२०१८ में, WCT के अध्यक्ष डॉ. अनिश अंधेरिया ने मुझे महाराष्ट्र के मेलघाट व्यग्रह आरक्ष (टाइगर रिज़र्व) भेजा, ताकि में अग्रणी वन कर्मचारियों (frontline forest staff) की ज़िंदगी और उनके काम के बारे में जान सकूँ, देख सकूँ और उनकी आवाज़ बन सकूँ। जिस जिस वनरक्षी से मुझे साक्षात्कार लेने का अवसर मिला उनके साथ मैंने पूरा दिन बिताया। कुछ के साथ तो मैंने पूरे २४ घंटे गुज़ारे, उनके कैम्प (protection camp) तक में सोया जहां मेरी गहरी नींद में सिर्फ एक ख़ुशनुमा ख़लल था हिरणों की अलार्म कॉल।
वनरक्षी सुनीता और द्यानेश्वर शिंदे ने दो साल तक अपने नन्हे बच्चे का पालन पोषणमेलघाट व्यग्रह आरक्ष के कोर ज़ोन में किया।दोनों पति-पत्नी के जीवन के उतार-चढ़ावों को लेखक २०१८ से देखते आ रहे हैं और इन दोनों का ज़िक्र उनके कई लेखों में हुआ है। फोटो क्रेडिट: रिज़वान मिठावला/WCT
मैंने उनके साथ सभी कार्यों में हाथ बटाया – बीट में उनकी गश्त के दौरान उनके साथ चलना और चट्टान-पहाड़ की चढ़ाई करना, , उनके साथ वन्यजीवों द्वारा उपयोग किये जाने वाले जलाशयों (waterhole) की साफ-सफ़ाई करना, जल स्रोतों की जाँच की कि कहीं किसी ने उनमें ज़हर-ख़ुरानी न कर दी हो,, जलधाराओं में पैदल उतार कर उन्हें पार किया, क, और इसी दौरान बाघ, तेंदुए, भालू, गौर, सांभर, और कई अन्य स्तनधारी प्राणियों के पैरों के निशान और दूसरे साक्ष देखे। इस यात्रा में न सिर्फ मैंने अपनी पहली जंगली बिल्ली देखी बल्कि मैंने ऐसी प्रजाति के दो प्राणियों को देखा जिन्हे अनुभवी प्रकृतिवादी भी देखने का सपना देखते हैं – बिज्जू यानि हनी बेजर्स।
उस यात्रा से मैंने जो मैंने सीखा,जो अंतर्दृष्टि प्राप्त की, वह लगभग असीम थी, लेकिन फिर भी पर्याप्त नहीं थी क्यूंकी मन में और जानने की लालसा थी। इसी वजह से में तब से मैंने भारत के विभिन्न बाघ आरक्षों में कई कार्य यात्राएँ की हैं। यहाँ मैंरिज़र्व में और उसके आसपास चल रही विभिन्न WCT परियोजनाओं की प्रत्यक्ष समझ प्राप्त करता और विभिन्न प्रकार की परियोजनाओं के बारे में लिखा है। लेकिन इसके साथ ही हर एक यात्रा ने वनरक्षियों की ज़िंदगी और उनके काम के बारे में मेरी समझ को भी और गहरा किया, और हर बार मुझे उनके जीवन के एक और नए पहलू के बारे में लिखने के लिए प्रेरित किया।
पिछले महीने, विश्व रेंजर दिवस के अवसर पर, मैंने वनरक्षियों की ज़िंदगी पर अपना आठवाँ लेख लिखा, जिसे मैंने मुंबई के मशहूर टैब्लॉइड मिड-दे के संपादकों को भेजा। यह लेख एक वनरक्षी की ज़िंदगी के एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर था, परिस्थिति का एक ऐसा बदलाव जो व्याग्रह आरक्षों में तैनात कई वनरक्षियों के जीवन में पेश आता है – शादी। जैसे ही उनकी शादी होती है और उनका पहला बच्चा होता है, स्कूल और स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकताऐं उन्हें व्याग्रह आरक्षों के बाहर तबादले का अनुरोध करने के लिए मजबूर कर देती हैं।
संपादकों को वनरक्षियों की यह कहानी बेहद पसंद आयी। इस बार आदत के विपरीत एक संरक्षण लेखक दुनिया की दूसरी बड़ी आबादी वाले देश में बाघों की आवश्यकताओं के बारे में नहीं लिख रहा था । इस बार यह कहानी ऐसे साधारण लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं पर केन्द्रित थी जो बाघों,उनके वनों, और उसके भीतर स्थित अमूल्य जैव विविधता की आग, शिकारियों, लकड़ी माफिया और ढेर सारे अन्य खतरों से रक्षा का असाधारण काम करते हैं। , संपादकों ने इस कहानी को लगभग तीन पन्ने दिये!
दुनिया के सबसे ज्यादा बिकने वाले अंग्रेजी दैनिक में काम कर चुके एक पत्रकार के रूप में मेरा अनुभव मुझे यह बताता है, कि एक मानवीय कहानी से ज़्यादा कुछ नहीं बिकता। हम पाठक के तौर पर लोगों की परवाह करते हैं, और इन लोगों की हमारी जैसी ही लगने वाले समस्याओं से एक जुड़ाव महसूस करते हैं। वन्यजीव संरक्षण के लेखक के रूप में, हमेंशिकायत करने के बजाय पाठकों में मिलने वाली इसस निहित भावना का लाभ उठाना चाहिए। मानव केन्द्रित संरक्षण कहानियाँ केवल प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्रों के संरक्षण में ही सहायता नहीं करती बल्कि वे अग्रिम पंक्ति के वन कर्मचारियों की कार्य स्थितियों पर भी प्रकाश डाल सकती हैं, जमीनी स्तर पर काम करने वाले संरक्षकों का मनोबल बढ़ा सकते हैं, गुमनामी में काम कर रहे संरक्षकों और हाशिए पर रहने वाले समुदायों, जो अपने परिवेश में वन्यजीवों को हिस्सेदारी देते हैं,की आर्थिक सहयाता कीओर ध्यान आकर्षित कर सकते हैं, हैं। इन सब के अतिरिक्त , ऐसी कहानियाँ उन लोगों के प्रति हमारी उदासीनता को धीरे-धीरे ख़त्म कर सकती हैं जो भारी व्यक्तिगत कीमत चुका कर भी वन्यजीवों और पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा में तत्पर हैं।
दिनेश केंद्रे मेलघाट में कार्यरत एक वनरक्षी है जिनसे 2018 की हमारी पहली मुलाकात से आजतक मैं लगातयार संपर्क में हूँ। जब भी मैं उन्हें फोन करता हूँ, वह बाघों और अन्य वन्यजीवों की ख़बर के साथ शुरुआत करते हैं और फिर उनके क्षेत्र में घास के मैदान और वॉटरहोल विकास कार्य के बारे में मुझे बताते हैं। लेकिन मुझे उनके जीवन से जुड़ी खबरों में अधिक रूचि रहती है, और यह बात मैंने कई बार उनसे कही है। इसी बात पर उन्होंने एक बार मुझसे कहा कि,“ टाइगर को ज़्यादा इम्पोर्टेंस है सर, गार्ड को…..”। मैं इस वाक्य को पूरा कर सकता था, लेकिन मैंने ऐसा न् किया क्योंकि मैं इस बात को मानने को तैयार नहीं हूँ कि वनरक्षी उन वन्यजीवों से कम महत्वपूर्ण हैं, जिनकी वे रक्षा करते हैं। मेरे लिए लेखन उनकी निस्वार्थ सेवा का जश्न मनाने का एक कृत्य है।
लेखक के बारे में: रिज़वान मिठावाला वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट में कार्यरत एक संरक्षण लेखक हैं, और साथ ही इंटरनेशनल लीग ऑफ कंज़र्वेशन राइटर्स के फ़ेलो भी हैं। इससे पूर्व वे एक राष्ट्रीय समाचार पत्र के साथ पर्यावरण पत्रकार के रूप में काम कर चुके हैं।
अस्वीकारण: लेखक, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट से जुड़े हुये हैं। इस लेख में प्रस्तुत किए गए मत और विचार उनके अपने हैं, और ऐसा अनिवार्य नहीं कि उनके मत और विचार, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट के मत और विचारों को दर्शाते हों।
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