१०० साल पुराने बरगद के पेड़ का क्या मूल्य है जो अनगिनत जानवरों का भरण-पोषण करता है और लोगों को ऑक्सीजन, छाया और सौंदर्य संबंधी राहत प्रदान करता है? आप संपूर्ण मैंग्रोव वन की क्या कीमत निर्धारित करेंगे जो किसी शहर को समुद्री तूफानों का पूरा प्रभाव झेलने से बचाता है और जो जान-माल की हानि, व्यक्तिगत दुःख और त्रासदी को रोकता है? या फिर समुद्री नीले-हरे शैवाल (algae) जो प्रत्येक वर्ष वायुमंडल से गीगाटन कार्बन सोखता है? या एक नदी भी जो वस्तुतः सभ्यताओं को कायम रखती है?
अर्थशास्त्र बड़े पैमाने पर मानव व्यवहार का एक अध्ययन है, जो संसाधनों के उपयोग और उनकी कमी के इर्द इर्द घूमता है। फोटो क्रेडिट: WCT
हो सकता है आपका सोचना सही हो कि प्रकृति द्वारा बनाई चीज़ों और उसकी सेवाओं को आर्थिक मूल्य देना मतलब प्रकृति को सीधे सीधे कम आँकना होता है, जो अनिवार्य रूप से मापनीय नहीं है और हमारी पूरी समझ से कहीं अधिक बड़ा है। लेकिन, आज की बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्था जो लाभ और अल्पकालिक लाभ पर केंद्रित है, हमारे समाज की धारणा प्रगति और विकास को लेकर मूर्खतापूर्ण उपयोग प्रकृतिक संसाधनों की पर्यायवाची है। इसीलिए, मानव उद्देश्यों के लिए पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण (या उनको नष्ट कर देना) की लागत और लाभों को समझना, महत्वपूर्ण है। यहीं पर अर्थशास्त्र आता है।
अर्थशास्त्री सहायता कर रहे हैं, जटिल पारिस्थितिक प्रणालियों के पर्यावरणीय मूल्य का अनुवाद , उस भाषा में करने के लिए, जो नीति निर्माता, उद्योगपति, विकास परियोजना प्रस्तावक और अधिकांश अन्य लोग, इसे सबसे अच्छी तरह समझेंगे। वे सामाजिक वैज्ञानिकों और इकोलोजिस्ट्स के साथ काम कर रहे हैं, मानव व्यवहार को समझने और उसका विश्लेषण करने के लिए, जो प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के इर्द गिर्द घूमता है। वे अप्रमाणित, अमूर्त को परिमाणित कर रहे हैं, अमूल्य और अत्यधिक जटिल को महत्व दे रहे हैं। अर्थशास्त्री समझने के कठिन कार्य से जूझ रहे हैं कि प्रकृति को, कितना, एक सीमा में रहते हुये, उसका आर्थिक और सामाजिक लाभ उठाया जा सकता है और उसे कितना सुरक्षित रखने की ज़रूरत है, ताकि पारिस्थितिकी तंत्र, कार्य कर सके और अपनी जीवन दायिनी सेवाएँ जैसे, स्वच्छ हवा, पानी, जलवायु नियंत्रण, खाद्य सुरक्षा, परागण, इत्यादि दे सके। वे आर्थिक और विकास नीतियों को सूचित करने में सहायता कर रहे हैं।
मैंने अर्थशास्त्री अनिकेत भातखंडे और पूजा देऊलकर से बात की, जो वाइल्डलाइफ कंझरवेशन ट्रस्ट (WCT) के साथ काम करते हैं। अनिकेत WCT के संरक्षण व्यवहार प्रभाग का प्रमुख है, जिसका पूजा हिस्सा हैं। सामाजिक वैज्ञानिक, विकास शोधकर्ता और पारिस्थितिकी विज्ञानी की टीमों के साथ मिलकर, वे अर्थशास्त्र के ढाँचे का संयोजन मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और मानवविज्ञान के साथ कर रहे हैं। टीम ने पिछले आधे दशक में प्रभावशाली परियोजनाओं का नेतृत्व किया है, जटिल संरक्षण मुद्दों की एक श्रृंखला को संबोधित करने के लिए, जैसे की ईंधन की लकड़ी की निरंतर खपत के कारण वनों का क्षरण; मानव-वनजीवन संघर्ष; वन कर्मचारियों की मानसिक अवस्था जो वन संरक्षण की गुणवत्ता निर्धारित करती है; और वनों के अलावा अन्य पारिस्थितिकी प्रणालियों की रक्षा के लिए, वित्तीय प्रोत्साहन की कमी।
Q) अर्थशास्त्र क्या है? हर किसी की इस पर अच्छी पकड़ नहीं होती। क्या आप दोनों अर्थशास्त्र को पाठकों के लिए सरल शब्दों में समझा सकते हैं?
पूजा: एक परिभाषा में अर्थशास्त्र को समझाया नहीं जा सकता, मेरी समझ के हिसाब से उसका अपने व्युत्पत्ति के आगे विस्तार हो गया है- ‘घर के प्रबंधन से संबंधित विज्ञान’। ऐतिहासिक रूप से, विषय, रुचिकर और विभिन्न दर्शनों से प्रभावित रहा है, अलग-अलग समय अवधि में सामाजिक संदर्भ के साथ लगातार बातचीत करते हुये। इसका इसकी व्यापकता और एप्लीकेशन पर ज़बरदस्त असर हुआ है और परिणामस्वरूप, इसके अंदर क्या अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार, इसकी प्रकृति निरंतर विकसित हो रही है। आज हम जो देखते हैं, वह संसाधनों की कमी पर केंद्रित है, इसका इष्टतम उपयोग और भावी पीढ़ियों के लिए इसका प्रभाव। इसका एक अनुप्रयुक्त घटक संरक्षण व्यवहार टीम में हम जो खोज रहे हैं, वह पारिस्थितिक अर्थशास्त्र है, जो मानव प्रणालियों को पारिस्थितिक प्रणालियों के एक उपसमूह के रूप में देखता है और इस प्रकार हमें, हम मनुष्यों, वे संस्थाएँ, जो हम पर शासन करती हैं, और उपलब्ध संसाधन के बीच संबंध को पुनः जाँचने के लिए मजबूर करता है।
अनिकेत: अर्थशास्त्र संसाधनों के आवंटन का विज्ञान है, उनकी उपयोगिता को अनुकूलित करने के लिए। सरल भाषा में कहें तो, यह संसाधनों का उपयोग करने का सर्वोत्तम तरीका जानने का प्रयास करता है, ताकि सभी को लाभ हो। हमारे समय में अर्थशास्त्र का प्रमुख दृष्टिकोण, यानी नव उदारवाद, यह विश्वास करता है कि जो सेवाएँ हमें प्रकृति द्वारा दी जा रही हैं, वह मानव इनपुट और प्रौद्योगिकी के माध्यम से बनाया जा सकता है। दूसरी ओर पारिस्थितिक अर्थशास्त्र ऐसा मानता है कि अर्थव्यवस्था पारिस्थितिकी का एक उपसमूह है और इस प्रकार अपनी सीमाओं से बंधा हुआ है। WCT में हम अर्थशास्त्र के प्रति अपने दृष्टिकोण में बाद वाले परिप्रेक्ष्य से निर्देशित होते हैं।
अनिकेत भातखंडे एक अर्थशास्त्री हैं और WCT की संरक्षण व्यवहार प्रभाग का नेतृत्व करते हैं। फोटो क्रेडिट: अनिकेत भातखंडे
Q) एक अर्थशास्त्री किसी पारिस्थितिकी तंत्र के मूल्य की गणना कैसे शुरू करता है जैसे कि, समझो की एक नदी जो लोगों को कई सुविधाएँ प्रदान करती हैं जैसे, भोजन, पानी, रोज़गार, सिंचाई, मनोरंजन इत्यादि और जिसका पारिस्थितिक प्रभाव परिदृश्य में अन्य पारिस्थितिक तंत्रों के स्वास्थ्य से जुड़ा है, जैव विविधता, माइक्रॉक्लाइमेट, और भी बहुत कुछ?
अनिकेत: किसी पारिस्थितिकी तंत्र के मूल्य की गणना करने के लिए, एक अर्थशास्त्री को विभिन्न लाभों की मात्रा निर्धारित करनी होती है, जो पारिस्थितिकी तंत्र से उत्पन्न होता है। इसके लिए, मूर्त लाभ (उदाहरण. ईंधन लकड़ी वन से; या आर्द्रभूमि से मत्स्य पालन) अनुभवजन्य (एम्पेरिकल) डेटा, मौजूदा रिकॉर्ड, उपग्रह इमेजरी, आदि के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। अमूर्त लाभों (वायु शुद्धि, जल सुरक्षा, आध्यात्मिक उत्थान, इत्यादि) की मात्रा निर्धारित करना अधिक कठिन है और अर्थशास्त्री इस उद्देश्य के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करेंगे।
मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ, एक फ्लैट से समुद्र का दृश्य, उसके मालिक के लिए एक अमूर्त मूल्य है, लेकिन एक समान फ्लैट से तुलना करके (शायद एक ही इमारत में) जो समुद्र की ओर नहीं है, उस दृश्य पर कीमत लगाने की अनुमति देगा जिसके लिए मालिक ने भुगतान किया है। सिंचाई जैसा कुछ, सिंचाई के बिना पैदावार हमें तुलनात्मक राशि दे सकते हैं, पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा दी जाने वाली सिंचाई सेवा का मूल्यांकन करने के लिए। अर्थशास्त्री मूल्यांकन अध्ययन का उपयोग, विश्लेषण के लिए एक उपकरण के रूप में करते हैं, जहां पैसा परिणाम बताने की भाषा है। पैसा उन संपत्तियों की तुलना करने की अनुमति देता है, जिनकी तुलना करना अन्यथा मुश्किल होगा। परिणामी मूल्य को केवल अपनायी गई पद्धति के संदर्भ में ही समझा जाना चाहिए। ऐसे अध्ययनों की सीमाएँ स्पष्ट रूप से बताती हैं, कि मूल्यांकन में कौनसी सुविधाएँ शामिल की गयी हैं।
Q) आप दोनों ने, WCT में आपकी बाकी टीम के साथ, महाराष्ट्र में, पायनेरिंग हीटर ऑफ होप (टिकाऊ वॉटर हीटर) परियोजना पर काम किया है, जिसने स्थानीय समुदायों के बीच एक आशाजनक व्यवहारिक बदलाव को जन्म दिया है। क्या आप हमें बता सकते हैं कि कौन सी भूमिका, आपने एक अर्थशास्त्री के रूप में निभायी, जलाऊ लकड़ी के निष्कर्षण के कारण, वन क्षरण के मुद्दे को संबोधित करने में?
पूजा: इस प्रक्रिया में अर्थशास्त्र की भूमिका को अलग करना कठिन होगा, क्योंकि हम वास्तव में चाहते थे कि यह सामाजिक विज्ञानों के बीच सहयोगात्मक प्रयास हो और कभी-कभी उनसे भी आगे। यदि किसी को इस प्रक्रिया को केवल अर्थशास्त्र के नज़रिए से देखना चाहिए, मंशा तो डेमोग्राफिक जानकारियाँ समझने कि थी जैसी कि आय, शिक्षा की मात्रा, आजीविका के अवसर, समुदायों की पशुधन जोत और भूमि संपत्ति। इससे लोगों की पृष्ठभूमि का मात्रात्मक स्नैपशॉट प्रदान करने में सहायता मिली जिसके साथ हमारा काम करने का इरादा था। अतिरिक्त तौर पर, आधारभूत अध्ययन के डिज़ाइन ने समुदायों के ऊर्जा उपयोग प्रोफाइल को समझने पर भी ध्यान केंद्रित किया-जिसमें जलाऊ लकड़ी, जैसे वन संसाधनों पर उनकी निर्भरता भी शामिल है। कुलमिलाकर, इससे इन मापदंडों के बीच की बातचीत को मात्रात्मक रूप से मापने और समझने में मदद मिली।
अनिकेत: हमने बड़े पैमाने पर मात्रात्मक सर्वेक्षण किए, जिसके माध्यम से हमने एलपीजी( (Liquefied Petroleum Gas) उपयोग की घरेलू स्तर की समझ विकसित की, निरंतर जलाऊ लकड़ी के उपयोग के कारण, और जलाऊ लकड़ी के उपयोग में आय की भूमिका, इत्यादि। परिदृश्य में यह अध्ययन एक प्रतिनिधि परिवार की निर्णय लेने की क्षमता और प्राथमिकताओं के बारे में जानकारी देते हैं। इससे हमें जल तापन को नीतिगत अंतराल के रूप में पहचानने की अनुमति मिली। जबकि, सब्सिडी वाली एलपीजी में भोजन बनाने के लिए जलाऊ लकड़ी का अपेक्षाकृत सस्ता विकल्प था, घरों में पानी गरम करने का कोई किफायती विकल्प नहीं था। इससे जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने की निरंतर आवश्यकता बनी रही। इस प्रकार पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ, ऊर्जा-कुशल और किफायती जल तापन हस्तक्षेप की संकल्पना की गई। यह एक बार की प्रक्रिया नहीं है और हम समुदायों के साथ जुड़ना जारी रखते हैं। मैं, पूजा से इस पर कुछ प्रकाश डालने का अनुरोध करता हूँ कि हम हस्तक्षेप के प्रभाव का मूल्यांकन कैसे करते हैं और यह फीडबैक लूप को कैसे पूरा करता है।
महाराष्ट्र के चंद्रपुर ज़िले के एक गाँव की निवासी, एक टिकाऊ बायोमास से चलने वाला वॉटर हीटर उपयोग करती हैं, जिसको चयनित गाँवों में परिवारों के बीच वितरित किया गया है, कठोर सामाजिक-आर्थिक और मनोवैज्ञानिक सर्वेक्षण करने के बाद और यह WCT के काम का एक भाग है, क्षेत्र में वन क्षरण को रोकने की दिशा में और वह भी जलाऊ लकड़ी का विकल्प प्रदान करने के रूप में। फोटो क्रेडिट: प्रथमेश शिरसाट/WCT
पूजा: ज़रूर! हम इस बात को अलग करना चाहते थे कि हमारा हस्तक्षेप ज़मीन पर जलाऊ लकड़ी की खपत को कैसे प्रभावित कर रहा है, इस बात के बावजूद कि अन्य सामाजिक-आर्थिक चरों(variables) का इस पर प्रभाव पड़ा। यह करने के लिए, हमने डिफ़्रेंस – इन – डिफरेन्सेस (DID) तरीके का उपयोग किया। इसका मतलन यह है कि हमने उन गाँवों में सर्वेक्षण किया जो हस्तक्षेप से परिचित थे, जैसे कि ‘ट्रीटमंट विलेजेस’ और साथ में ‘कंट्रोल विलेज’ ताकि गाँवों में अंतर को समझा जा सके। अतिरिक्त तौर पर, हमने गाँव के सभी घरों का सर्वेक्षण किया, गाँवों के अंदर, अंतर कारण बताने के लिए और वह भी ट्रीटमंट और कंट्रोल घरों के बीच में। सभी मापदंडों में आधारभूत आंकड़ों के अंतर को ज़मीनी बदलावों की पहचान करने के लिए तुलना की गई, जिसे हस्तक्षेप के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
Q) क्या वातावरण की सुरक्षा भारत की भविष्य आर्थिक बढ़ोतरी योजना का एक हिस्सा है? ऐसा होना क्यों महत्वपूर्ण है?
पूजा: वैश्विक तौर पर, एक सतत विकास योजना तैयार करने का मुद्दा (यानी एक ऐसी योजना जो अपने प्राकृतिक संसाधनों पर विकास की लागत पर विचार करती है) अपने नागरिकों के अधिकारों का हनन किए बिना इसे हासिल करना मुश्किल है। इसमे और जोड़ने के लिए, जिन देशों का उपनिवेशी इतिहास रहा है, वे निवासी के दृष्टिकोण से बहुत अधिक प्रभावित हुए हैं, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के संबंध में- इसका एक आदर्श उदाहरण यह है कि वह प्राथमिकता जो वनों को अन्य पारिस्थितिक तंत्रों से अधिक मिलती है, जब इसके संरक्षण के लिए बजट आवंटित करने की बात आती है।एक बड़ी आबादी गरीबी के जाल से जूझ रही है, भारत को एक अच्छे संतुलन के लिए प्रयास करना चाहिए और वह भी अपने संसाधनों पर बोझ डाले बिना, मानव पूंजी में निवेश के बीच में। आर्थिक नीतियों के नकारात्मक परिणामों को अकेले नहीं निपटाया जा सकता और इन नीतियों को स्वयं डिज़ाइन करते समय इन लागतों को शामिल किया जाना चाहिए। ‘पहले प्रदूषित करें, और बाद में साफ करें’, यह नहीं चल सकता।
एक देश होने के नाते हम पर्यावरण संरक्षण को नीतियों के दायरे से परे मानते हैं। हमारे पास समुदाय हैं, जिनका अपने आस-पास के संसाधनों के साथ सांस्कृतिक और सामाजिक संबंध है, जो उनसे मिलने वाले आर्थिक लाभ से कहीं अधिक है। राष्ट्रीय मोर्चे पर हम सतत विकास लक्ष्यों (SDG’s) को शामिल करने पर सहमत हुए हैं और इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए परिभाषित संकेतकों में सुधार करना है। हालांकि, ज़मीनी स्तर की स्थितियाँ एक विकृत तस्वीर प्रस्तुत करती हैं। जबकि हमारी पर्यावरण नीति, नकारात्मक परिणामों को दंडित करने पर केंद्रित है, यह लोगों को सकारात्मक विकल्प चुनने के लिए प्रोत्साहित करने में विफल रहता है। हमारे संस्थान, निम्न-इष्टतम परिणाम उत्पन्न करते हैं और वह भी लोगों के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी-इसका एक प्रमुख उदाहरण है वृक्षारोपण अभियान में राज्य निधि का उपयोग उस पारिस्थितिकी तंत्र को समझे बिना जिसमें यह अभियान चलाए जा रहे हैं। यह देखते हुए कि सतत विकास हासिल करना एक दीर्घकालिक लक्ष्य है, हमारे कार्यों के परिणामों को उस समय सीमा में रखने की आवश्यकता है।
Q) भारत के वर्तमान पर्यावरण सुरक्षा मॉडल में क्या खराबी है जो मुख्य रूप से वन संरक्षण के वित्तपोषण पर केंद्रित तो है, लेकिन विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्रों को नज़रअंदाज़ करता है?
पूजा: भारत का पर्यावरण सुरक्षा मॉडल अपने वन क्षेत्र को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करता है। यह एक बड़े कारण से परेशानी वाली बात है- यह उन सभी अन्य पारिस्थितिक तंत्रों की उपेक्षा करता है जो हमारी समृद्ध जैव विविधता को बढ़ाते हैं और वन पारिस्थितिकी प्रणालियों के साथ मिलकर काम करते हैं, आवश्यक परिस्थितिकी तंत्र की सेवाएँ प्रदान करने के लिए। सबसे अच्छा (यानि कम से कम सबसे खराब) इसका परिणाम सशक्त रूप से / बलपूर्वक ,पारिस्थितिक तंत्र की ‘हरियाली’ करना होता है जो पारिस्थितिक दृष्टि से वन नहीं हैं- जैसे कि रेगिस्तान और घास के मैदान। इसके बिना जानकारी के क्रियान्वयन का परिणाम पौधों की प्रजातियों का परिचय होता है, जो उस आवास के लिए विदेशी/अपरिचित हैं और इसलिए पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। सबसे बुरी स्थिति में, इन क्षेत्रों में प्रदूषक और अवशिष्ट अपशिष्ट जमा होते हैं और अंततः बंजर भूमि में बदल जाते हैं। और इसीलिए, जो सेवाएँ इन पारिस्थ्तितिकी तंत्रों द्वारा प्रदान की जाती हैं, उनका कोई महत्व नहीं होता।
आवास जैसे, खारे रेगिस्तानी मैदान, नमकीन दलदली भूमि, कंटीली झाड़ियाँ इत्यादि, अपने आप में पारिस्थितिकी तंत्र हैं जो असंख्य, विशेष रूप से अनुकूलित प्रजातियों को आश्रय देते हैं और महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करते हैं। यहाँ डेमोइसेल क्रेनें दिखाई दे रही हैं, एक प्रवासी पक्षी प्रजाति, गुजरात के कच्छ के छोटे रण के घास के मैदानों में, सर्दियों के मौसम का आनंद लेते हुये। फोटो क्रेडिट: डॉ. अनिश अंधेरिया
Q) WCT की राजकोषीय सिद्धांतों की परियोजना किस तरह काम कर रही है पारिस्थितिक और आर्थिक असमानताओं को दूर करने के लिए और जिसको भारत के विभिन्न राज्यों में बढ़ावा दिया गया है ऐसे वन-केंद्रित मॉडल के कारण?
अनिकेत: यह सुनिश्चित करने के लिए की भारत की आर्थिक प्रगति निरंतर बनी रहे, इसके लिए पर्यावरण की सुरक्षा करना महत्वपूर्ण है। यह पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहित करके अपनी वर्तमान नीतियों में सुधार की माँग करेगा और इसे एक संबद्ध उद्देश्य के रूप में प्रचारित करेगा। पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ, जो निजी सामान हैं, जैसे कि जल आपूर्ति में आर्थिक विकास में सीधे योगदान देने की अपार क्षमता है, जबकि जो सार्वजनिक वस्तुएं हैं जैसे कि तापमान विनियमन और वायु गुणवत्ता प्रबंधन, यह भारत के शहरों के लिए मूलभूत इनपुट (निवेश वस्तुएँ) हैं, जो इनके विकास को संचालित करता है। पारिस्थितिकी तंत्रों के रखरखाव का महत्व, इससे मिलने वाले लाभ सुनिश्चित करने के लिए, इसे गरीब और अमीर दोनों देशों में समान रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। भारत ने लगभग ५० वर्ष पहले ही इसके महत्व को पहचान लिया था और हमारे वनों की रक्षा के लिए कानून भी बना लिए थे। हालांकि, संसाधनों का निरंतर संरक्षण करने के लिए, ज़रूरत है की वन संरक्षण के मौजूदा अधिदेश से परे देखने के की, ताकि, असमानता संबंधी चिंताओं को दूर किया जा सके।
वेलावदर राष्ट्रीय उद्यान में काला हिरण, जो भारत के कुछ संरक्षित घास के मैदानों में से एक है। घास के मैदान देश में सबसे अधिक उपेक्षित और संकटग्रस्त आवासों में से एक हैं। फोटो क्रेडिट: डॉ. अनिश अंधेरिया
किसी भी राज्य सरकार, स्थानीय निकाय, समुदाय और व्यक्तियों को गैर-वनाच्छादित लेकिन समान रूप से महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करने के लिए, कोई प्रोत्साहन नहीं है। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का लगभग विलुप्त होना और घास के मैदानों का क्षरण, जो वनों की तुलना में अधिक विश्वसनीय कार्बन सिंक हैं, इस उपेक्षा का सूचक है। जब तक सरकार इन गलत प्रोत्साहनों पर ध्यान नहीं देती, धन के समान वितरण के माध्यम से, सभी प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्रों को संरक्षण प्रोत्साहित करने के लिए, महत्वपूर्ण प्राकृतिक आवास और उन आवासों पर निर्भर प्रजातियाँ, अंतिम कगार पर धकेल दी जाएँगी।
WCT की परियोजना, एचटी पारेख फाउंडेशन के साथ साझेदारी में किया गया, इसका उद्देश्य ऐसी नीतियां चलाना है, जो शासी निकायों के लिए प्रोत्साहन पैदा करें (केंद्र से तीसरी श्रेणी तक) विकासात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए और वह भी बिना पारिस्थितिकी तंत्रों की सेवाओं में समझौता किए हुये। साक्ष्य-आधारित और वैज्ञानिक रूप से मजबूत नीति अनुशंसाएँ प्रदान करना, वित्त आयोग को, निधि हस्तांतरण करने का एक अच्छा तरीका है।
अर्थशास्त्री पूजा देऊलकर (खड़ी हुई) सर्वेक्षणकर्ताओं की एक टीम को संबोधित कर रही हैं सह्याद्री टाइगर रिज़र्व में आयोजित एक प्रशिक्षण सत्र के दौरान। फोटो क्रेडिट: WCT
Q) आखिर में, एक अर्थशास्त्री होने के अनुसार, आप कैसे देखते हैं कि अर्थशास्त्र संरक्षण के उद्देश्य को आगे बढ़ा रहा है?
पूजा: अर्थशास्त्र एक महत्वपूर्ण परिप्रेक्ष्य सामने लाता है, मानवीय संपर्क और निर्णय लेने की क्षमता को समझने के लिए। अन्य विषयों के साथ-साथ, अर्थशास्त्र यथा स्थिति को समझने में सहायता कर सकता है और सर्वोत्तम संरक्षण परिणाम प्राप्त करने के लिए मानव व्यवहार को बदलने में सहायता कर सकता है। अगर अच्छे से उपयोग किया जाए, शासकीय सिद्धांत, हमारी प्रजातियों को बेहतर निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं, जो हमारे वर्तमान मार्ग/रास्ते को सही कर सकता है।
अनिकेत: जैसा कि हमने साक्षात्कार के शुरुआती भाग में बात की थी, अर्थशास्त्र संसाधनों के अनुकूलन का विज्ञान है। संरक्षण की आवश्यकता इसलिये पड़ी, क्योंकि हम संकट में हैं और चिंतित हैं कि क्या ये प्राकृतिक संसाधन लंबे समय तक उपलब्ध रहेंगे। हमें अन्य विषयों से विशेषज्ञ चाहिए, आगे जो छिपा है, उसके लिए , और अर्थशास्त्रियों को उनके साथ मिलकर काम करना होगा, इस जटिल और अनोखी प्रणाली जो कि पृथ्वी है, इसकी समझ हासिल करने के लिए।
यह लेख मौलिक तौर पर, अगस्त २००२ के संस्करण में, सैंक्चुअरी एशिया पत्रिका में प्रकाशित किया गया था।
लेखिका के बारे में: पूर्वा वारियर, एक संरक्षणकर्ता हैं, विज्ञान संचारक और संरक्षण लेखिका भी हैं| पूर्वा, वाइल्डलाइफ कंझरवेशन ट्रस्ट के साथ काम करती हैं, और पूर्व में, पूर्वा, सैंक्चुअरी नेचर फ़ाउंडेशन अँड द गेरी मार्टिन प्रोजेक्ट के साथ काम कर चुकी हैं।
अस्वीकारण: लेखिका, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट से जुड़ी हुई हैं। इस लेख में प्रस्तुत किए गए मत और विचार उनके अपने हैं, और ऐसा अनिवार्य नहीं कि उनके मत और विचार, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट के मत और विचारों को दर्शाते हों।
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