (कैनिस ल्युपस) और वह भी उसे वश में करने के माध्यम से, उसे घरों में पालने से और पिछले १५,००० वर्षों में मनुष्यों द्वारा चयनात्मक प्रजनन के माध्यम से। फोटो क्रेडिट: वेलकम इमेजेज/विकिमिडिया कॉमन्स।
प्राकृतिक चयन के दबाव का घरेलू कुत्तों के अभूतपूर्व उत्थान और प्रसार से उनका लगभग कोई लेना-देना नहीं है। घरेलू कुत्तों के विकास का श्रेय पूरी तरह से मनुष्यों को दिया जा सकता है। वे जीवित रहने के लिए, या तो पूरी तरह से या आंशिक रूप से लोगों पर निर्भर हैं और किसी भी स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र में उनकी कोई पारिस्थितिक भूमिका नहीं है। वे प्राकृतिक खाद्य श्रृंखला का हिस्सा नहीं हैं। लेकिन जंगली और स्वतंत्र रूप से घूमने वाले कुत्तों ने, खुद को खतरनाक शिकारी के रूप में स्थापित कर लिया है, जिनका झुंड में शिकार करने का कौशल, भेड़ियों के पूर्वजों से प्राप्त विरासत के रूप में, अभी भी कमोबेश बरकरार है। उनके जंगली अवतार में, घरेलू कुत्ते प्रभावी झुंड शिकारी के रूप में राज करते हैं, जो अपने शरीर के आकार से बहुत बड़े जानवरों को मार गिराने की क्षमता रखते हैं, और जिसमे बड़े मांसाहारी भी शामिल हैं। आज, वर्तमान में, कुत्ते सबसे व्यापक मांसाहारी होने के साथ-साथ, सबसे प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले मांसाहारियों में से एक हैं।
स्वतंत्र रहने वाले घरेलू कुत्ते साहसी, अनुकूलनीय और अपने आहार में अत्यधिक लचीले होते हैं। वे बचे हुए बासी भोजन पर जीवित रह सकते हैं, जो मनुष्यों द्वारा छोड़े गए होते हैं और यहां तक की वे जंगली जानवरों का शिकार भी करते हैं और उन्हें खाते हैं। यह उन्हें देशी वनजीवन के लिए बेहद खतरनाक बनाता है।
जैसे जैसे मानव जनसंख्या बढ़ती है, और अधिक प्राकृतिक आवासों को लोगों द्वारा अतिक्रमण कर लिया जाता है और उनका शहरीकरण कर दिया जाता है, इससे कुत्ते अधिक व्यापक हो जाते हैं, बड़े पैमाने पर कचरे में समानांतर वृद्धि के कारण और अनुकूल वातावरण, जो कुत्तों का भरण-पोषण करता है। इससे स्वतंत्र कुत्तों और वनजीवों के बीच दूरियां और कम हो रही हैं, जिसके कारण अनेक जंगली प्रजातियाँ, कुत्तों के शिकारी हमलों के प्रति अधिक संवेदनशील हो गई हैं।
भारत का वनजीवन जंगली कुत्तों के गंभीर खतरे में है
भारत दुनिया में कुत्तों की चौथी सबसे बड़ी आबादी का घर है। देश में लगभग ६० मिलियन घरेलू कुत्तों की आश्चर्यजनक आबादी है, जिनमें से लगभग ३५ मिलियन आबादी आवारा या स्वतंत्र हैं (आंशिक रूप से या पूरी तरह से अपने दम पर जीना), पहले से ही संघर्ष कर रहे वनजीवों पर दबाव नाटकीय रूप से बढ़ रहा है। भारत में अनुमानित ८० जंगली प्रजातियाँ घरेलू/जंगली कुत्तों द्वारा बार-बार हमले सहती है, जिनमें से लगभग आधे खतरे में हैं और वह भी IUCN की रेड लिस्ट के मुताबिक।
यहां तक की भारत के संरक्षित क्षेत्र भी जैसे राष्ट्रीय उद्यान, बाघ अभ्यारण्यों के मुख्य क्षेत्र, और वनजीव अभ्यारण्य जंगली कुत्तों के आक्रमण से प्रतिरक्षित नहीं हैं। एक अध्ययन के अनुसार, जिसने कुत्तों का प्रभाव भारत की घरेलू प्रजातियों पर, उसका मूल्यांकन किया,तकरीबन ४८% वनजीवों पर जंगली कुत्तों के हमले की सूचना, संरक्षित क्षेत्रों में और उसके आसपास से प्राप्त हुई थी। बड़े शरीर वाले खुरदार और मांसाहारी, साथ ही सरीसृप(रेप्टाइल) भी, एंफीबियंस, ज़मीनी पक्षी, और छोटे स्तनधारियों का अक्सर शिकार किया जाता है।
राजस्थान के घास के मैदान और रेगिस्तान, आज़ाद/स्वतंत्र कुत्तों द्वारा घेरे जा रहे हैं। अनगुलेट्स जैसे चिंकारा, ब्लैकबक (काला हिरण), नीलगाई और सरीसृपों में काँटेदार पूँछ वाली छिपकली और मॉनिटर छिपकली, कुत्तों के हमलों के प्रति संवेदनशील होती हैं। “चिंकारा की अधिक मौतों के लिए आवारा कुत्ते ज़िम्मेदार हैं (इंडियन गज़ेल), राजस्थान या राज्य प्राणी, किसी भी अन्य एजेंट की तुलना में,” वनजीवन जीवविज्ञानी सुमित डूकिया ने डाउन टू अर्थ से कहा। १५० से भी कम ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जंगल में बचे हैं, और उनकी राजस्थान में बहुत कम आबादी बची है। लेकिन, यह कुत्तों का आतंक, इस पक्षी के लिए ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकता है, प्रजातियों को विलुप्ति की कगार पर धकेलना।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों की आबादी को खुले में घूमने वाले कुत्तों से गंभीर खतरा है, जो उनकी जनसंख्या पुनर्प्राप्ति और संरक्षण प्रयासों को प्रभावित कर रहा है। फोटो क्रेडिट: सौरभ सावंत/CC BY-SA 4.0
पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम में, वनजीवों और लोगों के लिए खुले घूमने वाले कुत्तों का ख़तरा, हाल के वर्षों में और अधिक बढ़ गया है, अनुचित अपशिष्ट(कचरा) प्रबंधन और खुले में शौच के कारण। याक जैसे जानवरों को, कुत्तों के झुंड द्वारा तेजी से निशाना बनाया जा रहा है। यहां तक की तिब्बती भेड़िये ने भी, UNDP की एक रिपोर्ट के अनुसार, घरेलू कुत्तों के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों से बचना शुरू कर दिया है।
लद्दाख का राज्य पक्षी, काली गर्दन वाली क्रेन, एक और निकट संकटग्रस्त पक्षी है, जिनकी आबादी को कुत्तों से गंभीर ख़तरा है। डाउन टू अर्थ रिपोर्ट के अनुसार, आज़ाद घूमने वाले कुत्तों ने काली गर्दन वाली क्रेन की प्रजनन सफलता को प्रभावित किया है। इस और अन्य पक्षियों के अंडे और बच्चों को कुत्तों द्वारा खाने की खबरें आयी हैं, लद्दाख के चांगथांग वनजीव अभ्यारण्य में,जहां पर ३,५०० खुले घूमने वाले कुत्तों की गिनती की गयी है।
हरियाणा में भी खतरे की घंटी बजनी शुरू हो गयी है। २०१६ और २०२० के बीच में, हरियाणा वन विभाग ने ३६१ काले हिरणों की, १६४१ नीलगाई, २९ चिंकारा, २५ मोर,और ३५ बंदरों की सूचना दी, जिनको खुले में घूमनेवाले कुत्तों ने मारा था, सभी हिसार मण्डल में। कालेसर राष्ट्रीय उद्यान को छोड़कर, हरियाणा बड़े मांसाहारियों से रहित है। अब इस खाली जगह को कुत्तों ने भर दिया है और उन्हें राज्य में एकमात्र प्रमुख शिकारी के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
कैनाइन डिस्टेंपर, रेबीस और सरकोप्टिक मेंज जैसी बीमारियों के फैलने का खतरा, पालतू कुत्तों द्वारा वनजीवन को, एक निरंतर मंडराता खतरा है। २०२० में, कई बीमारियाँ जिसमे कैनाइन डिसटेंपर और रेबीस भी शामिल हैं, इन्होंने, कई एशियाटिक शेरों की, गुजरात में, जानें ली, जहां पर दुनिया की अंतिम शेष एशियाई शेरों की आबादी बची हुई है। सितंबर २०१८ में, एक संक्रमण कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (सीडीवी) एशियाई शेरों की आबादी में पाया गया था, गिर ,गुजरात में। चूंकि यह बीमारी कुत्तों की आबादी में अधिक प्रचलित है, विशेषज्ञों को ऐसा संदेह है की खुले घूमने वाले कुत्ते, वायरस का स्रोत हो सकते हैं।
रोचक तरीके से, यह भारत में गिद्धों की आबादी में गंभीर गिरावट थी, १९९२ और २००७ के बीच में जिसपर गौर किया गया, जिसके कारण देश में जंगली कुत्तों की नाटकीय वृद्धि हुई। गिद्धों का मूक हत्यारा, यह विभिन्न देशों के विशेषज्ञों द्वारा काफी जांच के बाद पाया गया, यह गैर-स्टेरायडल सूजन रोधी दवा थी जिसको डिक्लोफेनाक भी कहते हैं, जिसका उपयोग भारत में और अन्य पड़ोसी देशों में, मवेशियों के इलाज के लिए व्यापक रूप से किया जा रहा था। गिद्ध, उनका बाध्य सफाईकर्मी होना(स्केवेंजर्स), मवेशियों के शवों को खाते हैं, और इस प्रक्रिया में डिक्लोफेनाक का अंतर्ग्रहण होता है, जिससे घातक गुर्दे की विफलता और गठिया हो सकता है। पारिस्थितिकी तंत्र में सफाईकर्मियों की महत्वपूर्ण भूमिका, साथ ही मानव समाज में भी, यह तब स्पष्ट हो गया जब हजारों मृत मवेशियों को खाने के लिए कोई गिद्ध नहीं बचा, और वे अब ग्रामीण परिदृश्यों में फैले हुए हैं। एक बड़ी समस्या जो उत्पन्न हुई, वह कुत्तों की आबादी के प्रसार की थी, और जिसमें भारत में अनुमानित ५.५ मिलियन की वृद्धि देखी गई।
भारत में गिद्धों की आबादी में भारी गिरावट को एक महत्वपूर्ण कारण बताया गया है, वह है घरेलू कुत्तों की आबादी में तेजी से वृद्धि। फोटो क्रेडिट: अरिंदम आदित्य/सी BY- SA 4.0
आज, विडम्बना से, भारत में गिद्ध संरक्षण के प्रयासों में, जंगली कुत्तों द्वारा आंशिक रूप से बाधा उत्पन्न की जा रही है, जो गिद्धों को शवों से दूर भगाने के लिए जाने जाते हैं। भोजन को लेकर इतनी कड़ी प्रतिस्पर्धा के साथ, गिद्धों की आबादी को उबरना, कठिन होता जा रहा है।
भारत के पशु कल्याण क़ानूनों का वनजीवन संरक्षण क़ानूनों से सुलह करने का समय आ गया है
भारत के खुले में घूमनेवाले कुत्तों की समस्या को हल करना इतना आसान नहीं है, लेकिन उससे तत्काल निपटा जाना चाहिए। एक समग्र, मानवीय, वैज्ञानिक, एकीकृत और प्रभावी कुत्ते जनसंख्या नियंत्रण उपायों को लागू करने के लिए एक निरंतर दृष्टिकोण में शामिल है, जिम्मेदार कुत्ते का स्वामित्व, खुले में शौच पर नियंत्रण, और उचित अपशिष्ट प्रबंधन, विशेषकर संरक्षण क्षेत्रों में और उसके आसपास।
कच्छ के छोटे रण में एक रेगिस्तानी लोमड़ी जंगली कुत्तों के झुंड से छिपती हुए। जंगली कुत्ते जंगल में शिकारी प्रजातियों पर हमला करने के लिए जाने जाते हैं, खाद्य संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, अन्य कैनिड प्रजातियों के साथ अंतःप्रजनन करते हैं, और यहां तक की उनके व्यवहार को भी बदल देते हैं। फोटो क्रेडिट: डॉ अनिश अंधेरिया
अजीब है की, भारत के वनजीवन संरक्षण कानून और पशु कल्याण कानून एक विधायी चौराहे पर हैं, जब अस्थिर स्वतंत्र कुत्ते संकट से निपटने की बात आती है। भारत में, आज़ाद कुत्तों का मामला एक जटिल मुद्दा है, जो पशु कल्याण के साथ-साथ संरक्षण हस्तक्षेपों का भी आह्वान करता है। कुछ संरक्षणकर्ता भारत में,उनका यह मानना है की, देश की कुत्तों का प्रबंधन करने वाली पॉलिसी, जिसको एनिमल वेलफ़ैर बोर्ड ऑफ इंडिया द्वारा तैयार किया गया है, यह अवैज्ञानिक है और वनजीवन के हित में सहायता नहीं कर रही है। क्योंकि एनिमल वेलफ़ैर बोर्ड ऑफ इंडिया द्वारा निर्धारित नियम, नसबंदी के बाद कुत्तों के स्थानांतरण पर इसके पूर्ण प्रतिबंध में कोई अपवाद नही बनाते हैं, वनजीव अभ्यारण्यों से, राष्ट्रीय उद्यानों से, अन्य संरक्षित क्षेत्र और पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों से, यह वनजीवन के लिए खतरा बना हुआ है। और उसी समय पर, वनजीवन (संरक्षण) अधिनियम, १९७२, संरक्षित क्षेत्रों में आवारा कुत्तों के साथ व्यवहार पर चुप है। इस प्रकार राज्य वन विभाग और अन्य संरक्षणकर्ता आक्रामक, खुले में घूमनेवाले कुत्तों को महत्वपूर्ण वनजीवन आवास से हटाने में विवश हैं।
द एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) नियम जो २००१ में एनिमल वेलफ़ैर बोर्ड ऑफ इंडिया(AWBI) द्वारा निर्धारित किया गया है, वह, यह बताता है कि “कुत्तों के स्थानांतरण की अनुमति नहीं है” और “यह अनिवार्य है की, कुत्तों को वापस उसी स्थान पर छोड़ा जाए जहां से उन्हें उठाया गया था” क्योंकि “निष्फल कुत्तों को अपने मूल क्षेत्र में ही रहना होगा”। ऐसा दावा किया जाता है “इसके परिणामस्वरूप, कई खुले में घूमनेवाले कुत्तों की संख्या में कमी आती है जो लुप्तप्राय वनजीव प्रजातियों का शिकार करते हैं, और इस प्रकार वनजीव संरक्षण को बढ़ावा मिलता है”। विश्व में कहीं भी नसबंदी कार्यक्रम सफल नहीं हो सका है, और ना ही भारत में। ANBI ने, ऐसा सूचित किया गया है की, २००८-२०१८ के बीच कुत्तों की नसबंदी कार्यक्रम पर तकरीबन INR २२.५ करोड़ रूपये खर्च किए हैं। नसबंदी कार्यक्रमों के धीमे परिणाम, खुले में घूमनेवाले कुत्तों के कारण, वनजीवन की हानि को रोकने में पर्याप्त उपाय देने में सफल साबित नहीं हुए है।
३१ जुलाई, २०२२ को, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय (MFAHD) ने, पशु जन्म नियंत्रण नियम, २०२२ का मसौदा जारी किया, जो जनसंख्या नियंत्रण, टीकाकरण, और सड़क के कुत्तों को खाना खिलाने के लिए एक व्यापक रूपरेखा निर्धारित करता है। जबकि मसौदा सार्वजनिक सुरक्षा को संबोधित करता है और खुले घूमने वाले कुत्तों द्वारा उत्पन्न स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को संबोधित करता है, पर नियम गंभीर खतरे से बेखबर हैं, की स्थानीय वनजीवन को इन कुत्तों से कितना खतरा है।
वनजीवों की सुरक्षा से समझौता करने से हमारी पर्यावरण और पारिस्थितिक सुरक्षा को खतरा होता है। संरक्षित क्षेत्रों की पवित्रता और अन्य पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों को हर कीमत पर बनाए रखने की आवश्यकता है। तब यह महत्वपूर्ण है की तार्किक उपाय किए जाएं, ऐसे क्षेत्रों में और उसके आसपास, खुले में घूमने वाले कुत्तों के प्रभाव को कम करने के लिए, ताकि वनजीवन आबादी की रक्षा की जा सके। यह विशाल, जटिल कार्य केवल निर्बाध अंतर-एजेंसी सहयोग और इच्छाशक्ति और बढ़ी हुई जागरूकता के माध्यम से ही हासिल किया जा सकता है।
वाइल्डलाइफ कंझरवेशन ट्रस्ट (WCT) सहित कई वनजीव संगठन, और कई लोगों ने अपनी टिप्पणी के साथ MFAHD को लिखा है, और कई ने याचिका दाखिल की हैं वनजीव आवासों में स्वतंत्र रूप से रहने वाले कुत्तों के प्रबंधन के संबंध में। वे उचित मांग करते हैं की ABC नियमों में एक अपवाद किया जाए, संवेदनशील वनजीव आवासों से स्वतंत्र कुत्तों को हटाने की अनुमति के लिए, विभिन्न खतरों पर अंकुश लगाने के लिए, जो असंख्य जंगली जानवरों के सामने मंडरा रहा है, शिकार के रूप में, रोग संचरण के रूप में, अप्राकृतिक प्रतिस्पर्धा के रूप में और खुले में घूमनेवाले स्वतंत्र कुत्तों के संकरण के रूप में।
लेखिका के बारे में: पूर्वा वारियर, एक संरक्षणकर्ता हैं, विज्ञान संचारक और संरक्षण लेखिका भी हैं। पूर्वा, वाइल्डलाइफ कंझरवेशन ट्रस्ट के साथ काम करती हैं, और पूर्व में, पूर्वा, सैंक्चुअरी नेचर फ़ाउंडेशन अँड द गेरी मार्टिन प्रोजेक्ट के साथ काम कर चुकी हैं।
अस्वीकारण: लेखिका, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट से जुड़ी हुई हैं। इस लेख में प्रस्तुत किए गए मत और विचार उनके अपने हैं, और ऐसा अनिवार्य नहीं कि उनके मत और विचार, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट के मत और विचारों को दर्शाते हों।
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