पक्षियों की कलरव में सुकून

हर सुबह, एक अकेला नर गौरैया मेरे खिड़की के बाहर गुजरती टीवी केबल पर बैठकर कलरव करता है। वह सामने की छत पर बने एक स्टोर रूम की छत की दरार में अपना परिवार पाल रहा है। वह मेरा एक ऐसा पड़ोसी है, जिसकी मौजूदगी से मैं अब तक अनजान था; लेकिन अब, उसकी एक भी पुकार मुझसे छूटती नहीं। शहर के शोर-शराबे के बीच भी, मेरे कान उसकी हल्की सी ‘च्वीप’ को पहचान लेते हैं — और मैं मुस्कुरा उठता हूँ ये जानते हुए भी की वो वही है। उसकी आवाज़ मुझे सुकून और अपनापन देती है।


मैं अकेला नहीं जो लॉकडाउन के दौरान इन पंखों वाले पड़ोसियों के करीब आ रहा है। दुनिया भर में लोग अब अपनी खिड़कियों से झांककर पक्षियों को देखना और सुनना शुरू कर चुके हैं। मुंबई में तांबे के कारीगर जैसी आवाज़ देने वाले बारबेट की धातु जैसी एकल ध्वनि और एशियाई कोयल के नर की सुरों से भरी पुकार — ये दोनों ही हमारे बचपन की धुंधली सी प्यारी यादें हैं — जो अब एक नई हैरानी और उत्सुकता के साथ सुनी जा रही हैं।

फड़फड़ाते, चहचहाते और बाँसुरी जैसे मधुर धुनों में कलरव करते ये पंखों वाले जीव हमारे मन को छू लेते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस कलरव को पहचान पाना शायद हमारे विकासवादी इतिहास का एक हिस्सा रहा है। “हमारे पूर्वजों के लिए दूर से आती धीमी पक्षियों की चहचहाहट सुन पाना किस तरह फ़ायदेमंद रहा होगा? भला हमारी सुनने की शक्ति इस तरह विकसित क्यूँ हुई कि हम दूर से आती धीमी सी पक्षियों की चहचहाहट की ओर खिंचते चले जाएं ?” —यह सभी सवाल ध्वनि पारिस्थितिकी वैज्ञानिक गॉर्डन हेम्पटन पूछते हैं, और फिर अपनी शांत, आश्वस्त करने वाली आवाज़ में इसका उत्तर भी देते हैं। “हम एक विचरणशील (नोमेडिक) वंश से आते हैं, और यदि हम पक्षियों की चहचहाहट को सुनते हैं तो इसका अर्थ है कि हम ऐसे क्षेत्र में हैं जहाँ भोजन, पानी और अनुकूल मौसम की पर्याप्तता है और यह पर्याप्तता इनके बच्चों के घोंसलों से बड़ा होकर बाहर खुली हवा में उड़ने तक बनी रहती है। पक्षियों का कलरव मानव जीवन के लिए समृद्ध आवासों का सबसे महत्वपूर्ण संकेतक है।”

प्रकृति के बीच रहने के मानसिक स्वास्थ्य लाभों, विशेषकर शहरी लोगों के लिए एक अध्ययन, ऑक्सफोर्ड के जर्नल बायोसाइंस में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में यह पाया गया कि दोपहर के समय पक्षियों की उपस्थिति अवसाद, चिंता और तनाव की कम घटनाओं से सकारात्मक रूप से जुड़ी हुई है। यह अध्ययन ऐसे कई अध्ययनों में से एक है जो मानसिक स्वास्थ्य और पक्षियों के कलरव के बीच संबंध पर काम कर रहे हैं। इस अध्ययन के निष्कर्ष यह बताते हैं कि इन दोनों के बीच एक सकारात्मक सम्बन्ध है।

पक्षियों का कलरव हमेशा से हमारे जीवन का हिस्सा रहा है, यह हमारी आत्मा को तरोताजा कर देता है और हमारे दिलों को मनोरंजन से भर देता है इसके साथ ही यह ऋतुओं के आगमन का भी सूचक है और शाश्वत संगीत (टाइमलेस म्यूजिक) और कविताओं के लिए भी प्रेरित करता है। भारतीय मानसून की शुरुआत में, नर पपीहा (हॉक कुक्कू) अपनी तेज़, तीन सुरों वाली आवाज़ को बार-बार दोहराता है। उसकी यह पुकार धीरे-धीरे और तेज़ होती जाती है, जब तक कि वह एक ऊँचे और तीव्र स्वर तक न पहुँच जाए। जबकि ब्रिटिश नेचुरलिस्ट ने इनकी आवाज़ को निंदात्मक रूप से ‘ब्रेन फीवर’ (दिमागी बुखार) कहा, वहीं महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में इसे ‘पेरते व्हा’ (जिसका अर्थ है ‘बुवाई शुरू करो’) कहा जाता है। यह पक्षी, जिसे हिंदी में पपीहा कहते हैं (एक ऐसा नाम जो उसकी पुकार की स्थानीय व्याख्या और स्वर से मेल खाता है), ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की रचनाओं के साथ-साथ अनेक फिल्मी गीतों में भी अपनी छाप छोड़ी है।

हमारी इंद्रियाँ जानवरों की उन अलग-अलग आवाज़ों के साथ तालमेल में रहती हैं, जो हमारे परिवेश में गूंजती हैं, और हमारी संस्कृतियाँ भी उन्हीं में रची-बसी हैं। अगर हम इन आवाज़ों से खुद को दूर कर लें — और एयर-कंडीशंड अपार्टमेंट्स, दफ्तरों और उबर कारों जैसे बंद बुलबुलों में जीने लगें — तो हम अपने आपको एक अजनबी-सी ज़िंदगी से शापित कर देंगे।

आज हम जो जीवन जी रहे हैं, जहाँ हम लगभग पूरी तरह से केवल दूसरे इंसानों और इंसानों द्वारा बनाए गए उपकरणों व तकनीकों के साथ ही जुड़ते और प्रतिभाग करते हैं, इस पर टिप्पणी करते हुए पारिस्थितिकी विज्ञानी और दार्शनिक डेविड अब्रैम कहते हैं, “यह एक नाज़ुक स्थिति है, क्योंकि हमारा उस बहु-स्वरयुक्त प्राकृतिक परिदृश्य के साथ एक पुराना, पारस्परिक संबंध रहा है। हमें आज भी उन चीज़ों की ज़रूरत है जो न तो हम खुद हैं और न ही हमारे द्वारा बनाई गई हैं… हम तभी सच में इंसान कहलाते हैं जब हमारा संपर्क और सह-अस्तित्व उन चीज़ों के साथ होता है जो मानवीय नहीं हैं।”

इंसानों और प्रकृति के बीच जो दूरी और अलगाव हो गया है, उसका समाधान मेल-मिलाप’ और परस्परता है। महामारी एक चेतावनी है कि हमें ज़मीन और समुद्र में प्रकृति का शोषण बंद करना चाहिए और धरती के साथ अपने रिश्ते को सुधारना चाहिए। हमारी खिड़की या शहर के बगीचों में आने वाले पक्षियों और अन्य जीवों को कुछ समय तक निहारना इस मेल-मिलाप की प्रक्रिया की एक अच्छी शुरुआत हो सकती है।

हमारे शहरों और कस्बों में पाई जाने वाली तितलियों की प्रजातियों के लार्वा होस्ट पौधों को उगाकर तितलियों को खिड़की तक आकर्षित किया जा सकता है। (मैंने अपनी खिड़की पर अनगिनत लाल पिएरोट तितलियों के जीवन चक्र को देखा और चित्रित किया है।) सामान्य पक्षी, जैसे कि गौरैया, अगर बॉक्स से बनाये गए घोंसले सुरक्षित स्थान पर लगाएं जहाँ इनका शिकार न हो सके, तो बॉक्स वाले घोंसले में खुशी-खुशी वह अपना बसेरा बनाकर परिवार शुरू कर लेते हैं।

मैं अब तक घोंसले के लिए कोई बॉक्स नहीं लगा पाया हूँ, लेकिन एक नर गौरैया (जिसे मैं मानता हूँ कि वह मेरे सामने वाली छत से मेरा दोस्त है) वह अक्सर मेरे पत्थरचट्टा के पौधे पर आता है। यह वही पौधा है जो लाल पिएरोट तितली के कैटरपिलर (लार्वा) का आहार है। अच्छी बात ये है कि वह गौरैया कैटरपिलरों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाता, जो पत्तियों के अंदर छिपकर खाते हैं (क्योंकि लाल पिएरोट के कैटरपिलर पत्तियाँ भीतर से खाते हैं)। उसकी दिलचस्पी उस नारियल की रस्सी में है, जिससे भारी बारिश के समय पौधे को सहारा देने के लिए बाँधा गया है। वह उस रस्सी से छोटे-छोटे रेशे निकालता है, शायद अपने घोंसले को नरम और आरामदायक बनाने के लिए। उस गौरैया का इस तरह कुछ रेशों से ही काम चला लेना, और मुझे यह छोटी-सी लेकिन बेहद खास ख़ुशी देना, यही तो वह परस्परता है जिसकी मुझे लंबे समय से तलाश थी।

गौरैया या किसी भी उस पक्षी की आवाज़, जिसे हम बचपन से सुनते आए हैं, हमारे मन को बीते हुए कल या आने वाले कल की चिंताओं से ऊपर उठाकर, हमें पूरी तरह से वर्तमान के अच्छे पलों में ले जाती है। पक्षियों की चहचहाहट शायद हमारे भीतर कहीं गहराई से एक संदेश देती हैं जिसे कवि टेड ह्यूजेस ने कुछ इस तरह वर्णित किया था, “ये धरती अब भी अपनी लय में चल रही है।’ हमें बस सुनना है; यह प्राकृतिक थेरेपी न कोई मूल्य मांगती है, न ही ये संगीत।


लेखक परिचय: रिज़वान मिठावाला वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट में एक संरक्षण लेखक हैं और इंटरनेशनल लीग ऑफ कंज़र्वेशन राइटर्स के फेलो भी हैं।

अस्वीकारण: लेखक, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट से जुड़े हुये हैं। इस लेख में प्रस्तुत किए गए मत और विचार उनके अपने हैं, और ऐसा अनिवार्य नहीं कि उनके मत और विचार, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट के मत और विचारों को दर्शाते हों।


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